भारत के तीन प्रमुख बंदरगाह बने 'ग्रीन हाइड्रोजन हब'
- 11 Oct 2025
10 अक्टूबर, 2025 को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) ने गुजरात का दीनदयाल पोर्ट, तमिलनाडु का वी.ओ. चिदंबरनार पोर्ट एवं ओडिशा का पारादीप पोर्ट को 'ग्रीन हाइड्रोजन हब' के रूप में औपचारिक मान्यता दी।
मुख्य तथ्य
- मिशन का उद्देश्य: राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन भारत को हरित हाइड्रोजन और उसके डेरिवेटिव्स (मसलन, अमोनिया) के उत्पादन, उपयोग और निर्यात का वैश्विक हब बनाना है।
- इन बंदरगाहों का चयन क्यों?
- ये बंदरगाह अंतरराष्ट्रीय व्यापार व भारी उद्योगों (शिपिंग, रसद, रिफाइनरियां, उर्वरक) के लिए प्रमुख केंद्र हैं।
- निर्यात, उत्पादन, स्टोरेज और सप्लाई—ग्रीन हाइड्रोजन इकोसिस्टम के सभी घटकों का एकीकृत विकास।
- हाइड्रोजन वैली क्लस्टर मॉडल—इंडस्ट्री एवं अनुसंधान संस्थानों की साझेदारी, निवेश आकर्षण, इकोनॉमिज़ ऑफ़ स्केल और तकनीकी नवाचार को बढ़ावा।
- तकनीकी पहल: दीनदयाल पोर्ट (कांडला) पर जुलाई 2025 में देश का पहला पोर्ट आधारित 1 मेगावाट ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट चालू हुआ, जो पूर्णतः “मेक इन इंडिया” इलेक्ट्रोलाइज़र टेक्नोलॉजी से संचालित है।
- सस्टेनेबिलिटी का केंद्र: ये हब्स भारी पोर्ट ऑपरेशंस (जैसे हाइड्रोजन से चालित बसें, लाइटिंग, फ्यूल ऑपरेशंस) में ग्रीन हाइड्रोजन का तत्काल लाभ देंगे और दीर्घकालीन लक्ष्य नेट-जीरो, कार्बन कटौती और ग्रीन इंडस्ट्रियल ट्रांजिशन के हैं।
- नीतिगत लाभ: इन पोर्ट जोनों में स्थापित ग्रीन हाइड्रोजन परियोजनाएँ विविध सरकारी योजनाओं से प्रोत्साहन व लाभ के लिए पात्र होंगी।
- व्यापक प्रभाव: भारत की समुद्री अर्थव्यवस्था नवाचार, निर्यात, ऊर्जा–आत्मनिर्भरता और कार्बन-मुक्त परिवहन क्षेत्र को तेज़ी से बदलने की दिशा में यह बड़ा कदम है।
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