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सत्र
असम के सत्रों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- सत्र 16 वीं शताब्दी के नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन के हिस्से के रूप में बनाए गए मठवासी संस्थान हैं, जो वैष्णव संत-सुधारक श्रीमंत शंकर देव द्वारा शुरू किए गए थे।
- सत्र, संगीत (बोरगीत- Borgeet) व नृत्य (सत्रीय- Xattriya) और नाटक-कला / रंगमंच (भौना- Bhauna) के साथ शंकर देव की अनूठी "कला के माध्यम से पूजा" के दृष्टिकोण को प्रसिद्धि दिलाता है।
- प्रत्येक सत्र के केंद्र में एक नामघर (उपासना कक्ष) होता है, जिसके प्रमुख एक प्रभावशाली "सत्राधिकारी" होते हैं।
ऊपर दिया गया कथनों में से कौन से कथन सही है? नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर चुनें:
A |
1 और 2
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B |
केवल 3
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C |
2 और 3
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D |
1, 2 और 3
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Your Ans is
Right ans is D
Explanation :
संदर्भ: असम में, राजनीतिक दल अपने चुनाव प्रचार के दौरान अक्सर आशीर्वाद मांगने या शंकरदेव के उपदेशों को महिमामंडित करने के लिए अलग-अलग सत्रों में शामिल होते हैं।
- सत्र, असम में मठवासी संस्थान हैं। उन्हें 16 वीं शताब्दी के नव-वैष्णव सुधारवादी आंदोलन के हिस्से के रूप में बनाया गया था। यह आंदोलन वैष्णव संत-सुधारक श्रीमंत शंकर देव (1449-1596) द्वारा शुरू किया गया था।
- वे शंकर देव की अनूठी "कला के माध्यम से पूजा" के दृष्टिकोण को फैलाने के लिए स्थापित किए गए थे। वे इसे वर्तमान में संगीत (बोरगीत), नृत्य (सत्रिय), और रंगमंच (भौना) के साथ कर रहे हैं।
- प्रत्येक सत्र के केंद्र में एक नामघर (उपासना कक्ष) होता है, जिसके प्रमुख एक प्रभावशाली "सत्राधिकारी" होते हैं।
- भिक्षुओं, जिन्हें भक्त भी कहा जाता है, का सत्रों के भीतर दाखिला उनकी कम उम्र में कर दिया जाता है। वे विवाहित या ब्रह्मचारी हो सकते हैं, यह प्रवेश लेने जा रहे सत्रों के प्रकार पर निर्भर करता है।
- समूचे असम में लगभग 900 सत्र हैं, लेकिन मुख्य केंद्र बोरदोवा (नागाँव), माजुली और बारपेटा हैं। ये संस्थाएं सर्वोपरि हैं और असमिया संस्कृति के केंद्र में हैं।
शंकर देव का दर्शन (Sankardeva’s Philosophy)
- शंकरदेव ने भक्ति के एक रूप को प्रचारित किया, जिसे एका-शरणा-नाम-धर्मा (eka-sharana-naam-dhrama) कहा जाता है, और समानता व बंधुत्व तथा जातिगत भेदों, रूढ़िवादी ब्राह्मणवादी अनुष्ठानों व बलिदानों से स्वतंत्र (मुक्त) समाज निर्मित करने में समर्थन/मदद किया।
- उनकी शिक्षा मूर्ति पूजा के बजाय प्रार्थना और जप (नाम) पर केंद्रित थी।
- उनका धर्म देव (भगवान), नाम (प्रार्थना), भक्त (सेवक), और गुरु (शिक्षक) के चार घटकों पर आधारित था।
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