तमिलनाडु राज्यपाल पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी व संवैधानिक पहलू
- 20 Aug 2025
19 अगस्त, 2025 को सुप्रीम कोर्ट की पाँच न्यायाधीशों वाली प्रेसीडेंशियल रेफरेंस बेंच ने कहा कि तामिलनाडु में गवर्नर द्वारा 2020 से लंबित रखे गए महत्वपूर्ण राज्य विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई “अत्यंत गंभीर स्थिति” का समाधान हो सकती है। बेंच ने स्पष्ट किया कि इसका उद्देश्य पूर्व निर्णय को चुनौती देना या ओवररूल करना नहीं है।
मुख्य तथ्य:
- लंबित विधेयक: तामिलनाडु में 10 महत्वपूर्ण विधेयक 2020 से गवर्नर द्वारा लंबित रखे गए थे।
- गवर्नर का अधिकार: गवर्नर को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधेयकों को स्वीकृति देने या रोकने की स्वतंत्र शक्ति प्राप्त है, यह मंत्रिपरिषद की सलाह पर निर्भर नहीं।
- न्यायालय की भूमिका: प्रेसीडेंशियल रेफरेंस बेंच का उद्देश्य संवैधानिक संतुलन बनाए रखना है, न कि कार्यपालिका या विधानपालिका की भूमिका में हस्तक्षेप।
- अनुच्छेद 142 और 143: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों से ‘मानी स्वीकृति’ देने का निर्णय लिया था, जबकि इस रेफरेंस मामले में अनुच्छेद 143 के तहत प्रश्न उठाए गए हैं।
- संविधान की आधारशिला: शीर्ष न्यायिक अधिकारियों ने संविधान की मूल संरचना और शक्तियों के संतुलन का सम्मान करने पर बल दिया, न्यायपालिका को कार्यपालिका या विधानपालिका की प्रकिया पर हावी न होने को कहा।
- अनुच्छेद 200, 142, और 143:
- अनुच्छेद 200 राज्यपाल को देता है कि वे विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने, अस्वीकार करने, अथवा राष्ट्रपति के ध्यानार्थ भेजने का निर्णय लें।
- अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को “न्याय का उपयुक्त उपाय” देने की विशेष शक्ति देता है।
- अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को कानूनी या संवैधानिक प्रश्नों पर सुप्रीम कोर्ट से राय लेने का अधिकार देता है।
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