द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग

  • 08 Feb 2020

  • हाल ही में दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग ने देश भर के न्यायिक अधिकारियों के वेतन, पेंशन और भत्तों को लेकर संशोधित प्रस्तावों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की

पृष्ठभूमि

  • प्रथमन्यायिक वेतन आयोग की रिपोर्ट (1996) और छठे केंद्रीय वेतन आयोग (2006) के पश्चात सुप्रीम कोर्ट (SC) ने 2009 में न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान, भत्ते और अनुलाभ पर संस्तुति प्रस्तुत करने के लिए पद्मनाभन आयोग का गठन किया था.
  • हालांकिकुछ नियमों के विरोध के चलते अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ ने न्यायिक अधिकारियों के अलग वेतन आयोग की नियुक्ति के चलते सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर दिया.
  • जिसके कारण सर्वोच्च न्यायलय ने अनुच्छेद 32 के तहत मई 2017 में द्वितीय न्यायिक वेतन आयोग के गठन की अनुमति दी.

प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग (NJPC)

  • प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग 1996 में नियुक्त किया गया था जिसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति के. जगन्नाथ सेट्टी थे.
  • आयोग ने 1999 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें न्यायिक अधिकारियों की सेवा के न सिर्फ वेतन संरचना वभत्ते को बल्कि न्यायालयों और न्यायिक प्रशासनों से संबंधित विभिन्न अन्य पहलुओं को व्याख्यायित किया.

पद्मनाभन आयोग

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अप्रैल 2009 मेंन्यायमूर्ति ई. पद्मनाभन के अंतर्गत ‘वन मैन कमीशन’ की नियुक्ति की गई. जो प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के आधार पर पूरे देश में कार्यरत और सेवानिवृत्त सभी न्यायिक अधिकारियों के वेतनमान को निर्धारित करे
  • आयोग ने जुलाई 2009 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और जिसमें न्यायिक अधिकारियों के तत्कालीन मौजूदा वेतन में औसतन 3.07 गुना बढ़ोत्तरी की सिफारिश की. 

दूसरे न्यायिक वेतन आयोग के बारे में

  • सर्वोच्च न्यायालयके आदेशानुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल नवंबर 2017 में अधीनस्थ न्यायपालिका के लिए एक दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की नियुक्ति को मंजूरी दी. जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. पी. वेंकटरामा रेड्डी ने की आयोग द्वारा 2018 में अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई. 

उद्देश्य

  • पूरे देश में अधीनस्थ न्यायपालिका के न्यायिक अधिकारियों के लिए एक समान वेतनमान की सिफारिश करना. 

आवश्यकता

  • कर्तव्यों के निर्वहन के आधार पर न्यायिक अधिकारियों व राज्य सरकार के अन्य अधिकारियों के साथ समतुल्य व्यवहार नहीं किया जा सकता, भले ही यह अनिवार्य रूप से एक राज्य का विषय हो.
  • यद्यपि केंद्र सरकार के कर्मचारियोंके वेतनमान में संशोधन किया गया है. लेकिन फिर भी अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को 2010 में उनके अंतिम वेतन वृद्धि के अनुसार वेतनमान मिलता है.

संदर्भ का शब्द

  • पूरे देश में अधीनस्थ न्यायपालिका से संबंधित न्यायिक अधिकारियों की वेतन संरचना और उपलब्धियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को विकसित करने के लिए.
  • राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में न्यायिक अधिकारियों की सेवाओं की वर्तमान संरचना और स्थिति की जांच करना. अधीनस्थ न्यायपालिका के अधिकारियों और अन्य सिविल सेवकों के सेवानिवृत्ति के बाद के लाभ जैसे पेंशन व अन्य प्रासंगिक कारकों सहित, की उपयुक्त सिफारिशें करना.
  • एक स्वतंत्र आयोग द्वारा समय-समय पर अधीनस्थ न्यायपालिका के सदस्यों के वेतन और सेवा की शर्तों की समीक्षा के लिए एक स्थायी तंत्र की स्थापना के संबंध में संस्तुति देना.

मुख्य सिफारिशें

वेतन

  • विभिन्न वैकल्पिक तरीकों पर विचार करने के बाद वेतन मैट्रिक्स को अपनाने की अनुरोध की गई. जो मौजूदा वेतन में 2.81 गुना करके तैयार किया जायेगा. उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में 3% की वृद्धि को विनिमेय रूप से लागू होगा.
  • आयोग द्वारा विकसित संशोधित वेतन संरचना के अनुसार-जूनियर सिविल जज / प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट, जिनकी भुक्तभोगी वेतन रु.27,700 / - थी, को अब 77,840 / - रु.मिलेगा.
  • जिला न्यायाधीशों के वेतन में चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में क्रमशः 10% और 5% की वृद्धि का प्रस्ताव है.
  • संशोधित वेतन और पेंशन 1 जनवरी, 2016 से लागू होगा.
  • अंतरिम राहत को समायोजित करने के बाद वर्ष 2020 के दौरान बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा.

पेंशन

  • प्रस्तावित संशोधित वेतनमान,1 जनवरी, 2016वर्ड इकनोमिक फोरम के नसीहत के आधार पर काम किए गए अंतिम आहरित वेतन का 50% पेंशन दी जाएगी.
  • पारिवारिक पेंशन अंतिम आहरित वेतन का 30% होगी. पेंशन की अतिरिक्त मात्रा 75 वर्ष (80 वर्ष के बजाय) को पूरा करने पर शुरू होगी और उसके बाद विभिन्न चरणों में उसी प्रतिशत के अनुपात में वृद्धि होगी.
  • पेंशनधारियों / पारिवारिक पेंशनधारियों की सहायता के लिए जिला न्यायाधीशों द्वारा नोडल अधिकारियों को नामित किया जाएगा. नई पेंशन योजना (एनपीएस) को बंद करने की सिफारिश की गई. जो 2004  में या उसके बाद सेवा में प्रवेश करने वालों के लिए लागू की जा रही है. इसके अलावा अत्यधिक लाभकारी पुरानी पेंशन प्रणालीको पुनर्जीवित किया जाएगा. 

भत्ता

  • मौजूदा भत्तों में पर्याप्त वृद्धि की गई है और कुछ नई सुविधाएँ जोड़ी गई.
  • हालांकि शहरी मुआवजा भत्ता (CCA) को बंद करने का प्रस्ताव है.
  • घर का किराया भत्ता (HRA) सभी राज्यों में समान रूप से बढ़ाने का प्रस्ताव.
  • कुछ नए भत्ते अर्थात बच्चों के लिए शिक्षा भत्ता, घर व्यवस्थीकारणभत्ता, पूल कार सुविधा के एवज में परिवहन भत्ता प्रस्तावित किया गया.

चिकित्सा की सुविधाएं

  • चिकित्सा सुविधाओं में सुधार व नुकशान भरपाई की प्रक्रिया का सरलीकरण किया गया.
  • पेंशनभोगियों और पारिवारिक पेंशनधारियों को भी चिकित्सा की सुविधाएं दी जायेंगी.

महत्ता

  • न्यायपालिका को और अत्यधिक कुशल बनाना: आयोग की सिफारिशें न्यायिक प्रशासन में कार्य क्षमता को बढ़ावा देने व न्यायपालिका के आकार को अनुकूलित करने आदि में मदद करेंगी और पहले की सिफारिशों के कार्यान्वयन में निर्मित विसंगतियों को दूर करेगी.

अधीनस्थ न्यायपालिका - न्याय प्रणाली में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका

  • अधीनस्थ न्यायपालिका न्यायिक प्रक्रिया की रीढ़ की हड्डी है. अधिकांश आम लोगविशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग न्यायिक पदानुक्रम (judicial hierarchy) में न्यायालयों के निम्नतम स्तर को जानते हैं. अर्थाततालुका या मंडल क्षेत्रों में स्थित न्यायालय. मुख्य रूप से इन्ही न्यायालयों में"न्यायिक प्रक्रियाओं की गतिशीलता" से ज्यादातर जनता का सामना होता है.
  • अधीनस्थ न्यायालय और जिला न्यायलय ही न्यायपालिका का आंख और कान है। न्यायपालिका की छवि उनके कुशल कामकाज और न्याय करने की क्षमता पर निर्भर करती है. जरुरी है कि उनकी क्षमता का सबसे बेहतर उपयोग किया जाए.
  • अधीनस्थ न्यायालय, समाज में कानून व्यवस्था को बनाए रखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. ये ही न्याय व्यवस्था में जनता का विश्वास हैं जो न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बनाए रखता है. जनता के भीतर विश्वास को पैदा करने और उसे बढ़ावा देने में जिला और अधीनस्थ न्यायपालिका की भूमिका इसलिए बहुत महत्वपूर्ण है.
  • अधीनस्थ न्यायपालिका का गठन करने वाले न्यायाधीशों के लिए पर्याप्त मेहनताना और काम करने की उचित परिस्थिति सुनिश्चित करने से न्यायिक स्वतंत्रता को बढ़ावा देने में मदद मिलेगा. जो कि संविधान की मूल भावना है.