भारत में ई-वेस्ट के सुरक्षित और वैज्ञानिक प्रबंधन की आवश्यकता
- 13 May 2025
हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ई-वेस्ट के सुरक्षित और वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए पुनर्चक्रण क्षमता, बुनियादी ढांचे और नीति-प्रवर्तन को और मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि सतत विकास और पर्यावरण की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
मुख्य तथ्य एवं आंकड़े:
- ई-वेस्ट में भारी वृद्धि: भारत में ई-वेस्ट का उत्पादन 2017-18 में 7,08,445 मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17,78,400 मीट्रिक टन हो गया, जो छह वर्षों में 151.03 प्रतिशत की वृद्धि है। 2019-20 से 2023-24 के बीच यह वृद्धि 72.54 प्रतिशत रही, और 2023-24 में कुल 1.751 मिलियन मीट्रिक टन ई-वेस्ट उत्पन्न हुआ।
- वार्षिक वृद्धि: हर वर्ष औसतन 1,69,283 मीट्रिक टन ई-वेस्ट की वृद्धि दर्ज की गई है।
- पुनर्चक्रण की स्थिति: 2019-20 में केवल 22 प्रतिशत ई-वेस्ट का पुनर्चक्रण हुआ था, जो 2023-24 में बढ़कर 43% हो गया। इसके बावजूद, लगभग 57 प्रतिशत (9,90,000 मीट्रिक टन) ई-वेस्ट अब भी बिना पुनर्चक्रण के रह जाता है।
- प्रमुख स्रोत: देश के 65 शहर कुल ई-वेस्ट का 60 प्रतिशत उत्पन्न करते हैं, जबकि 10 राज्य 70 प्रतिशत ई-वेस्ट के लिए जिम्मेदार हैं5। शहरी क्षेत्रों में सरकारी कार्यालय, स्कूल आदि को 'बुल्क कंज्यूमर' की श्रेणी में रखा गया है, जिन्हें केवल पंजीकृत रिसाइक्लर या रिफर्बिशर को ई-वेस्ट देना अनिवार्य है।
- प्रबंधन और नियम: ई-वेस्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 के तहत विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (EPR) लागू है, जिसमें उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों को उनके उत्पादों के जीवन-चक्र के अंत में उत्पन्न कचरे के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई है। नए नियमों के तहत सभी संबंधित पक्षों का पंजीकरण, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति, और अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक क्षेत्र से जोड़ने के प्रावधान किए गए हैं।
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