इंटरनेट सामग्री नियमन हेतु सुप्रीम कोर्ट का सरकार को निर्देश
- 28 Nov 2025
27 नवंबर, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह उपयोगकर्ता-जनित ऑनलाइन सामग्री के लिए ऐसे दिशा-निर्देश तैयार करे जो मासूम लोगों को अश्लील, विकृत, “राष्ट्र-विरोधी” या व्यक्तित्व-हानिकारक सामग्री से बचा सकें।
मुख्य तथ्य:
- समानुपाती नियमन: न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची की पीठ ने सुझाव दिया कि निजी प्रसारकों और सरकार दोनों से स्वतंत्र, निष्पक्ष व स्वायत्त प्राधिकरण बनाया जाए जो “प्रथमदृष्टया अनुमेय” सामग्री की निगरानी कर सके।
- पीड़ितों की सुरक्षा: कोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन पोस्ट हटने में कम-से-कम 24 घंटे लगते हैं, तब तक प्रतिष्ठा, संपत्ति या जीवन को गंभीर नुकसान हो सकता है; इसलिए केवल “पोस्ट के बाद की कार्यवाही” (जैसे अभियोजन) काफी नहीं, बल्कि निवारक तंत्र आवश्यक हैं।
- आधार-आधारित उम्र सत्यापन: ‘एडल्ट कंटेंट’ पर केवल कुछ सेकंड की चेतावनी को अपर्याप्त बताते हुए पीठ ने उदाहरण के तौर पर सुझाया कि ऐसी सामग्री तक पहुंच से पहले उपयोगकर्ता की आयु सत्यापित करने हेतु आधार विवरण माँगा जा सकता है, विशेष रूप से नाबालिगों को सुरक्षित रखने के लिए।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित दिशा-निर्देश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए नहीं, बल्कि अनुच्छेद 19(2) के तहत युक्तिसंगत प्रतिबंधों की रूपरेखा में रहकर समाज, खासकर बच्चों व कमजोर वर्गों की सुरक्षा के लिए हैं।
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