डिजिटल पहुंच जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा: सर्वोच्च्य न्यायलय
- 01 May 2025
30 अप्रैल को सर्वोच्च्य न्यायलय ने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि समावेशी और अर्थपूर्ण डिजिटल पहुंच-विशेषकर ई-गवर्नेंस और कल्याणकारी सेवाओं तक-जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 21) का अभिन्न हिस्सा है। जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने यह फैसला एसिड अटैक पीड़ितों और दृष्टिबाधितों द्वारा डिजिटल KYC प्रक्रिया में आ रही कठिनाइयों को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनाया।
मुख्य तथ्य:
- संवैधानिक आधार: कोर्ट ने कहा कि डिजिटल पहुंच न केवल अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), बल्कि अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव से सुरक्षा) के तहत भी संरक्षित है।
- डिजिटल डिवाइड: कोर्ट ने माना कि डिजिटल ढांचे, कौशल और सामग्री तक असमान पहुंच के कारण दिव्यांगजन, ग्रामीण आबादी, वरिष्ठ नागरिक, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग और भाषाई अल्पसंख्यक लगातार मुख्यधारा से बाहर रह जाते हैं।
- समावेशी डिजिटलीकरण: कोर्ट ने कहा कि डिजिटल परिवर्तन तभी सार्थक है जब वह सभी नागरिकों की विविध आवश्यकताओं को ध्यान में रखे और कोई भी पीछे न छूटे।
- KYC प्रक्रिया में बदलाव: सर्वोच्च्य न्यायलय ने 20 निर्देश जारी किए, जिनमें डिजिटल KYC के लिए ब्रेल, वॉयस-इनेबल्ड, साइन लैंग्वेज, ऑडियो डिस्क्रिप्शन, क्लोज्ड कैप्शन जैसी वैकल्पिक सुविधाओं का विकास, ऐप्स की प्री-लॉन्च टेस्टिंग में दृष्टिबाधितों की भागीदारी, और सभी डिजिटल सेवाओं के लिए एक्सेसिबिलिटी नोडल अधिकारी नियुक्त करने जैसे कदम शामिल हैं।
- अधिकारों की पुष्टि: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दिव्यांगजन को सेवाओं तक पहुंच के लिए ‘उचित सुविधा’ (reasonable accommodation) देना अधिकार है, न कि दया।
- व्यापक प्रभाव: अब सभी सरकारी वेबसाइट, शैक्षिक प्लेटफॉर्म, बैंकिंग व फिनटेक सेवाएं, और नागरिक सेवाएं डिजिटल रूप से दिव्यांगजन सहित सभी के लिए सुलभ बनाना अनिवार्य है।
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