दो सुपरमैसिव ब्लैक होल की प्रत्यक्ष परिक्रमा की खोज
- 11 Oct 2025
10 अक्टूबर, 2025 को अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम (जिसमें ARIES, नैनीताल व TIFR, मुंबई के भारतीय शोधकर्ता शामिल हैं) ने पहली बार डायरेक्ट रेडियो इमेज में दो सुपरमैसिव ब्लैक होल को परिक्रमा करते हुए देखा- जो लगभग 5 अरब प्रकाश-वर्ष दूर, ‘OJ287’ नामक क्वासर (परम चमकीला आकाशगंगा केंद्र) में हैं।
मुख्य तथ्य:
- OJ287 प्रणाली: OJ287 एक क्वासर है, जिसमें दो सुपरमैसिव ब्लैक होल हैं—एक बड़ा और दूसरा उससे छोटा। ये एक-दूसरे की परिक्रमा लगभग हर 12 साल में पूरी करते हैं, और अपने आसपास की गैस-धूल को खींचकर अति-चमक उत्पन्न करते हैं।
- इतिहास: OJ287 की चमकें 19वीं सदी से देखी जा रही थीं; 1982 में इसकी 12-वर्षीय आवधिकता (flickering) के आधार पर वैज्ञानिकों ने दो ब्लैक होल की भविष्यवाणी की थी, लेकिन अब तक इसे प्रत्यक्ष देखा नहीं गया था।
- टेक्नोलॉजी व टीम: इस ऐतिहासिक इमेज को पृथ्वी आधारित रेडियो टेलीस्कोपों और ‘RadioAstron’ स्पेस टेलीस्कोप (जो चांद की कक्षा के करीब तक जाता है) की संयुक्त शक्तियों से प्राप्त किया गया—रेज़ोल्यूशन पृथ्वी के सभी टेलीस्कोपों से 1 लाख गुना तीक्ष्ण था। अध्ययन में भारतीय वैज्ञानिक एलोक सी. गुप्ता, शुभम किशोर (ARIES) व अचार्य गोकाकुमार (TIFR) महत्त्वपूर्ण भूमिका में रहे।
- इमेज व प्रमाण: पहली बार रेडियो तरंगों से दोनों ब्लैक होल के अलग-अलग स्थानों का ‘स्पॉट’ दिखा—सिर्फ परिकल्पना ही नहीं, बल्कि इमेजिंग से ‘डायरेक्ट प्रोफ’। छोटे ब्लैक होल को उच्च ऊर्जा-जेट (particle jet) फेंकते देखा गया, जो कक्षा में घूमते हुए टेढ़ा-मेढ़ा (twisting tail) बनाता है।
- भविष्य का महत्व: जब ये ब्लैक होल अंत में टकराएंगे, तब ‘gravitational waves’ की प्रचंड विकिरण उत्पन्न होगी—जिन्हें LIGO, Virgo जैसी वेधशालाएँ पकड़ सकती हैं। OJ287 सिस्टम ऐसी टक्कर की विज्ञान प्रयोगशाला है।
- भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान: दो उच्चस्तरीय विज्ञान पत्रों (2018, 2021) में TIFR-मुंबई व ARIES-नैनीताल के वैज्ञानिकों की गणनाओं और मॉ़डलिंग से OJ287 की कक्षा, ब्लैक होल स्थान व फिजिक्स की पुष्टि हुई।
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