सरकारी गोपनीयता अधिनियम

  • 23 Sep 2020

  • 14 सितंबर, 2020 को दिल्ली के एक पत्रकार कोचीनी खुफिया अधिकारियों को सीमा पर भारतीय सैनिकों की तैनाती जैसी सूचनाओं कोपहुंचानेके लिए सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया था।

सरकारी गोपनीयता अधिनियम(OSA) के बारे में

  • भारत का पहला आधिकारिक सरकारी गोपनीयता अधिनियम, ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले राष्ट्रवादी प्रकाशनों की आवाज़ों को दबाने के लिए 1889 में लाया गया था
  • इसे वायसराय लार्ड कर्ज़न (1899-1904) के शासन काल के दौरान 1904 में संशोधित किया गया था
  • आख़िरकार, 1904 के अधिनियम को 1923 के भारतीय सरकारी गोपनीयता अधिनियमद्वारा बदल दिया गया जो अपने दायरे के भीतर देश में गुप्तता और गोपनीयता के सभी मामलों को लाया।

सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) का दायरा

  • यह कानून मोटे तौर पर दो पहलुओं से संबंधित है:
    • अधिनियम कीधारा 3, जिसके तहत जासूसी या गुप्तचरी से संबंधित मामले आते हैं।
    • अधिनियम की धारा 5, जिसके तहत उन जानकारियों का उल्लेख है जिन्हें सरकार गुप्त मानती है (यह जानकरी सरकार से संबंधित या उसके कब्जे वाले स्थान, दस्तावेज़, तस्वीरें, रेखाचित्र, नक्शे, योजना, मॉडल, आधिकारिक कोड या पासवर्डआदि के संदर्भ में हो सकती है)।

अभियोग और दंड

  • यदि कोई व्यक्ति इस मामल में दोषी पाया जाता है, तो उस व्यक्ति को 14 साल तक का कारावास, जुर्माना या दोनों मिल सकता है।
  • इस अधिनियम के तहत, व्यक्ति के ऊपर अपराध का आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया जा सकता है, भले ही उसके द्वारा की गयी कार्रवाई अनजाने में हुई हो और राज्य की सुरक्षा को खतरे में डालने का इरादा न हो।

महत्व

  • नागरिकों और सरकारी नौकरी करने वालों के लिए लागू यह कानून, राष्ट्र की अखंडता के लिए जासूसी, देशद्रोह और अन्य संभावित ख़तरों से निपटने के लिए रूपरेखा प्रदान करता है।

सरकारी गोपनीयता अधिनियम(OSA)की आलोचना

सूचना के अधिकार अधिनियम (2005) का उलंघन

  • किसी दस्तावेज़, सरकारी मंत्रालय या विभागको वर्गीकृत करने के लिएविभागीय सुरक्षा निर्देश-1994 के मैनुअल का पालन करता होता है, ऐसा सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) के तहत नहीं है।
  • इसके अलावा, सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) ख़ुद यह नहीं बताता है कि "गुप्त" दस्तावेज़ क्या है। "गुप्त" दस्तावेज़ के दायरे में क्या आता है, यह तय करना सरकार का विवेक है, उन्हीं तय दस्तावेज़ों को सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) के अधीन स्वीकृत किया जाता है।
  • अक्सर यह तर्क दिया गया है कि यह कानून, सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के सीधे विरुद्ध है।

प्राधिकारियों द्वारा दुरुपयोग

  • "गुप्त" दस्तावेज़ों या सूचनाओं की स्पष्ट परिभाषा के नहीं होने कारण, सरकारी अधिकारी अपनी सुविधानुसार कुछ जानकारियों या दस्तावेज़ों को आधिकारिक रहस्यों के रूप में चित्रित करके अधिनियम का दुरुपयोग कर सकते हैं।

सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) में संशोधन के लिए सुझाव

  • 2006 में, द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission - ARC) ने सिफारिश की कि सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) को निरस्त किया जाए, और उसकी जगहराष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पर एक अध्याय शामिल किया जाए, जिसमें आधिकारिक रहस्यों से संबंधित प्रावधान मौजूद हों।
  • इसके अलावा, 2015 में, सरकार ने RTI अधिनियम के संदर्भ में सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA)के प्रावधानों की जाँच करने के लिए एक समिति का गठन किया था।
  • इसने 16 जून, 2017 को कैबिनेट सचिवालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें सिफारिश की गई कि सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA)को अधिक पारदर्शी और RTI अधिनियम के अनुरूप बनाया जाए।

हाल के मामले जहां सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) को लागू किया गया है

  • अधिनियम के तहत सबसे हालिया सज़ा 2018 में हुई थी, जब दिल्ली की एक अदालत ने इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग में सेवा देने वाली पूर्व राजनयिक माधुरी गुप्ता को सरकारी गोपनीयता अधिनियम (OSA) के तहत दोषी ठहराया था। पाकिस्तान को ख़ुफ़िया जानकारी पहुंचाने के लिए उन्हें जेल भेजा गया था।