17वीं एशिया और प्रशांत क्षेत्रीय बैठक

  • 27 Dec 2022

06-09 दिसंबर, 2022 के मध्य अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 17वीं एशिया एवं प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (APRM) आयोजित की गई। यह बैठक 9 दिसंबर को सिंगापुर घोषणा के साथ संपन्न हुई।

  • बैठक में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक समूहों द्वारा चार नई श्रम संहिताओं (Four new labor codes) सहित भारत की श्रम नीतियों की आलोचना की गई।

एशिया एवं प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (APRM)

  • विस्तार: इस बैठक के माध्यम से एशिया, प्रशांत और अरब देशों की सरकारों, नियोक्ताओं तथा श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने का प्रयास किया जाता है।
  • इसके चार प्रमुख विषयगत क्षेत्र
    • मानव-केंद्रित समावेशी, टिकाऊ और लचीली (Human-centered Inclusive, Sustainable and Resilient) संवृद्धि हेतु एकीकृत नीति एजेंडा।
    • एक ऐसे संस्थागत ढांचे की स्थापना करना जो औपचारिक तथा सभ्य कार्य दशाओं में संक्रमण (Transition to formal and civilized work conditions) हेतु प्रोत्साहित करे।
    • सामाजिक सुरक्षा, रोजगार संरक्षण तथा कार्य दशाओं में लचीलेपन (Social security, employment protection and flexibility in working conditions) हेतु मजबूत नींव का निर्माण करना।
    • गुणवत्तापरक तथा अधिक संख्या में नौकरियां सृजित करने के लिए उत्पादकता वृद्धि एवं कौशल को संरेखित (Aligning Productivity Growth & Skills) करना।

भारत की आलोचना के बिंदु

  • नवीन श्रम संहिता: भारत की नवीन श्रम संहिता के अंतर्गत निरीक्षण की शक्तियां नियोक्ताओं को प्रदान की गई है। इस प्रकार यह संहिता नियोक्ताओं को खुली छूट प्रदान करती है तथा श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकार के मध्य त्रिपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करती हैं।
  • ध्यान रहे कि, वर्ष 2020 से ही केंद्र सरकार श्रम कानूनों को सुव्यवस्थित करने की दिशा में कार्यरत है। सरकार ने ने श्रम कानूनों के 29 सेटों (29 Sets) को बदलने के लिए चार व्यापक श्रम संहिताओं को अधिसूचित किया है:
    • वेतन संहिता, 2019;
    • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020;
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020; और
    • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020।
  • अन्य चुनौतियां
    • व्यापक बेरोजगारी: भारत विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। साथ ही, देश भर में स्टार्ट-अप एवं छोटे व्यवसायों के अंतर्गत तकनीकी और उद्यमशीलता का उछाल देखने को मिल रहा है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में मशीनीकरण तथा तकनीकी के बढ़ते प्रभाव से उच्च स्तर की बेरोजगारी होने की संभावना है।
    • असंगठित कार्यबल: भारत में लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र से संबंधित है जो कम वेतन वाली नौकरियों तथा खराब कार्यशील परिस्थितियों का लगातार सामना कर रहा है।
    • उत्पादकता में कमी: अर्थव्यवस्था में उत्पादकता में होने वाली गिरावट का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव श्रमिकों, उद्यमों (विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों) की स्थिरता तथा समुदायों पर पड़ता है।

सिंगापुर घोषणा के प्रमुख बिंदु

  • आने वाले वर्षों में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के समर्थन द्वारा राष्ट्रीय कार्रवाई के लिये संबद्ध क्षेत्रों की पहचान करना तथा ऐसे क्षेत्रों एवं ILO के घटकों के मध्य एक साझा दृष्टिकोण निर्मित करना।
  • घोषणा में, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों द्वारा प्रभावी सामाजिक संवाद स्थापित करने के लिए सरकार, नियोक्ता एवं श्रमिक प्रतिनिधियों की क्षमताओं को मज़बूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • इस घोषणा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सदस्य देशों से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की पुष्टि करने तथा उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने का आग्रह किया गया है।
  • इसके अंतर्गत, यह कहा गया है कि सभी देश अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए तेजी से प्रयास करें तथा प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा स्थापित करें।
  • इस घोषणा में, वैश्विक सामाजिक न्याय गठबंधन को विकसित करने की दिशा में सरकारों तथा सामाजिक भागीदारों को एक साथ आने का आह्वान किया गया है।
  • यह घोषणा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हुए स्थायी अर्थव्यवस्थाओं तथा सभ्य समाजों के निर्माण हेतु न्यायोचित संक्रमण (Justified Transition) को भी बढ़ावा देने की वकालत करती है।