गंगा में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण

  • 24 Jul 2021

दिल्ली स्थित पर्यावरण से संबंधित गैर- सरकारी संगठन 'टॉक्सिक्स लिंक' (Toxics Link) द्वारा किए गए अध्ययन में गंगा में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का पता चला है।

माइक्रोप्लास्टिक्स: 1 माइक्रोमीटर (माइक्रोन) से लेकर 5 मिलीमीटर तक के आकार के सिंथेटिक ठोस कणों के रूप में परिभाषित माइक्रोप्लास्टिक, पानी में अघुलनशील होते हैं।

  • माइक्रोप्लास्टिक्स को समुद्री प्रदूषण के एक प्रमुख स्रोत के रूप में माना जाता है। नदी के किनारे कई शहरों से अनुपचारित वाहित मल (Untreated sewage), औद्योगिक अपशिष्ट और गैर-अपघटनीय प्लास्टिक में लिपटे धार्मिक चढ़ावा नदी में प्रदूषकों का ढेर लगाते हैं।
  • प्लास्टिक उत्पादों और अपशिष्ट पदार्थों को नदी में छोड़ दिया जाता है या फेंक दिया जाता है और अंततः वे सूक्ष्म कणों में टूट जाते हैं, जिसे नदी अंतत: बड़ी मात्रा में नीचे की ओर समुद्र में पहुंचाती है।

निष्कर्ष: यह अध्ययन, हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी में पानी के नमूनों के विश्लेषण पर आधारित था।

  • माइक्रोप्लास्टिक की उच्चतम सांद्रता वाराणसी में पाई गई, जिसमें एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक और द्वितीयक प्लास्टिक उत्पाद शामिल थे।
  • वाराणसी और कानपुर में माइक्रोबीड्स (प्लास्टिक के सूक्ष्म अंश) देखे गए, जबकि हरिद्वार में कोई सूक्ष्म अंश नहीं पाए गए।
  • पूर्व के अध्ययनों के अनुसार समुद्री कचरे के कारण 663 से अधिक समुद्री प्रजातियां प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं और उनमें से 11% के लिए अकेले माइक्रोप्लास्टिक का अंतर्ग्रहण (microplastic ingestion) जिम्मेदार है।