भारत में डुगोंग संरक्षण
- 28 May 2025
28 मई, 2025 को विश्व डुगोंग दिवस के अवसर पर भारत में डुगोंग (Dugong dugon) संरक्षण की स्थिति, चुनौतियों और प्रयासों पर विशेष ध्यान दिया जा रह है।
मुख्य तथ्य:
- जैविक स्थिति: डुगोंग भारत के समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले एकमात्र शाकाहारी स्तनधारी हैं; यह मुख्य रूप से अंडमान-निकोबार द्वीप, मन्नार की खाड़ी, पाल्क बे और कच्छ की खाड़ी में पाए जाते हैं; भारत में इनकी संख्या मात्र 200 के आसपास रह गई है।
- संकट की स्थिति: IUCN रेड लिस्ट में डुगोंग को ‘वुल्नरेबल’ और भारत में ‘रीजनली एंडेंजर्ड’ घोषित किया गया है; इनकी जनसंख्या और भौगोलिक क्षेत्र दोनों में लगातार गिरावट आ रही है।
- प्रमुख खतरे: समुद्री घास (seagrass) आवास का क्षरण, आधुनिक मछली पकड़ने की तकनीक, बंदरगाह निर्माण, ड्रेजिंग, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार और मछली पकड़ने के जाल में फंसना; समुद्री घास का नुकसान डुगोंग के भोजन व प्रजनन दोनों के लिए घातक है।
- संरक्षण प्रयास: 2022 में भारत का पहला डुगोंग संरक्षण रिजर्व (448.3 वर्ग किमी) तमिलनाडु के पाल्क बे में स्थापित; OMCAR फाउंडेशन, WII और तमिलनाडु वन विभाग द्वारा दीर्घकालिक निगरानी और समुद्री घास पुनर्स्थापन; भारत 1983 से CMS और 2008 से डुगोंग संरक्षण समझौते का सदस्य।
- समुद्री घास का महत्व: भारत में 516.59 वर्ग किमी समुद्री घास क्षेत्र है, जो हर साल 434.9 टन/वर्ग किमी CO₂ अवशोषित करता है; सबसे बड़ा क्षेत्र मन्नार की खाड़ी और पाल्क बे में; समुद्री घास मत्स्य, कार्बन संग्रहण और जैव विविधता के लिए आवश्यक।
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