धार्मिक रूपांतरण कानून : उच्चतम न्यायलय में सुनवाई
- 17 Sep 2025
16 सितंबर, 2025 को उच्चतम न्यायलय ने “धोखाधड़ीपूर्ण” धर्मांतरितियों पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा-आखिर कौन तय करेगा कि कोई धर्मांतरण ‘धोखाधड़ीपूर्ण’ है या नहीं। साथ ही कोर्ट ने राज्यों को कड़े धर्मांतरण विरोधी कानूनों (यूपी, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक व राजस्थान) पर चार सप्ताह में जवाब देने का आदेश दिया।
मुख्य तथ्य:
- याचिकाकर्ता का तर्क: अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि अनुच्छेद 25 ‘धर्म-प्रचार’ की अनुमति देता है, लेकिन ‘प्रलोभन-धोखे या बल’ द्वारा रूपांतरण गैरकानूनी है।
- NGO की आपत्ति: सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने कहा कि राज्यों के ये ‘फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट’ सिर्फ़ नाम के, असल में सख्त एंटी-कन्वर्शन कानून हैं। इनमें तीसरे पक्ष को भी आपराधिक शिकायत, 20 साल या उम्रकैद तक सजा, कड़ा बेल प्रावधान और कथित ‘प्रलोभन’ साबित करने की ज़िम्मेदारी कन्वर्ट व्यक्ति पर डाल दी गई है।
- संवैधानिक अधिकार: याचिका में दलील दी गई कि ये कानून संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक प्रचार और धर्म का चुनाव करने की आज़ादी पर ‘चिलिंग इफेक्ट’ डालते हैं।
- न्यायालय की प्रक्रिया: विभिन्न हाईकोर्टों की लंबित याचिकाएं उच्चतम न्यायलय में ट्रांसफर कर कोर्ट ने सभी कानूनों की वैधता पर समग्र सुनवाई का आदेश दिया, छह सप्ताह बाद अंतरिम रोक (stay) पर विचार किया जाएगा।
- भारत में कानून :भारत में धार्मिक रूपांतरण पर विभिन्न राज्यों ने ‘धर्मांतरण निषेध/स्वतंत्रता कानून’ लागू किए हैं। आमतौर पर इनमें बल, धोखा, प्रलोभन, विवाह के ज़रिए रूपांतरण को दंडनीय बनाया गया है, लेकिन उच्चतम न्यायलय की वर्ष 1977 की स्टैनिस्लॉ निर्णय ने ‘धर्म प्रचार का अधिकार’ और ‘रूपांतरण कराना’– दोनों को अलग रखा। वर्तमान कानूनी चुनौती संविधान के बुनियादी अधिकार से जुड़ी है-धर्म, अंतरधार्मिक विवाह और निजता का अधिकार।
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