सामयिक
पर्यावरण:
खुव्सगुल झील
हाल ही में मंगोलिया के खुव्सगुल (Khuvsgul) झील राष्ट्रीय उद्यान को यूनेस्को द्वारा बायोस्फीयर रिजर्व के विश्व नेटवर्क में जोड़ा गया है। यह फैसला फ्रांस के पेरिस में हों रहे इंटरनेशनल कोऑर्डिनेटिंग काउंसिल ऑफ मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम (International Co-ordinating council of Man and Biosphere Programme) के 34वें सत्र के दौरान लिया गया।
खुवसगुल झील के बारे में
- खुव्सगुल झील उत्तरी मंगोलियाई प्रांत खुव्सगुल (Khuvsgul) में रूसी सीमा के पास स्थित है।
- यह झील मंगोलिया के मीठे पानी का 70 प्रतिशत हिस्सा कवर करती है। यह मात्रा के हिसाब से मंगोलिया की सबसे बड़ी ताजे पानी की झील है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से यह मंगोलिया की दूसरी सबसे बड़ी झील है। यह झील समुद्र तल से लगभग 1645 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये झील बैकाल झील से लगभग 200 किमी पश्चिम में स्थित है।
मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम
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चमगादड़ की एक नई प्रजाति
हाल ही में वैज्ञानिकों ने नोंगखिलेम वन्यजीव अभयारण्य (Nongkhyllem Wildlife Sanctuary) के पास बांस में रहने वाले चमगादड़ की एक नई प्रजाति की खोज की गई।
महत्वपूर्ण बिंदु
- इस नई चमगादड़ की प्रजाति का नाम ग्लिस्क्रोपस मेघलायनस (Glischropus meghalayanus) रखा गया है।
- यह आकार में छोटा होता है और इसमें गहरे भूरे रंग के साथ पीला पेट होता है|
- बाँस में रहने वाले चमगादड़ एक विशेष प्रकार के चमगादड़ होते हैं जो बाँस के इंटर्नोड्स में रहते हैं, जिनमें विशेष रूपात्मक लक्षण होते हैं, जो उन्हें एक बाँस के अंदर के जीवन को अपनाने में मदद करते हैं।
नोंगखिलेम वन्यजीव अभयारण्य
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औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन समिट 2022
16 जून, 2022 को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री, नितिन गडकरी ने "औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन समिट (Industrial Decarbonization Summit) 2022"- 2070 तक कार्बन तटस्थता के लिए रोड मैप का का उद्घाटन किया।
महत्वपूर्ण बिंदु
- इस समिट के दौरान, नितिन गडकरी ने पर्यावरण, पारिस्थितिकी और विकास के बीच संतुलन बनाए रखने पर जोर दिया।
- विद्युत की कमी को दूर करने के लिए 'औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन शिखर सम्मेलन 2022' का उद्घाटन किया गया, जिसका मुख्य कारण वैकल्पिक ईंधन का विकास करना है।
औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन शिखर सम्मेलन
- इंडस्ट्रियल डीकार्बोनाइजेशन समिट का उद्घाटन और आयोजन 16 जून को नई दिल्ली के ले मेरिडियन होटल में किया गया था।
- इसने डीकार्बोनाइजेशन, नीतिगत मुद्दों, स्थिरता, उनके प्रबंधन सहित जलवायु परिवर्तन आदि से संबंधित विभिन्न शोध विषयों पर ध्यान केंद्रित किया।
- शिखर सम्मेलन के दौरान, शिक्षाविद, शोधकर्ता, नीति निर्माता, व्यवसाय, उद्योग, संबंधित सरकारी विभाग आदि ने भाग लिया।
- इस शिखर सम्मेलन के परिणाम से आयोजकों को डीकार्बोनाइजेशनहेतु नवीन प्रौद्योगिकियां को विकसित करने में मदद मिलेगी।
डीकार्बोनाइजेशन
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लीडर्स इन क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट प्रोग्राम
05 जून, 2022 को मनाये गए विश्व पर्यावरण दिवस के संयोजन में राष्ट्रीय शहरी कार्य संस्थान (National Institute of Urban Affairs) तथा विश्व संसाधन संस्थान भारत (World Resources Institute India) ने संयुक्त रूप से एक अभ्यास आधारित लर्निंग प्रोग्राम लीडर्स इन क्लाइमेट चेंज मैनेजमेंट प्रोग्राम (Leaders in Climate Change Management Program) की घोषणा की।
महत्वपूर्ण बिंदु
- इस कार्यक्रम का लक्ष्य भारत में विभिन्न सेक्टरों तथा भौगोलिक स्थानों पर जलवायु कार्रवाई में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए शहरी पेशेवरों के मध्य क्षमता निर्माण करना है।
- इस फेस टू फेस लर्निंग मॉड्यूल को सुगम बनाने के लिए मैसूरु के प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान (Administrative Training Institute) ने एनआईयूए तथा डब्ल्यूआरआई इंडिया के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन (MoU) पर भी हस्ताक्षर किया और इस प्रकार इस कार्यक्रम का पहला डिलीवरी पार्टनर बन गया।
- इस कार्यक्रम में भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं को अर्जित करने के लिए एक समन्वित प्रयास की दिशा में मध्य से कनिष्ठ स्तर के सरकारी अधिकारियों तथा अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं सहित 5,000 पेशेवरों को सक्षम बनाने तथा उन्हें जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन समाधानों के लिए तैयार करने की कल्पना की गई है।
- यह कार्यक्रम प्रभावी जलवायु कार्रवाई प्रदान करने के लिए स्वं को कुशल बनाने तथा तैयार करने में लगे शहरी प्रैक्टिशनरों के लिए एक ब्लेंडेड यानी मिश्रित लर्निंग प्रोग्राम है।
- इस प्रोग्राम के चार चरण हैं: पहला चरण एक ऑनलाइन लर्निंग मॉड्यूल है, जिसे 8 सप्ताह में पूरा किया जा सकता है, दूसरा चरण 4 से 6 दिनों तक चलने वाला आमने-सामने का यानी फेस टू फेस सत्र है, तीसरा सत्र सहभागियों को 6 से 8 महीनों में एक परियोजना को पूरा करने तथा ज्ञानवर्धक दौरों के लिए अधिदेशित करता है तथा अंतिम चरण में नेटवर्किंग एक कम्युनिटी आफ प्रैक्टिस की स्थापना करना शामिल है।
स्वच्छ और हरित अभियान
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने 'स्वच्छ और हरित' अभियान शुरू किया|
महत्वपूर्ण बिंदु
- इस अभियान के अंतर्गत शहरी स्थानीय निकाय देश को सिंगल यूज प्लास्टिक (single use plastic) से मुक्त बनाने और पर्यावरण की रक्षा हेतु जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन करेंगे।
- इसके तहत उत्पन्न प्लास्टिक कचरे का एक हिस्सा सीमेंट संयंत्रों में वैकल्पिक ईंधन के रूप में या सड़क निर्माण उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाएगा।
- मंत्रालय ने इस दिशा में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विस्तृत एडवाइजरी भी जारी की है। एडवाइजरी में 30 जून, 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश दिया है।
- इस अभियान के तहत राज्य सरकार और स्थानीय निकायों को पास के सीमेंट संयंत्रों या अन्य औद्योगिक इकाइयों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने होंगे।
- इसके तहत देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक को रोकने का पूरी दृढ़ता से पालन करने पर जोर दिया गया है।
स्टॉकहोम+50
2 से 3 जून, 2022 को स्टॉकहोम+50 (Stockholm+50) का आयोजन स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम किया गया है। यह मानव पर्यावरण पर 1972 के संयुक्त राष्ट्र (UN) सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) के 50 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाया गया है।
महत्वपूर्ण बिंदु
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस अंतरराष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया था।
- इस बैठक का विषय "सभी की समृद्धि के लिए एक स्वस्थ ग्रह - हमारी जिम्मेदारी, हमारा अवसर" (A Healthy Planet for the Prosperity of All – Our Responsibility, Our Opportunity) थी।
स्टॉकहोम सम्मेलन के बारे में
- मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन 5 जून से 16 जून 1972 के मध्य स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में आयोजित किया गया था।
- यह 'केवल एक पृथ्वी' (Only One Earth)विषय के साथ ग्रहीय पर्यावरण पर इस तरह का पहला विश्वव्यापी सम्मेलन था।
- इसके परिणामस्वरूप स्टॉकहोम घोषणा हुई, जिसमें पर्यावरण नीति के लिए सिफारिशें और एक कार्य योजना शामिल थी।
- इस सम्मेलन में भाग लेने वाले 122 प्रतिभागी देशों में से 70 जो विकासशील और गरीब देशों ने स्टॉकहोम घोषणा को अपनाया।
- यह पहला वैश्विक रूप से मान्यता प्राप्त दस्तावेज़ था, जिसने ‘विकास, गरीबी और पर्यावरण के बीच अंतर्संबंधों’ को मान्यता दी।
माया पिट वाइपर
हाल में मेघालय के री-भोई जिले के उमरोई मिलिट्री स्टेशन से उभयसृपविज्ञानवेत्ताओं या हर्पेटोलॉजिस्ट (herpetologists) की एक टीम ने जहरीले सांप की एक नई प्रजाति 'माया पिट वाइपर' (Maya’s Pit viper) की खोज की है।
(Image Source: https://www.thehindu.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: इस विषैले सांप की लंबाई लगभग 750 मिमी है। इसका वैज्ञानिक नाम 'त्रिमेरेसुरस मायाए' (Trimeresurus mayaae) है।
- यह देखने में 'पोप्स पिट वाइपर' (Pope’s Pit Viper) से काफी मिलता-जुलता है लेकिन इसकी आंखों का रंग अलग है।
- माया पिट वाइपर और पोप्स पिट वाइपर के हेमेपेनिस यानी मैथुन संबंधी अंग (hemepenis) भी अलग- अलग प्रकार के हैं।
- सेना के एक अधिकारी की दिवंगत मां 'माया' के नाम पर सांप को 'माया पिट वाइपर' नाम दिया गया है।
- हर्पेटोलॉजी (Herpetology) उभयचरों और सरीसृपों के अध्ययन से संबंधित प्राणी विज्ञान की शाखा है।
- एक अनुमान के अनुसार भारत में पिछले दो दशकों में लगभग 12 लाख लोग सर्पदंश के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं और कई अन्य लोगों ने अपने अंग खो दिए हैं।
यूएनसीसीडी कॉप-15
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय- यूएनसीसीडी (United Nations Convention to Combat Desertification: UNCCD) के पक्षकारों का सम्मेलन कॉप-15 (COP-15) 9 से 20 मई, 2022 तक आबिदजान, कोट डी आइवर (आइवरी कोस्ट) में आयोजित किया गया।
(Image Source: https:// https://www.unccd.int/)
कॉप-15 का विषय: 'भूमि, जीवन, विरासत: अभाव से समृद्धि की ओर' (Land, Life, Legacy: From scarcity to prosperity)।
महत्वपूर्ण तथ्य: केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने UNCCD के पक्षकारों के सम्मेलन के 15वें सत्र में राष्ट्र की ओर से वक्तव्य दिया।
- भारत ने 2019 में नई दिल्ली में UNCCD के चौदहवें सत्र की मेजबानी की थी।
कॉप-15 में प्रमुख नई प्रतिबद्धतायें: 2030 तक एक अरब हेक्टेयर अवक्रमित भूमि (degraded land की बहाली में तेजी लाना;
- शुष्क भूमि के विस्तार की पहचान करके, राष्ट्रीय नीतियों में सुधार करके और पूर्व चेतावनी, निगरानी और मूल्यांकन करके सूखे के प्रति अनुकूलन को बढ़ावा देना;
- 2022-2024 के लिए सूखे पर एक अंतर सरकारी कार्य समूह की स्थापना करना;
- मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण से प्रेरित प्रवासन और विस्थापन के समाधान का प्रयास करना;
- भूमि प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी में सुधार करना और;
- रेत और धूल भरी आंधी और अन्य बढ़ते आपदा जोखिमों से निपटना।
अन्य तथ्य: UNCCD और उसके सहायक निकायों के लिए पक्षकारों के सम्मेलन की भविष्य की बैठकें सऊदी अरब (2024 में COP-16) और मंगोलिया (2026 में COP-17) में आयोजित की जाएंगी।
संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम अभिसमय (UNCCD): इसकी स्थापना 1994 में हमारी भूमि की रक्षा और बहाली और एक सुरक्षित, न्यायपूर्ण और अधिक टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने के लिए की गई थी।
- यह मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रभावों को दूर करने के लिए स्थापित एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता है। यह यूरोपीय संघ (ईयू) और 196 देशों द्वारा अनुमोदित है।
ई- कचरा प्रबंधन के लिए मसौदा अधिसूचना
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने मई 2022 में जनता की प्रतिक्रिया के लिए इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिए मसौदा अधिसूचना जारी की है।
महत्वपूर्ण तथ्य: भारत में इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन के लिए नियमों का एक औपचारिक समूह है, पहली बार 2016 में इन नियमों की घोषणा की गई थी और 2018 में इसमें संशोधन किया गया। नवीनतम नियम अगस्त 2021 तक लागू होने की संभावना है।
- उपभोक्ता वस्तुओं से संबंधित कंपनियों और इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं के विनिर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि 2023 तक उनके इलेक्ट्रॉनिक कचरे का कम से कम 60% एकत्र और पुनर्नवीनीकरण किया जाए और उन्हें 2024 और 2025 में क्रमशः 70% और 80% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा जाए।
- नियम कार्बन क्रेडिट के समान प्रमाणपत्रों में व्यापार की एक प्रणाली का भी प्रावधान करते हैं, जो कंपनियों को अस्थायी रूप से कमी को दूर करने में मदद करेगा।
- ऐसी कंपनियां, जो अपने वार्षिक लक्ष्यों को पूरा नहीं करेंगी, उन्हें 'पर्यावरण मुआवजे' के तौर पर जुर्माना देना होगा।
- लक्ष्य निर्दिष्ट करने के साथ, ही नियमों में कंपनियों के लिए 'विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व' (ईपीआर) प्रमाणपत्र हासिल करने की एक व्यवस्था है। ये प्रमाणपत्र किसी कंपनी द्वारा किसी विशेष वर्ष में एकत्रित और पुनर्नवीनीकरण किए गए ई-कचरे की मात्रा को प्रमाणित करते हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) निगरानी करेगी कि कंपनियां अपने लक्ष्यों को पूरा कर रही हैं या नहीं।
- 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2017' (Global E-Waste Monitor 2017) के अनुसार, भारत सालाना लगभग 2 मिलियन टन (एमटी) ई-कचरा उत्पन्न करता है और अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद ई-कचरा उत्पादक देशों में पांचवें स्थान पर है।
बार्ब्स मछली प्रजातियों की कृत्रिम प्रजनन तकनीक
केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज एंड ओशन स्टडीज (KUFOS) के वैज्ञानिकों के एक दल ने ऑलिव बार्ब्स (कुरुवा परल) और फिलामेंट बार्ब (कलक्कोडियान) के कृत्रिम प्रजनन के लिए तकनीकों का मानकीकरण किया है, और हाईफिन बार्ब (कूरल) और कर्नाटक कार्प (पचिलावेट्टी) के लिए ब्रूड स्टॉक (brood stocks) विकसित किया है।
(Image Source: https://www.thehindu.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: मीठे पानी की ये मछली की प्रजातियां इदमालयार बांध, भूतथनकेट्टू और त्रिशूर जिले के ‘कोल’ (Kol) क्षेत्रों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।
- हालांकि, अंधाधुंध मत्स्यन और आवास परिस्थितियों में बदलाव से ये प्रजातियां, विशेष रूप से ‘कुरुवा परल’ विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुकी हैं।
- केरल यूनिवर्सिटी ऑफ फिशरीज द्वारा इन मछली प्रजातियों के लिए किए जा रहे संरक्षण उपायों को 'संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) - इंडिया हाई रेंज लैंडस्केप परियोजना' के तहत सहयोग प्रदान किया जाता है। यह परियोजना जनवरी 2020 में शुरू की गई थी।
- इस परियोजना का उद्देश्य इन मीठे पानी की प्रजातियों की मत्स्य कृषि के लिए आदिवासियों के बीच प्रशिक्षित जल कृषकों (aquaculturists) की मदद करना भी है।