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पर्यावरण:
वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2023
11 जनवरी, 2023 को विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2023 (Global Risks Report 2023) जारी की गई।
- इस रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर अगले दो वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं और चरम मौसमी घटनाओं के अपेक्षाकृत अधिक घटित होने की संभावना है|
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- सबसे गंभीर वैश्विक जोखिम: जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता (Failure to Mitigate Climate Change) तथा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन की विफलता (Failure of Climate Change Adaptation) वैश्विक स्तर पर देखी जा रही है, जो अगले एक दशक में सबसे गंभीर वैश्विक जोखिम के रूप में उभर सकती है|
- अगले दो वर्षों में जीवन निर्वाह की लागत (Cost of living) शीर्ष वैश्विक जोखिम के रूप में उभर सकती है, जबकि जलवायु कार्रवाई की विफलता (Climate Action Failure) अगले एक दशक में शीर्ष वैश्विक चुनौती बन सकता है|
- जैव विविधता: वैश्विक स्तर पर जैव विविधता हानि और पारिस्थितिक तंत्र का पतन तेजी से दर्ज किया जा रहा है। इसका कारण जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने (address climate change) से संबंधित जलवायु कार्रवाई की विफलता है|
- उत्सर्जन लक्ष्य तथा वैश्विक तापन: विश्व के विभिन्न देशों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन किया जा रहा है, जिससे वायुमंडल में इनका सांद्रण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है।
- हरित गृह गैसों के उत्सर्जन कटौती से संबंधित वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना कम है, जिसके कारण वैश्विक तापन के 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित होने की संभावना भी कम है।
- शमन प्रयास: भू-राजनीतिक तनावों तथा संसाधनों की बढ़ती मांग ने शमन (Mitigation) प्रयासों की गति और पैमाने को कम कर दिया है।
- उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन संघर्ष के चलते यूरोप के विभिन्न देशों ने रूस से पेट्रोलियम पदार्थों के आयात में कमी कर दी है| ऑस्ट्रिया, इटली, नीदरलैंड और फ्रांस जैसे कुछ देशों द्वारा कोयला आधारित विद्युत स्टेशनों को फिर से शुरू किया गया है।
- अधिक प्रभावित देश: प्राकृतिक आपदाओं या चरम मौसमी घटनाओं का प्रभाव निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर अधिक होता है।
- भारत सहित लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया के विकासशील तटीय देशों के लिए प्राकृतिक आपदाएँ और चरम मौसमी घटनाएँ शीर्ष जोखिम के रूप में उभरी हैं।
भारत विशिष्ट अवलोकन
- चरम मौसमी घटनाएं: 1 जनवरी, 2022 से 30 नवंबर, 2022 के बीच 334 दिनों में से 291 दिन चरम मौसमी घटनाएं दर्ज की गईं।
- इसका अर्थ यह है कि इन 11 महीनों में 87 प्रतिशत से अधिक समय देश के किसी न किसी हिस्से में किसी न किसी प्रकार की चरम मौसमी घटना दर्ज की गई।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तथा मौसमी घटनाओं का अंतर्संबंध: मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि की है। यह चरम घटनाओं तथा मानव जनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के मध्य संबंध को दर्शाता है|
पीटी फैक्ट : विश्व आर्थिक मंच
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समतापमंडलीय ओजोन परत में सुधार
9 जनवरी, 2023 को अमेरिकी मौसम विज्ञान सोसायटी की 103वीं वार्षिक बैठक के दौरान समतापमंडलीय ओजोन परत (Stratospheric Ozone Layer) पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।
- रिपोर्ट के अनुसार समताप मंडल की सुरक्षात्मक ओज़ोन परत में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों की मानवों तक सीधी पहुँच घटी है।
- रिपोर्ट का शीर्षक: ओजोन क्षरण का वैज्ञानिक आकलन 2022 (Scientific Assessment of Ozone Depletion 2022)।
- जारीकर्ता संस्थान/संगठन: ओजोन क्षयकारी पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol on Ozone Depleting Substances) के वैज्ञानिक मूल्यांकन पैनल की यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र द्वारा समर्थित विशेषज्ञों के एक दल द्वारा तैयार की गई है। इसे निम्नलिखित संगठनों के सहयोग से विकसित किया गया है-
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO),
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP),
- नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA),
- अमेरिकी वाणिज्य विभाग तथा
- यूरोपीय आयोग।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- सुधार: विशेषज्ञों द्वारा किए गए आकलन के अनुसार, अगले 4 दशकों में समतापमंडलीय ओजोन का स्तर, 1980 के स्तर तक पहुँचने की संभावना है।
- अंटार्कटिका: रिपोर्ट के अनुसार, यदि वर्तमान नीतियों को लागू करना जारी रखा जाता है, तो अंटार्कटिका के ऊपर स्थित विशाल ओजोन छिद्र 2066 तक ठीक हो सकता है|
- आर्कटिक तथा शेष विश्व: समतापमंडलीय ओजोन का स्तर आर्कटिक के ऊपर 2045 तक तथा शेष वैश्विक स्तर पर 2040 तक 1980 के स्तर तक पहुंचने की उम्मीद है|
- सुधार का कारण: ओजोन परत में सुधार तथा ओजोन छिद्र के कम होने का प्रमुख कारण 1989 के मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन तथा कुछ हानिकारक ओजोन क्षयकारी पदार्थ (Ozone Depleting Substances – ODS) का सफलतापूर्वक उन्मूलन है।
- ODS उपयोग का वर्तमान स्तर: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल द्वारा प्रतिबंधित लगभग 99 प्रतिशत पदार्थों का उपयोग नहीं हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप ओजोन परत के स्तर में धीमी लेकिन निश्चित गति से सुधार हुआ है।
समतापमंडलीय ओजोन संस्तर
- परिचय: ओजोन (तीन ऑक्सीजन परमाणुओं वाला एक अणु या O3) मुख्य रूप से ऊपरी वायुमंडल में समताप मंडलीय संस्तर में पाई जाती है, जो पृथ्वी की सतह से 10 से 50 किमी. के बीच स्थित है।
- महत्व: यह पृथ्वी पर जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है। पराबैंगनी किरणों को त्वचा कैंसर तथा पौधों और जानवरों में कई अन्य बीमारियों और विकृतियों का कारण माना जाता है।
- सामान्य अवस्था: सामान्यतः ओजोन समताप मंडल में अत्यंत कम सांद्रता में मौजूद है।
ओजोन छिद्र क्या है?
- 1980 के दशक की शुरुआत में पहली बार ओजोन परत में क्षरण दर्ज किया गया था तथा यह गिरावट दक्षिणी ध्रुव पर कहीं अधिक स्पष्ट थी।
- इसी समस्या को आमतौर पर ओजोन परत में ‘छिद्र’ के रूप में जाना जाता है, परन्तु वास्तव में यह ओजोन अणुओं की सांद्रता में कमी है।
- क्षरण: कई प्रकार के रसायनों के निर्माण से ओजोन परत का क्षरण होता है। अंटार्कटिका पर वसंत के मौसम में रासायनिक प्रक्रियाओं से समताप मंडलीय ओजोन को सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है।
- उस क्षेत्र में मौजूद विशेष मौसम तथा रासायनिक स्थितियों के कारण भी ओजोन छिद्र का निर्माण होता है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
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राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
4 जनवरी, 2023 को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 20,000 करोड़ रुपये की लागत वाले 'राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (National Green Hydrogen Mission-NGHM) को मंजूरी दी।
- NGHM राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन (NHM) का एक भाग है, जिसकी घोषणा वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट 2021-22 में की थी।
- इसे हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने तथा भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक देश बनाने हेतु एक विशिष्ट कार्यक्रम के रूप में आरंभ किया गया है।
मिशन के संदर्भ में
- नोडल मंत्रालय: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय।
- उद्देश्य: भारत को हरित हाइड्रोजन के उपयोग, उत्पादन तथा निर्यात हेतु 'वैश्विक केंद्र' (Global Center) के रूप में विकसित करना।
- लक्ष्य: इसके लक्ष्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- देश में वर्ष 2030 तक लगभग 125 गीगावाट (GW) की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करना।
- प्रति वर्ष कम-से-कम 5 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का विकास करना।
- समग्र रूप से लगभग 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश करके देश में 6 लाख नौकरियों को सृजित करना।
- जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक की शुद्ध कमी लाना तथा देश में वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 मीट्रिक टन की कमी करना।
मिशन के तहत उप योजनाएं
- हरित हाइड्रोजन संक्रमण कार्यक्रम हेतु रणनीतिक हस्तक्षेप (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition Programme-SIGHT): इसके माध्यम से इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू निर्माण को निधि प्रदान की जाएगी तथा हरित हाइड्रोजन के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा।
- हरित हाइड्रोजन हब (Green Hydrogen Hub): हरित हाइड्रोजन के उत्पादन तथा उपयोग की व्यापक क्षमता वाले राज्यों एवं क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें हरित हाइड्रोजन हब के रूप में विकसित किया जाएगा।
- महत्व: इस मिशन से उद्योगों, परिवहन साधनों तथा ऊर्जा के अन्य क्षेत्रों में डीकार्बोनाइज़ेशन की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा।
- इससे आयातित जीवाश्म ईंधन एवं फीडस्टॉक पर निर्भरता कम करने में सहायता मिलेगी।
- घरेलू विनिर्माण क्षमता में वृद्धि करने, रोजगार की अतिरिक्त संभावनाएं उत्पन्न करने तथा नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देने में भी मदद मिल सकेगी।
हाइड्रोजन क्या है?
- परिचय: हाइड्रोजन एक रासायनिक तत्व है जिसे प्रतीक H और परमाणु संख्या 1 से निरूपित किया जाता है।
- विशेषताएं: यह अत्यंत ही हल्का रासायनिक पदार्थ है जो ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा (सभी सामान्य पदार्थों का लगभग 75%) में उपलब्ध है।
- यह तत्व रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, गैर-विषैला (Non-toxic) एवं अत्यधिक ज्वलनशील माना जाता है।
- हाइड्रोजन ईंधन (Hydrogen Fuel) शून्य-उत्सर्जन ईंधन है। इसे ईंधन सेल (Fuel Cells) अथवा आंतरिक दहन इंजनों (Internal Combustion Engines) में और अंतरिक्ष यान प्रणोदन (Spacecraft Propulsion) के लिए ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
हाइड्रोजन का निष्कर्षण
- प्रकृति में हाइड्रोजन अन्य तत्वों के साथ संयोजन में उपलब्ध है। इसका उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में करने के लिए इसे प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले यौगिकों जैसे जल (दो हाइड्रोजन परमाणु तथा एक ऑक्सीजन परमाणु के संयोजन) से निष्कर्षित किया जाता है।
- जिन स्रोतों और प्रक्रियाओं से हाइड्रोजन प्राप्त होता है उन्हें विभिन्न रंगों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
- ब्राउन हाइड्रोजन (Brown Hydrogen): जब कोयले को उच्च दबाव की स्थिति में परिवर्तित (Transformed) किया जाता है तो इस प्रक्रिया में ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन होता है। इसमें निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस को वापस हवा में छोड़ दिया जाता है।
- ग्रे हाइड्रोजन (Grey Hydrogen): जब मीथेन को दहन करके प्राकृतिक गैस में परिवर्तित किया जाता है तो ग्रे हाइड्रोजन उत्पादित होती है। दहन की प्रक्रिया से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस को वापस हवा में छोड़ दिया जाता है।
- ब्लू हाइड्रोजन (Blue Hydrogen): ब्लू हाइड्रोजन का उत्पादन भी प्राकृतिक गैस द्वारा किया जाता है, किंतु इसमें अंतिम उत्पाद के रूप में निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को संग्रहीत करके कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जाता है।
- ग्रीन हाइड्रोजन (Green Hydrogen): इलेक्ट्रोलिसिस नामक एक विधि का उपयोग करके जल से ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाता है, इस प्रक्रिया का संचालन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे पवन अथवा सौर ऊर्जा द्वारा किया जाता है।
लॉयन @ 47: विजन फॉर अमृतकाल
22 दिसंबर, 2022 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 'लॉयन @ 47: विजन फॉर अमृतकाल' (Lion @ 47: Vision for Amrutkal) शीर्षक से एक प्रोजेक्ट लायन दस्तावेज़ (Project Lion document) लॉन्च किया गया।
महत्वपूर्ण बिंदु
- गुजरात का बर्दा वन्यजीव अभयारण्य: इसकी पहचान एशियाई शेरों (Asiatic lions) के संभावित दूसरे घर (Potential second home) के रूप में की गई है।
- यह पोरबंदर के पास स्थित है जो गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir National Park) से लगभग100 किलोमीटर दूर है।
- शेर के संदर्भ में: पृथ्वी पर जाने वाली सबसे बड़ी पशु प्रजातियों में से एक 'शेर' (Lion) को वैज्ञानिक रूप से 'पैंथेरा लियो' (Panthera Leo) नाम से जाना जाता है।
- एशियाई शेरों की IUCN स्थिति: लुप्तप्राय (Endangered)
प्रोजेक्ट लॉयन (Project Lion)
- परिचय: इस परियोजना के अंतर्गत गुजरात में संरक्षण एवं पर्यावरण-विकास को एकीकृत (Integrating conservation and eco-development) करके एशियाई शेरों के पारिस्थितिकी-आधारित संरक्षण (Ecology-based conservation) की परिकल्पना की गई है।
- इस परियोजना को गुजरात में गिर राष्ट्रीय उद्यान में लागू किया जा रहा है, जो वर्तमान समय में भारत में एशियाई शेरों का एकमात्र निवास स्थान है।
- उद्देश्य: इसके उद्देश्यों में शामिल हैं-
- शेरों की बढ़ती आबादी के प्रबंधन हेतु उनके आवासों को सुरक्षित और पुनर्स्थापित करना।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ उनकी आजीविका एवं उत्पादन को बढ़ावा देना।
- शेर एवं चीते जैसी बिल्ली की विशाल प्रजातियों (Big Cats) में होने वाली बीमारियों के उपचार तथा रोगों के निदान के वैश्विक केंद्र के रूप में पहचान स्थापित करना।
- प्रोजेक्ट लायन पहल (Project lion initiative) के माध्यम से समावेशी जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देना।
- वितरण: एशियाई शेरों का वितरण वर्तमान समय में गुजरात के 9 जनपदों- जूनागढ़, गिर सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, बोटाड, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट एवं सुरेंद्रनगर के लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इस क्षेत्र को सामूहिक रूप से एशियाटिक लायन लैंडस्केप (Asiatic Lion Landscape) कहा जाता है।
CITES की कॉप-19 बैठक
14 से 25 नवंबर 2022 के मध्य वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species - CITES) के पक्षकारों की 19वीं बैठक (COP19) पनामा में आयोजित की गई।
- इस सम्मेलन में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा तथा संरक्षण संबंधी पहलों की शुरुआत की गई।
सम्मेलन के मुख्य बिंदु
- भारत द्वारा प्रस्ताव: भारत द्वारा इस सम्मेलन में सॉफ्टशेल कछुए (Leith’s Softshell Turtle), जयपुर हिल गेको (Jeypore Hill Gecko) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल (Red-Crowned Roofed Turtle) को CITES के परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
- सॉफ्टशेल कछुए को निल्सोनिया लेथि (Nilssonia leithi) कहा जाता है। जयपुर हिल गेको को साइरटोडैक्टाइलस जेपोरेंसिस (Cyrtodactylus jeyporensis) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल को बटागुर कचुगा (Batagur kachuga) कहा जाता है। भारत के इस प्रस्ताव को वर्तमान इस बैठक में अपनाया लिया गया है।
- पैंगोलिन का संरक्षण: पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किये जाने वाला जानवर है, इसको तस्करी से संरक्षित किए जाने से संबंधित पहल की शुरुआत की गई है।
- 19वें सम्मेलन में भागीदार देशों ने पैंगोलिन के भागों और इसके ‘डेरिवेटिव’ को दवा बनाने के लिए संदर्भित न करने का आग्रह किया है ताकि इस प्रजाति को अवैध शिकार से बचाया जा सके।
- समुद्री खीरा (Sea Cucumbers): इस सम्मलेन में समुद्री खीरे के अवैध व्यापार पर भी नियंत्रण लगाने का प्रयास किया गया तथा समुद्री खीरे को संकटग्रस्त (threatened) प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया।
- हाथी दांत का व्यापार: CITES की CoP19 बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव पर भी मतदान किया गया, जिसमें भारत ने भाग नहीं लिया।
- हालांकि इस बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित व्यापार की अनुमति देने वाला प्रस्ताव विफल हो गया, यह प्रस्ताव नामीबिया, बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे द्वारा लाया गया था ।
वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों और वनस्पतियों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा नहीं है।
- इसके अंतर्गत वर्तमान में जानवरों और पौधों की 37, 000 से अधिक प्रजातियों की अलग-अलग श्रेणियों को विभिन्न परिशिष्टों में रखकर सुरक्षा प्रदान की जाती है।
- यह देशों के बीच बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय समझौता (संधि) है, जिसे 1963 में IUCN के सदस्यों द्वारा अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था। 1975 में यह लागू हुआ।
- इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार उनके अस्तित्व के लिए खतरा नहीं हो।
- CITES सदस्य देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी (legally binding) है। हालांकि यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है। भारत इसका एक हस्ताक्षरकर्ता है और 1976 में CITES कन्वेंशन की पुष्टि भी कर चुका है।
CITES के तीन परिशिष्ट
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अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल
22 नवंबर, 2022 को तमिलनाडु सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी कर मदुरै जिले के अरिट्टापट्टी और मीनाक्षीपुरम गांवों को राज्य का पहला जैव विविधता विरासत स्थल (Biodiversity Heritage Site) घोषित किया गया।
- यह तमिलनाडु का पहला और भारत का 35वाँ जैव विविधता विरासत स्थल है।
- इसे अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल (Arittapatti Biodiversity Heritage site) के रूप में जाना जाएगा।
अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल से संबंधित मुख्य तथ्य
- क्षेत्र एवं विस्तार: अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल का विस्तार 193.42 हेक्टेयर क्षेत्र पर होगा, जिसके अंतर्गत अरिट्टापट्टी गांव (मेलूर ब्लॉक) का 139.63 हेक्टेयर क्षेत्र तथा मीनाक्षीपुरम गांव (पूर्वी मदुरै तालुक) का 53.8 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा।
- कानूनी आधार: इसे जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 (Section 37 of the Biological Diversity Act, 2002) के तहत जैव विविधता विरासत स्थल घोषित किया गया है।
- स्थानिक जैव विविधता: अरिट्टापट्टी गांव अपने पारिस्थितिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है| यहाँ पक्षियों की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं| यह भारतीय पैंगोलिन, स्लेंडर लोरिस और अजगर जैसे वन्यजीवों का भी निवास स्थल है।
- इनमें तीन महत्वपूर्ण शिकारी पक्षियों (raptors) लैगर फाल्कन (Laggar Falcon), शाहीन फाल्कन (Shaheen Falcon) और बोनेली ईगल (Bonelli’s Eagle) की प्रजाति पाई जाती हैं।
- ऐतिहासिक महत्व: यहाँ की कई महापाषाण संरचनाएं (megalithic structures), रॉक-कट मंदिर (Rock-Cut Temples), तमिल ब्राह्मी शिलालेख (Tamil Brahmi inscriptions) और जैन संस्तर (Jain beds) इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को बढ़ाते हैं।
महत्व
- विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा: किसी क्षेत्र को जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित करने से इसके समृद्ध और विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने में मदद मिलती है।
- संरक्षण पहल का पूरक: यह कदम इस क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों के संरक्षण के विभिन्न पहलों के पूरक का कार्य करेगा और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों का निवारण किया जा सकेगा|
- जल संभरण (Watershed): यह क्षेत्र सात पहाड़ियों या इंसेलबर्ग की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है जो जल संभरण (Watershed) के रूप में काम करता है| इस क्षेत्र द्वारा 72 झीलों, 200 प्राकृतिक झरनों और तीन चेक डैम को जल प्राप्ति होती है।
- 16वीं शताब्दी में पांडियन राजाओं के शासनकाल के दौरान निर्मित एनाइकोंडन टैंक (Anaikondan tank) उनमें से एक है।
जैव विविधता विरासत स्थल
- जैव विविधता विरासत स्थल एक विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र होते हैं, जिनकी अपनी अनूठी पारिस्थितिक विशेषताएं होती हैं| यह स्थलीय, तटीय एवं अंतर्देशीय जल क्षेत्र हो सकता है, जहाँ समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है| इस प्रकार के स्थल पर दुर्लभ एवं संकटग्रस्त, कीस्टोन वन्य प्रजातियां पाई जाती हैं।
- जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37(1) में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों के परामर्श से जैव विविधता के अधिक महत्व वाले क्षेत्रों को “जैव विविधता विरासत स्थल” अधिसूचित कर सकती है।
- किसी स्थल को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित करने का उद्देश्य संरक्षण उपायों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
- किसी स्थान को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित कर देने से स्थानीय समुदायों की प्रचलित प्रथाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है।
सेना स्पेक्टैबिलिस : आक्रामक विदेशी प्रजाति
हाल ही में मुदुमलाई टाइगर रिजर्व द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सेना स्पेक्टाबिलिस (Senna spectabilis) नामक एक आक्रामक विदेशी प्रजाति का पेड़ मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (Mudumalai Tiger Reserve) के बफर जोन में काफी तेजी से प्रसार कर रहा है|
मुख्य बिंदु
- यह पेड़ मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (नीलगिरी पहाड़ी जिले) के 800 और 1,200 हेक्टेयर के भूमि पर विस्तारित हो चूका है।
- मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के बफर जोन में सिंगारा और मासीनागुडी वन पर्वतमाला क्षेत्र के साथ ही रिजर्व के कोर क्षेत्र में स्थित कारगुडी रेंज में भी इन पेड़ों की उपस्थिति है|
- संरक्षणवादियों का कहना है कि इस आक्रामक पौधे का स्थानीय जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और इससे वन्यजीवों के लिए भोजन की उपलब्धता सीमित हो गई है।
- सेना स्पेक्टाबिलिस को दक्षिण और मध्य अमेरिका से एक सजावटी तथाजलाऊ लकड़ी के रूप में उपयोग करने के लिए लाया गया था|
- मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (एमटीआर) तमिलनाडु राज्य के नीलगिरी जिले में स्थित है। इस टाइगर रिजर्व की सीमा कर्नाटक और केरल से लगी है|
आक्रामक विदेशी प्रजाति क्या है?
- आक्रामक विदेशी प्रजाति एक ऐसी प्रजाति होती है जो किसी ख़ास विशिष्ट स्थान की मूल निवासी नहीं होती है और यह एक हद तक पर्यावरण, मानव अर्थव्यवस्था या मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। ऐसी प्रजातियां पौधे या जानवर हो सकते हैं।
- आक्रामक विदेशी प्रजाति (invasive alien species - IAS)उस पारिस्थितिक तंत्र की संरचना में परिवर्तन का कारण बनती हैं।
- विश्व में लोगों और वस्तुओं की आवाजाही के कारण आक्रामक प्रजातियों का प्रसार होता है।
- आक्रामक प्रजातियों की समस्या का आइची जैव विविधता लक्ष्य-9 (Aichi Biodiversity Target - 9) और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य की धारा 15 में उल्लेख किया गया है।
मृदा कार्बन पृथक्करण के जरिये जलवायु परिवर्तन का न्यूनीकरण
हाल ही में, इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (International Crops Research Institute for The Semi-Arid Tropics - ICRISAT) ने एक मॉडलिंग अध्ययन प्रकाशित किया है। इस मॉडलिंग अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन को कम करने में मृदा कार्बन पृथक्करण (Soil Carbon Sequestration) मदद कर सकता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष
- इस मॉडलिंग अध्ययन में पाया गया कि उर्वरक, बायोचार (biochar) और सिंचाई का सही संयोजन मृदा कार्बन पृथक्करण (Soil Carbon Sequestration) को 300 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है|
- शोधकर्ताओं ने उर्वरकों के इष्टतम उपयोग से कार्बन में वृद्धि के साथ साथ उत्पादन में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
- मॉडलिंग अध्ययन के तहत महाराष्ट्र के पांच जिलों (जालना, धुले, अहमदनगर, अमरावती और यवतमाल) और ओडिशा के आठ जिलों (अंगुल, बोलांगीर, देवगढ़, ढेंकेनाल, कालाहांडी, केंदुझार, नुआपाड़ा और सुंदेगढ़) को शामिल किया गया था।
- दोनों राज्यों में मुख्य रूप से अर्ध-शुष्क जलवायु है जिसमें 600 मिलीमीटर और 1,100 मिमी के बीच वार्षिक वर्षा होती है।
- इन क्षेत्र में कपास, ज्वार, सोयाबीन, चना, अरहर और बाजरा जैसी महत्वपूर्ण फसलों का अध्ययन किया गया।
महत्व
- संपूर्ण खाद्य प्रणाली द्वारा लगभग एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) का उत्सर्जन होता है। इस मॉडलिंग अध्ययन के आधार पर कृषि क्षेत्र जलवायु संकट के विरुद्ध लड़ाई में सकारात्मक योगदान दे सकता है|
- इस कृषि मॉडलिंग अध्ययन के आधार पर वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ने (capture) और इसे मिट्टी में संग्रहीत (storing) किया जा सकता है।
- इससे कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों के स्थान पर एक समाधान बनाया जा सकता है।
- मृदा में कार्बन सीक्वेस्टिंग (sequencing) किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान कर सकती है।
- यह सतत विकास लक्ष्य 13 (एसडीजी 13: जलवायु कार्रवाई) के लक्ष्य के अनुरूप है जो जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करता है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान का हटाया जाना
3 नवंबर, 2022 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board - CPCB) द्वारा ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (चरण-IV) को हटा लिया गया है| CPCB द्वारा यह निर्णय दिल्ली में परिवेशी वायु की गुणवत्ता में सुधार के कारण लिया गया है|
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान क्या है?
- 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) द्वारा राज्य सरकार के प्रतिनिधियों तथा विशेषज्ञों के साथ मिलकर ‘ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान’ योजना (GRAP) का प्रस्ताव दिया गया था।
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान अर्थात जीआरपीए के अंतर्गत वायु प्रदूषण की गंभीरता के अनुसार प्रदूषण को रोकने के उपायों को सूचीबद्ध किया जाता है जो केवल आपातकालीन उपाय के रूप में काम करता है।
- इस योजना के अंतर्गत अलग-अलग राज्य सरकारों द्वारा औद्योगिक प्रदूषण, वाहन एवं दहन उत्सर्जन से निपटने के लिए वर्ष भर की जाने वाली कार्रवाई को नहीं शामिल किया गया है।
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान की कार्यप्रणाली
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान या GRAP आपातकालीन उपायों का एक सेट है जो एक निश्चित सीमा तक पहुंचने के बाद हवा की गुणवत्ता में और गिरावट को रोकने के लिए शुरू होता है। जीआरएपी का चरण 1 तब सक्रिय होता है जब एक्यूआई 'खराब' श्रेणी (201 से 300) में होता है।
- दूसरा, तीसरा और चौथा चरण तब सक्रिय होगा जब एक्यूआई क्रमशः 'बहुत खराब' श्रेणी (301 से 400), 'गंभीर' श्रेणी (401 से 500) तक पहुंच जाएगा।
GRAP को किस प्रकार लागू किया जाता है?
- सीएक्यूएम ने जीआरएपी के संचालन के लिए एक उप-समिति का गठन किया है। जीआरएपी को लागू करने के आदेश जारी करने के लिए उप-समिति को बार-बार मिलना पड़ता है।
- इस निकाय में सीएक्यूएम के अधिकारी, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आईएमडी के एक वैज्ञानिक और आईआईटीएम के एक वैज्ञानिक और स्वास्थ्य सलाहकार शामिल हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा बनाए गए इस योजना को पहली बार 2017 में दिल्ली-एनसीआर में लागू किया गया था।
मिशन लाइफ का शुभारंभ
20 अक्टूबर, 2022 को गुजरात के एकता नगर में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिशन लाइफ (Mission LiFE - Lifestyle For Environment) का शुभारंभ किया गया| इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटरेस भी उपस्थिति थे।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिशन लाइफ की घोषणा 2021 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में की गई थी।
मिशन लाइफ से संबंधित मुख्य बिंदु
- मिशन लाइफ वैश्विक जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्रवाइयों में व्यक्तियों और समुदायों के व्यवहार परिवर्तन को पर्यावरण मित्रवत बनाने पर जोर देता है|
- यह मिशन वर्तमान में प्रचलित व्यवहार 'उपयोग-और-निपटान' (use-and-dispose) अर्थव्यवस्था की जगह चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) को प्राथमिकता देता है|
- मिशन लाइफ को व्यापक स्तर पर अपनाने एवं एक जन आंदोलन (जन आंदोलन) बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
मिशन का उद्देश्य
- सचेत और विचारपूर्वक उपयोग' (mindful and deliberate utilisation) के माध्यम से पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली (Environmentally Conscious Lifestyle) को बढ़ावा देना।
- दुनिया भर के व्यक्तियों को अपने दैनिक जीवन में सरल जलवायु-अनुकूल कार्य करने के लिए प्रेरित करना।
- पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए लोगों का एक वैश्विक नेटवर्क 'प्रो-प्लैनेट पीपल' (Pro-Planet People - P3) का संपोषण करना|
- वैश्विक नेटवर्क 'प्रो-प्लैनेट पीपल' का लाभ उठाते हुए सामाजिक मानदंडों को जलवायु अनुकूल बनाने का प्रयास करना।
आवश्यकता
- पिछले दो दशकों में, नीतिगत सुधारों, आर्थिक प्रोत्साहनों और विनियमों सहित पर्यावरणीय अवनयन और जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर कई समष्टि (macro) उपायों को लागू किया गया है।
- परन्तु व्यक्तियों, समुदायों और संस्थानों के स्तर पर आवश्यक कार्यों पर सीमित ध्यान दिया गया है। व्यक्तिगत और सामुदायिक के व्यवहार में परिवर्तन से पर्यावरण और जलवायु संकट में काफी सहायता मिल सकती है।
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) के अनुसार, यदि 8 अरब की वैश्विक आबादी में से 1 अरब लोग अपने दैनिक जीवन में पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार अपनाते हैं, तो वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में लगभग 20 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है।
- भारत सहित वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय अवनयन और जलवायु परिवर्तन की परिघटनाएं दर्ज की जा रही हैं| विश्व के एक हिस्से में की गई सकारात्मक कार्रवाइयां दुनिया भर में पारिस्थितिक तंत्र और आबादी को प्रभावित करती हैं।