शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लिए मध्य शताब्दी का लक्ष्य अपर्याप्त

  • 07 Aug 2021

24 जुलाई, 2021 को जी-20 जलवायु बैठक के समापन पर, भारत ने कहा कि विकासशील देशों के आर्थिक विकास के अधिकारों पर विचार करने पर कुछ देशों द्वारा मध्य शताब्दी तक शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन या 'कार्बन तटस्थता' हासिल करने का संकल्प अपर्याप्त पाया गया है।

शुद्ध-शून्य उत्सर्जन: नेट जीरो या शुद्ध-शून्य उत्सर्जन एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करता है, जहां कोई देश वायुमंडल से कम से कम उतना कार्बन डाइऑक्साइड हटाने में सक्षम होता है जितना वह उत्सर्जित कर रहा होता है।

  • यह वन आवरण बढ़ाकर या कार्बन जब्ती (carbon capture) जैसी तकनीकों के माध्यम से हासिल किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण तथ्य: तीसरे सबसे बड़े ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक, लेकिन सबसे कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन की स्थिति के साथ भारत ने हमेशा एक सख्त समय सीमा का विरोध किया है, जिसमें कुछ देशों ने अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्य वर्ष 2050 या 2060 के रूप में निर्धारित किए हैं।

  • पेरिस समझौते के तहत यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) को प्रस्तुत किए गए राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDC) के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिज्ञा उनके उचित हिस्से से 12 टन CO2/प्रति व्यक्ति, यूनाइटेड किंगडम की 14.1 टन CO2/प्रति व्यक्ति, चीन की 0.2 टन CO2/प्रति व्यक्ति और भारत की 0.4 टन CO2/प्रति व्यक्ति कम है।