अफ्रीकी वायलेट्स

  • 04 Jun 2021

मई 2021 में प्रकशित एक अध्ययन के अनुसार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), भोपाल के शोधकर्ताओं द्वारा मिजोरम में अफ्रीकी वायलेट्स (African Violets) कुल की एक नई पुष्प पादप (flowering plant) प्रजाति दर्ज की गई है।

महत्वपूर्ण तथ्य: 'अफ्रीकी वायलेट' गेस्नेरियासीए (Gesneriaceae) पादप वंश से संबंधित है, जिसके सदस्य एशिया में पश्चिमी हिमालय से सुमात्रा तक पाए जाते हैं। यह प्रजाति मौजूदा समय में मिजोरम में केवल तीन संस्थानों पर पाई जाती है।

  • इसे एक लुप्तप्राय या संकटग्रस्त (endangered) प्रजाति माना जाता है।
  • यह एक अधिपादप (epiphyte) है यानी यह पौधा पेड़ों पर उगता है और मानसून के दौरान इस पर हल्के गुलाबी रंग के फूल खिलते हैं।
  • मूल रूप से तंजानिया और केन्या में पाया जाने वाला अफ्रीकी वायलेट बागवानी की दुनिया में लोकप्रिय है।
  • इस वंश की वर्तमान में 106 ज्ञात प्रजातियां हैं, जिनमें से 26 भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में मौजूद हैं।
  • स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट (Smithsonian Institute) के प्रसिद्ध वनस्पतिशास्त्री स्वर्गीय ‘विकी एन फंक’ के नाम पर नई खोजी गई प्रजाति का नाम ‘डिडिमोकार्पस विकिफंकिया’ (Didymocarpus vickifunkiae) रखा गया है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार म्यांमार में भी इसी प्रजाति की मौजूदगी दर्ज की गई है और यह चीन में भी मौजूद हो सकती है।