CITES की कॉप-19 बैठक

  • 05 Dec 2022

14 से 25 नवंबर 2022 के मध्य वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species - CITES) के पक्षकारों की 19वीं बैठक (COP19) पनामा में आयोजित की गई।

  • इस सम्मेलन में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा तथा संरक्षण संबंधी पहलों की शुरुआत की गई।

सम्मेलन के मुख्य बिंदु

  • भारत द्वारा प्रस्ताव: भारत द्वारा इस सम्मेलन में सॉफ्टशेल कछुए (Leith’s Softshell Turtle), जयपुर हिल गेको (Jeypore Hill Gecko) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल (Red-Crowned Roofed Turtle) को CITES के परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
    • सॉफ्टशेल कछुए को निल्सोनिया लेथि (Nilssonia leithi) कहा जाता है। जयपुर हिल गेको को साइरटोडैक्टाइलस जेपोरेंसिस (Cyrtodactylus jeyporensis) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल को बटागुर कचुगा (Batagur kachuga) कहा जाता है। भारत के इस प्रस्ताव को वर्तमान इस बैठक में अपनाया लिया गया है।
  • पैंगोलिन का संरक्षण: पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किये जाने वाला जानवर है, इसको तस्करी से संरक्षित किए जाने से संबंधित पहल की शुरुआत की गई है।
    • 19वें सम्मेलन में भागीदार देशों ने पैंगोलिन के भागों और इसके ‘डेरिवेटिव’ को दवा बनाने के लिए संदर्भित न करने का आग्रह किया है ताकि इस प्रजाति को अवैध शिकार से बचाया जा सके।
  • समुद्री खीरा (Sea Cucumbers): इस सम्मलेन में समुद्री खीरे के अवैध व्यापार पर भी नियंत्रण लगाने का प्रयास किया गया तथा समुद्री खीरे को संकटग्रस्त (threatened) प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • हाथी दांत का व्यापार: CITES की CoP19 बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव पर भी मतदान किया गया, जिसमें भारत ने भाग नहीं लिया।
    • हालांकि इस बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित व्यापार की अनुमति देने वाला प्रस्ताव विफल हो गया, यह प्रस्ताव नामीबिया, बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे द्वारा लाया गया था ।

वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन

  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों और वनस्पतियों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा नहीं है।
  • इसके अंतर्गत वर्तमान में जानवरों और पौधों की 37, 000 से अधिक प्रजातियों की अलग-अलग श्रेणियों को विभिन्न परिशिष्टों में रखकर सुरक्षा प्रदान की जाती है।
  • यह देशों के बीच बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय समझौता (संधि) है, जिसे 1963 में IUCN के सदस्यों द्वारा अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था। 1975 में यह लागू हुआ।
  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार उनके अस्तित्व के लिए खतरा नहीं हो।
  • CITES सदस्य देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी (legally binding) है। हालांकि यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है। भारत इसका एक हस्ताक्षरकर्ता है और 1976 में CITES कन्वेंशन की पुष्टि भी कर चुका है।

CITES के तीन परिशिष्ट

  • परिशिष्ट I : यह उन प्रजातियों को सूचीबद्ध करता है जिनके विलुप्त होने की संभावना हैं। इन प्रजातियों के व्यापार-नमूनों को केवल असाधारण परिस्थितियों में अनुमति दी जाती है।
  • परिशिष्ट II : वे प्रजातियां हैं जिन्हें विलुप्त होने का खतरा नहीं है, लेकिन अगर व्यापार प्रतिबंधित नहीं है तो संख्या में गंभीर गिरावट हो सकती है। प्रजातियों का व्यापार पूर्व अनुमति से हो सकता है।
  • परिशिष्ट III: इसमें वे प्रजातियां आती हैं जो कम से कम एक ऐसे देश में संरक्षित हों जो एक CITES सदस्य देश हो तथा जिसने उस प्रजाति के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने हेतु सहायता मांगी हो।