विधेयक पर अनिश्चितकालीन रोक संभव नहीं: सुप्रीम कोर्ट
- 03 Sep 2025
2 सितम्बर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में पांच-सदस्यीय बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपाल संविधान के तहत राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।
- यह टिप्पणी राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भेजे गए उस राष्ट्रपति के संदर्भ (प्रेसिडेंशियल रेफरेंस ) पर हुई जिसमें राज्यपाल व राष्ट्रपति के विधेयकों पर निर्णय लेने के समय पर स्पष्टिकरण मांगा गया था।
मुख्य तथ्य:
- मूल टिप्पणी: मुख्यन्यायधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ, पी. एस. नरसिम्हा, सूर्यकांत एवं अतुल चंदुरकर की बेंच ने कहा – राज्यपाल जनप्रतिनिधि विधानमंडल की ‘बुद्धिमत्ता’ को अनिश्चितकाल तक स्थगित नहीं कर सकते और न ही संविधान के क्रियान्वयन में बाधा बन सकते हैं।
- महत्वपूर्ण संविधान अनुच्छेद: अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल को शीघ्र निर्णय लेना अनिवार्य; राज्यपाल के पास बिल मिलते ही या तो सहमति, असहमति या राष्ट्रपति को आरक्षित करने का सीमित विकल्प है।
- प्रत्येक मामले पर विशिष्ट समय-सीमा: पीठ ने कहा कि सामान्य समयसीमा तय करना न्यायिक सीमाओं का अतिक्रमण हो सकता है; परन्तु प्रत्येक अलग मामले की परिस्थितियों के अनुसार समयसीमा निश्चित की जा सकती है।
- जवाबदेही और ज्यूडिशल समीक्षा: राज्यपाल की विवेकाधिकार शक्तियां पूर्णतः न्यायिक समीक्षा के दायरे में और संविधान के प्रभावी संचालन के लिए उत्तरदायी हैं।
- संघीय ढांचे की रक्षा: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक मौन (constitutional silence) का दुरुपयोग शासन को अवरोधित करने हेतु नहीं किया जा सकता और लम्बी देरी लोकतंत्र व संघीय संरचना को नुकसान पहुंचाती है।
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