जलवायुगत आपातकाल


प्रश्नः क्या हाल ही में भारत के वैज्ञानिकों सहित दुनिया भर के कई वैज्ञानिकों ने जलवायुगत आपातकाल के संबंध में चेतावनी दी है; यदि हां, तो इस संबंध में ब्यौरा क्या है और ऐसे वैश्विक संकट के समाधान के लिए सरकार द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं?

(दिव्येन्दु अधिकारी द्वारा लोकसभा में पूछा गया अतारांकित प्रश्न)

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो द्वारा दिया गया उत्तरः ‘‘विश्व वैज्ञानिकों की जलवायुगत आपात संबंधी चेतावनी’’ शीर्षक से हाल ही में ‘बायोसाईंस’ पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन का उल्लेख किया गया है तथा 6 विस्तृत नीतिगत उपायों का सुझाव दिया गया है। प्रश्नगत रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र के अध्ययन से संबंधित नहीं है तथा सरकार इसके अनेक निष्कर्षों से सहमत नहीं है।

  • जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक घटना है और इसके लिए ‘साम्या’ तथा ‘साझा’ किंतु भिन्न-भिन्न उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं के सिद्धांतों के आधार पर सभी राष्ट्रों का सहयोग अपेक्षित है। भारत जलवायु परिवर्तन संबंधी संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी), उसके क्योटो प्रोटोकॉल (केपी) और पेरिस समझौते (पीए) का एक पक्षकार देश है। महत्वाकांक्षी पेरिस समझौते में जलवायु परिवर्तन का निराकरण करने तथा उसके प्रतिकूल परिणामों से बचने के लिए प्रत्येक 5 वर्षों पर वैश्विक स्तर पर स्थिति की समीक्षा करने तथा कार्यकलापों में तेजी लाने जैसे तंत्रों का प्रावधान है।
  • जलवायु परिवर्तन की चुनौती का निराकरण करने हेतु, भारत यूएनएफसीसीसी की प्रक्रियाओं के अनुसरण को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। उसने यूएनएफसीसीसी, उसके क्योटो प्रोटोकाल और पेरिस समझौते के तहत अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के अलावा जलवायु उपशमन और अनुकूलन के क्षेत्र में अपनी स्वतंत्र एवं वर्धित पहलों को शुरू करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु बहुपक्षीय प्रयासों में सक्रिय रूप से योगदान किया है और अभी भी योगदान दे रहा है। स्वतंत्र रूप से कराए गए अध्ययनों में भारत के प्रयासों को पेरिस समझौते के तहत निर्धारित अपेक्षाओं का सर्वाधिक अनुपालन करने वाले प्रयासों के रूप में रेटिंग की गई है।
  • भारत ने वर्ष 2020 तक उत्सर्जन तीव्रता में 20-25 प्रतिशत कमी करने के अपने पूर्व 2020 लक्ष्य को प्राप्त कर लिया है। यह अपने जीडीपी की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33 से 35 प्रतिशत तक कम करने; प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण तथा कम लागत के अंतरराष्ट्रीय वित्तीयन की सहायता से वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत संचयी बिजली विद्युत संस्थापित क्षमता का लक्ष्य प्राप्त करने तथा वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समतुल्य का अतिरिक्त कार्बन सिंक सृजित करने के पेरिस समझौते के अंतर्गत अपने राष्ट्रीय तौर पर निर्धारित योगदानों (एनडीसी) को पूरा करने की दिशा में भी कार्य कर रही है।