संसद प्रश्न और उत्तर

सिविल सर्विसेज क्रॉनिकल ऑनलाइन, मार्च, 2022:

टाइप-1 मधुमेह पर नियंत्रण के उपाय

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा वर्ष 2006 से मधुमेह के रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए 'यंग डायबिटीज रजिस्ट्री' (YDR) नामक एक रजिस्ट्री का रखरखाव किया जाता है।

  • YDR रजिस्ट्री में युवावस्था में मधुमेह की शुरुआत वाले रोगियों, जिनकी पहचान 25 वर्ष या उससे पहले हो, को दर्ज किया जाता है। रजिस्ट्री भारत भर के 10 शहरों के 205 केंद्रों पर संचालित होती है।
  • YDR रजिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार दर्ज किए गए 20351 युवा मधुमेह रोगियों में से 13368 (65.6%) टाइप-1 मधुमेह वाले थे।
  • 10वें इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन एटलस 2021 के अनुसार, भारत में टाइप-1 मधुमेह वाले बच्चों की संख्या 0 - 19 वर्ष के आयु वर्ग में 22,94,000 है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के हिस्से के रूप में कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) के तहत राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। मधुमेह NPCDCS का एक अभिन्न अंग है। कार्यक्रम के तहत बच्चों सहित सभी आयु समूहों को शामिल किया गया है।
  • एनएचएम की 'नि:शुल्क दवा सेवा पहल' के तहत, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को बच्चों सहित गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए इंसुलिन सहित मुफ्त आवश्यक दवाओं के प्रावधान के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • इसके अलावा, 'जन औषधि योजना' के तहत सभी को सस्ती कीमतों पर इंसुलिन सहित गुणवत्ता वाली जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।

पेयजल संबंधित भारतीय मानक

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री ने 16 मार्च, 2022 को लोक सभा को जानकारी दी कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने पेयजल के संबंध में दो भारतीय मानक बनाए हैं।

  • ये मानक हैं - पेयजल पर IS 10500:2012 और पेयजल आपूर्ति प्रबंधन प्रणाली - पाइप से पेयजल आपूर्ति के लिए आवश्यकताओं पर IS 17482:2020;
  • देश भर में घरों में पेयजल की आपूर्ति में संलग्न नागरिक सेवा एजेंसियों के लिए बीआईएस गुणवत्ता मानक अनिवार्य नहीं हैं।
  • जल आपूर्ति राज्य का विषय है और यह राज्य सरकार/शहरी स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है कि वे जलापूर्ति प्रणालियों की योजना, डिजाइन, निष्पादन, संचालन और रखरखाव करें।

समुद्री उद्योग द्वारा कार्बन उत्सर्जन

समुद्री उद्योग (सैन्य अभियानों को छोड़कर) से ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन समग्र परिवहन क्षेत्र के जीएचजी उत्सर्जन में 1 प्रतिशत का योगदान करता है यानी लगभग 2,744.34 Gg CO2e।

  • विभिन्न पहलों और कार्यक्रमों के माध्यम से इसे ईंधन-कुशल, परिवहन का स्वच्छ माध्यम बनाकर उत्सर्जन को कम करने के लिए उपाय किए गए हैं।
  • इनमे एक पहल हरित बन्दरगाह परियोजना है, जिसमें टर्मिनल डिजाइन, विकास और संचालन में स्थायी प्रथाओं का कार्यान्वयन; पर्यावरण प्रबंधन और निगरानी योजना तैयार करना; बंदरगाह के जल में विसर्जकों और अपशिष्टों का विनियमन और स्वच्छ भारत पहल से इसे कम करना और बंदरगाह क्षेत्रों के आसपास बड़े वृक्षारोपण करना आदि शामिल है।
  • दूसरी पहल बंदरगाह गतिविधियों के लिए अक्षय ऊर्जा का उपयोग है, जिसमें सौर ऊर्जा संयंत्र की स्थापना, रूफटॉप सोलर, विंड फार्म, फ्लोटिंग सोलर प्लांट आदि शामिल है।

हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों का पिघलना

विभिन्न भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय/संगठन जैसे- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG), राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र (NCPOR) आदि विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों समेत हिमनद पिघलने पर नजर रखने के लिए हिमालय हिमनदों की निगरानी करते हैं।

  • कुछ हिमालयी हिमनदों पर किए गए द्रव्यमान संतुलन अध्ययनों में पाया गया कि अधिकांश हिमालयी हिमनद पिघल रहे हैं या अलग-अलग दरों पर उनका संकुचन हो रहा है।
  • वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान उत्तराखंड में कुछ हिमनदों की निगरानी कर रहा है, जिसमें यह पाया गया कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी हिमनद वर्ष 1995 से 15-20 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है, जबकि मंदाकिनी बेसिन में चोराबाड़ी हिमनद वर्ष 2003 से 2017 के दौरान 9-11 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है।
  • WIHG सुरू बेसिन, लद्दाख में डुरुंग-ड्रुंग तथा पेनसिलुंगपा हिमनदों की भी निगरानी कर रहा है, जो क्रमश: 12 मीटर प्रति वर्ष तथा ~ 5.6 मीटर वर्ष की दर से संकुचित हो रहे हैं।
  • हिमनदों के पिघलने से ग्लेशियर बेसिन हाइड्रोलॉजी में परिवर्तन होता है, जिसका हिमालयी नदियों के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है, तथा आकस्मिक बाढ़ एवं अवसाद के कारण हाइड्रोपॉवर प्लांट्स एवं डाउनस्ट्रीम वॉटर बजट पर प्रभाव पड़ता है।
  • हिमनद झीलों के परिमाण एवं संख्या बढ़ने, आकस्मिक बाढ़ में तीव्रता आने, तथा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs), उच्च हिमालयी क्षेत्र में कृषि कार्यों पर प्रभाव आदि के कारण भी हिमनद संबंधी जोखिमों के खतरे में वृद्धि होती है।

राष्ट्रीय संस्कृति निधि

राष्ट्रीय संस्कृति निधि (एनसीएफ) की स्थापना संस्कृति और विरासत के क्षेत्र में निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, निजी संस्थानों और प्रतिष्ठानों आदि के साथ भागीदारी बढ़ाने के लिए की गई है।

  • एनसीएफ का उद्देश्य भारत के समृद्ध, प्राकृतिक, मूर्त और अमूर्त विरासत के पुनरुद्धार, संरक्षण, सुरक्षा और विकास के लिए संसाधनों को जुटाना है। तदनुसार, देश में 83 परियोजनाओं को प्रायोजित/शुरू किया गया है।
  • एनसीएफ द्वारा प्रायोजित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) परियोजनाओं का प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन सुनिश्चित करने हेतु ASI के महानिदेशक के अधीन एक परियोजना कार्यान्वयन समिति (पीआईसी) का गठन किया गया है। सभी संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए इस समिति की नियमित अंतराल पर बैठक होती है।
  • सरकार ने राष्ट्रीय संस्कृति निधि के पुनर्गठन और इसे नया रूप देने हेतु तरीकों का पता लगाने के लिए 2019 में संस्कृति मंत्रालय में वित्तीय सलाहकार के तहत एक लघु समिति का गठन किया था।

राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस

सहकारिता मंत्रालय ने राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

  • मंत्रालय ने डेटाबेस में शामिल करने के लिए विभिन्न मापदंडों, प्रक्रियाओं और कार्यविधि को अंतिम रूप देने पर हितधारकों के साथ परामर्श शुरू कर दिया है।
  • प्रस्तावित राष्ट्रीय डेटाबेस सहकारी क्षेत्र के लिए केंद्रीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, सहकारी संघों, सहकारी समितियों और नाबार्ड जैसे क्षेत्रीय संस्थानों आदि के लिए मुख्य योजना साधन (main planning tool) के रूप में कार्य कर सकता है।

गरीबों के लिए न्याय तक पहुंच

सरकार ने आम आदमी को वहनीय, गुणवत्तापूर्ण और त्वरित न्याय उपलब्ध कराने के लिए कई उपाय किए हैं।

  • विधिक सेवा प्राधिकरण (एलएसए) अधिनियम, 1987 की धारा-12 के तहत कवर किए गए लाभार्थियों सहित समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम विधिक सेवाएं (legal services) प्रदान की जाती हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक कारणों से कोई भी नागरिक न्याय हासिल करने के अवसरों से वंचित न रह जाए।
  • इस उद्देश्य के लिए, तालुक कोर्ट स्तर से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विधिक सेवा संस्थानों की स्थापना की गई है।
  • अप्रैल, 2021 से नवंबर, 2021 की अवधि के दौरान, 60.17 लाख व्यक्तियों को निःशुल्क विधिक सेवाएं प्रदान की गई हैं और लोक अदालतों के माध्यम से 132.37 लाख मामलों (अदालतों में लंबित और विवाद पूर्व स्तर पर मामलों) का निपटारा किया गया है।
  • इसके अलावा, न्याय तक समान पहुंच को सक्षम करने के लिए, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने 'विधिक सेवा मोबाइल ऐप' भी लॉन्च किया है।

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