सामयिक
पर्यावरण:
एम्परर पेंगुइन को विलुप्त होने का खतरा
अर्जेंटीना अंटार्कटिक संस्थान के विशेषज्ञों के अनुसार अंटार्कटिका के बर्फीले टुंड्रा और ठंडे समुद्रों में पाये जाने वाले ‘एम्परर पेंगुइन’ (Emperor penguin) जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप अगले 30 से 40 वर्षों में विलुप्त हो सकते हैं।
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महत्वपूर्ण तथ्य: अनुमानों के अनुसार 60 और 70 डिग्री अक्षांशों के बीच स्थित इनकी आबादी अगले कुछ दशकों में यानी अगले 30 से 40 वर्षों में विलुप्त हो सकती है।
- एम्परर पेंगुइन, दुनिया का सबसे बड़ा पेंगुइन है और यह अंटार्कटिका के लिए स्थानिक केवल दो पेंगुइन प्रजातियों में से एक है।
- यह अंटार्कटिक की सर्दियों के दौरान बच्चे को जन्म देता है और अप्रैल से दिसंबर तक नवेली चूजों के घोंसले के लिए ठोस समुद्री बर्फ की आवश्यकता होती है।
- यदि बाद में समुद्र जम जाता है या समय से पहले पिघल जाता है, तो एम्परर पेंगुइन अपना प्रजनन चक्र पूरा नहीं कर पाता है।
- पेंगुइन के बीच सबसे लंबा प्रजनन चक्र एम्परर पेंगुइन की अनूठी विशेषता है। एम्परर पेंगुइन अपने बच्चे के जन्म के बाद, गर्माहट के लिए उसे अपने पैरों के बीच तब तक रखते हैं, जब तक कि वह अपनी अंतिम पंख विकसित नहीं कर लेता।
सियोल वन घोषणा
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल, में आयोजित 15वीं विश्व वानिकी कांग्रेस में 5 मई, 2022 को ‘सियोल वन घोषणा’ को अपनाया गया। 15वीं विश्व वानिकी कांग्रेस 2 से 6 मई, 2022 तक आयोजित की गई।
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सियोल घोषणा की मुख्य विशेषताएं: वनों की जिम्मेदारी को संस्थानों, क्षेत्रों और हितधारकों के बीच साझा और एकीकृत किया जाना चाहिए।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहमत प्रतिबद्धताओं और अवक्रमितभूमि को बहाल करने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विश्व स्तर पर वन और परिदृश्य बहाली में निवेश को 2030 तक तिगुना करने की आवश्यकता है।
- वन राजनीतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय सीमाओं से स्वतंत्र होते हैं, जो जैव विविधता और ग्रहीय पैमाने पर कार्बन, जल और ऊर्जा चक्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- विश्व वानिकी कांग्रेस के महत्वपूर्ण निष्कर्षों में एक चक्रीय जैव-अर्थव्यवस्था और जलवायु तटस्थता के महत्व को रेखांकित किया गया है।
- भविष्य की महामारियों के जोखिम को कम करने के लिए स्वस्थ, उत्पादक वनों को भी बनाए रखा जाना चाहिए।
विश्व वानिकी कांग्रेस: विश्व वानिकी कांग्रेस हर छ: साल में लगभग एक बार आयोजित की जाती है। पहली कांग्रेस 1926 में इटली में आयोजित की गई थी। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहयोग से 1954 से मेजबान देशों द्वारा कांग्रेस का आयोजन किया जाता है।
- 2022 कांग्रेस का विषय 'वनों के साथ हरित, स्वस्थ और अनुकूल भविष्य का निर्माण' (Building a Green, Healthy and Resilient Future with Forests) था।
- यह एशिया में आयोजित दूसरी कांग्रेस है। इंडोनेशिया ने 1978 में एशिया में पहली कांग्रेस की मेजबानी की थी।
रामगढ़ विषधारी भारत का 52वां बाघ अभयारण्य
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि राजस्थान में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को 16 मई, 2022 को भारत के 52वें बाघ अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है।
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महत्वपूर्ण तथ्य: रणथंभौर, सरिस्का और मुकुंदरा के बाद यह राजस्थान का चौथा टाइगर रिजर्व है।
- यह टाइगर रिजर्व 1,501.89 वर्ग किमी. के क्षेत्र में फैला है।
- रामगढ़ विषधारी का ज्यादातर हिस्सा बूंदी जिले में और कुछ हद तक भीलवाड़ा और कोटा जिलों में है।
- नए अधिसूचित टाइगर रिजर्व में पूर्वोत्तर में रणथंभौर टाइगर रिजर्व और दक्षिणी तरफ मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के बीच बाघ आवास शामिल है और यह रणथंभौर टाइगर रिजर्व से बाघों के आवागमन की सुविधा प्रदान करता है।
- रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व में भारतीय भेड़िया, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, सुस्त भालू, सुनहरा सियार, चिंकारा, नीलगाय और लोमड़ी जैसे जंगली जानवर देखे जा सकते हैं।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने 5 जुलाई, 2021 को रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य और आसपास के क्षेत्रों को बाघ अभयारण्य बनाने की सैद्धांतिक मंजूरी दी थी।
- 2019 में जारी 'भारत में बाघों की स्थिति' रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के 20 राज्यों में 2,967 बाघ हैं।
आक्रामक प्रजातियों से पश्चिमी घाट के वन्यजीव पर्यावास को खतरा
केरल वन विभाग के सहयोग से एक नेचर कंजर्वेशन सोसाइटी 'फर्न्स' द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार आक्रामक प्रजातियां अब पश्चिमी घाट के सबसे प्रतिष्ठित वन्यजीव आवासों में फैल गई हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य: यह स्थानीय वनस्पतियों को नुकसान पहुंचाकर हाथियों, हिरणों, गौर और बाघों के आवासों को नष्ट कर रही है।
- वायनाड वन्यजीव अभयारण्य सहित नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व के वन क्षेत्रों में आक्रामक पौधों, विशेष रूप से 'सेना स्पेक्टैबिलिस' (Senna spectabilis) की वृद्धि, वन्यजीव आवासों के संरक्षण के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
- वायनाड वन्यजीव अभयारण्य का लगभग 23% क्षेत्र सेना स्पेक्टैबिलिस से प्रभावित है। अभयारण्य के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में एक हेक्टेयर में 1,305 पेड़ पाए गए हैं।
- निकटवर्ती टाइगर रिजर्व में भी ये प्रजातियां लगभग समान दर से फैल रही हैं। कर्नाटक और तमिलनाडु में भी लगभग यही स्थिति है।
- 'सेना स्पेक्टैबिलिस' का उन्मूलन वायनाड वन्यजीव अभयारण्य की वन प्रबंधन योजना का एक प्रमुख हिस्सा है, लेकिन अभी तक इसमें कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं हुआ है।
- कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों में निकटवर्ती टाइगर रिजर्व के अधिकारियों द्वारा एक दीर्घकालिक संयुक्त अभियान खतरे को खत्म करने का एकमात्र संभावित समाधान है।
काजीरंगा पशु गलियारा
सुप्रीम कोर्ट के एक पैनल ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व के पशु गलियारों पर अवैध निर्माण गतिविधियों की जाँच में ढिलाई के लिए असम सरकार को फटकार लगाई है।
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महत्वपूर्ण तथ्य: 1,300 वर्ग किमी में फैला यह वन्यजीव पर्यावास स्थल, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल और दुनिया के एक सींग वाले गैंडों के लिए सबसे प्रसिद्ध है।
- इसमें नौ अधिसूचित पशु गलियारे हैं। इनमें से सात अमगुरी, बगोरी, चिरांग, देवसुर, हरमती, हातिदंडी और कंचनजुरी नागांव जिले में हैं, जबकि हल्दीबाड़ी और पनबाड़ी निकटवर्ती गोलाघाट जिले में हैं।
- सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने असम सरकार को जल्द से जल्द पशु गलियारों पर अतिक्रमण और अवैध निर्माण पर कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
- ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 में पशु गलियारों के भीतर निजी भूमि पर नए निर्माण पर रोक लगा दी थी।
- काजीरंगा के जानवर बाढ़-प्रवण उद्यान से अंदर और बाहर जाने के लिए इन गलियारों का उपयोग करते हैं।
लक्षद्वीप में खोजी गई झींगा की नई प्रजाति
आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (NBFGR) के वैज्ञानिकों ने झींगा की एक नई प्रजाति की खोज की है, जिसे 'एक्टिनिमनेस कोयस' (Actinimenes koyas) नाम दिया गया है।
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महत्वपूर्ण तथ्य: लक्षद्वीप द्वीपों पर स्थानीय समुदाय 'कोया' के सम्मान में इस नई प्रजाति का नाम ' एक्टिनिमनेस कोयस' रखा गया है।
- वैज्ञानिकों ने प्रजातियों को अगत्ती द्वीप के कोरल एटॉल से 1.0-2.0 मीटर की गहराई पर पाया, जो द्वीपों के लक्षद्वीप समूह का हिस्सा है।
- यह नई प्रजाति संरचना में झींगा की अन्य प्रजातियों से अलग है।
- NBFGR मछली और झींगा प्रजातियों पर विशेष फोकस के साथ लक्षद्वीप द्वीपों से कई खोजपूर्ण सर्वेक्षण कर रहा है।
- हाल ही में, नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (NBFGR) के वैज्ञानिकों ने नई झींगा प्रजातियों की खोज की थी - पेरिक्लिमेनेला अगत्ती (Periclimenella agattii) और अरेबियनेंसिस (Arabianensis)।
जोनाथन: स्थल पर दुनिया का सबसे उम्रदराज जानवर
'जोनाथन' नाम का सेशेल्स का विशालकाय कछुआ दुनिया का सबसे उम्रदराज जीवित स्थलीय जानवर है।
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महत्वपूर्ण तथ्य: इसका जन्म सेशेल्स में हुआ था, लेकिन वर्तमान में यह दक्षिण अटलांटिक के सेंट हेलेना द्वीप में निवास करता है।
- 'जोनाथन' इस साल 190 वर्ष का हो जाएगा। इसका जन्म 1832 में हुआ था और इसे 50 वर्ष की उम्र में तीन अन्य कछुओं के साथ सेंट हेलेना में लाया गया था। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि वह उम्र में बड़ा हो सकता है।
- बुजुर्ग सेशेल्स विशालकाय कछुआ (Aldabrachelys gigantea hololissa) पहले से ही सबसे पुराने जीवित स्थलीय जानवर के लिए गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक है।
- 'जोनाथन' जैसी लंबी उम्र का स्थल पर भले ही कोई जीवित जानवर न हो लेकिन ऐसे लंबी उम्र के कई जलीय जानवर हैं। उदाहरण के लिए, ग्रीनलैंड शार्क (Somniosus microcephalus) की अनुमानित अधिकतम जीवन अवधि कम से कम 272 वर्ष है।
आईपीपीसी छठी आकलन रिपोर्ट - भाग 3
संयुक्त राष्ट्र के जलवायु विज्ञान निकाय, इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (AR 6) का तीसरा भाग 4 अप्रैल, 2022 को प्रकाशित किया।
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महत्वपूर्ण तथ्य: आईपीसीसी वर्किंग ग्रुप III (WG-III) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के शमन यानी ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए आवश्यक समाधान पर केंद्रित है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें: 2019 में, वैश्विक शुद्ध मानवजनित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 1990 की तुलना में 54% अधिक था।
- 2019 तक, जीवाश्म ईंधन और उद्योग से कार्बन डाइऑक्साइड में पूर्ण उत्सर्जन में सबसे बड़ी वृद्धि हुई, इसके बाद मीथेन से सबसे बड़ी वृद्धि हुई।
- 2019 में कम विकसित देशों ने वैश्विक उत्सर्जन का केवल 3.3% उत्सर्जित किया।
- वैज्ञानिकों के अनुसार, वार्मिंग को लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 2025 से पहले चरम पर ले जाने और 2030 तक 43% तक कम करने की आवश्यकता है; साथ ही, मीथेन को भी लगभग एक तिहाई कम करने की आवश्यकता होगी।
भारत का पहला शुद्ध हरित हाइड्रोजन संयंत्र
20 अप्रैल, 2022 को असम के जोरहाट में भारत के पहले शुद्ध हरित हाइड्रोजन संयंत्र (India’s first pure green hydrogen plant) का शुभारंभ किया गया।
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महत्वपूर्ण तथ्य: ऑयल इंडिया लिमिटेड ने असम में अपने जोरहाट पंप स्टेशन पर 10 किलोग्राम प्रति दिन की स्थापित क्षमता के साथ भारत के पहले 99.999% शुद्ध हरित हाइड्रोजन संयंत्र की शुरुआत की।
- इस संयंत्र को रिकॉर्ड 3 महीने के समय में चालू किया गया है।
- हरित हाइड्रोजन, जिसमें जीवाश्म ईंधन को बदलने की क्षमता है, अक्षय ऊर्जा जैसे पवन या सौर ऊर्जा का उपयोग करके उत्पादित हाइड्रोजन गैस को दिया गया नाम है।
- संयंत्र मौजूदा 500 किलोवॉट सौर संयंत्र द्वारा 100 किलोवॉट अनियन एक्सचेंज मेम्ब्रेन (Anion Exchange Membrane: AEM) इलेक्ट्रोलाइजर संरचना का उपयोग करके उत्पन्न बिजली से हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करता है।
- भारत में पहली बार AEM तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है।
- इस संयंत्र से भविष्य में हरित हाइड्रोजन का उत्पादन 10 किलो प्रतिदिन से बढ़ाकर 30 किलो प्रतिदिन होने की उम्मीद है।
- कंपनी ने प्राकृतिक गैस के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के सम्मिश्रण और ऑयल इंडिया लिमिटेड के मौजूदा बुनियादी ढांचे पर इसके प्रभाव पर आईआईटी गुवाहाटी के सहयोग से एक विस्तृत अध्ययन शुरू किया है।
- हाइड्रोजन गैस, जो जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन नहीं करती है, का उपयोग परिवहन, बिजली उत्पादन और औद्योगिक गतिविधियों में ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया
बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए मानदंडों को आसान बनाते हुए, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अप्रैल 2022 में मौजूदा या नई परियोजनाओं के लिए दी गई पर्यावरण मंजूरी की अवधि को बढ़ा दिया है।
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महत्वपूर्ण तथ्य: नदी घाटी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी 13 साल और परमाणु परियोजनाओं के लिए 15 साल तक वैध होगी।
- खनन और नदी घाटी परियोजनाओं के अलावा अन्य परियोजनाओं और गतिविधियों की पर्यावरण मंजूरी 10 साल के लिए वैध होगी।
- मंत्रालय का मानना है कि परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं और जलविद्युत परियोजनाओं में "भूवैज्ञानिक आश्चर्य (geological surprises), पर्यावरण मंजूरी में देरी, भूमि अधिग्रहण, स्थानीय मुद्दों, पुनर्वास और पुनर्बसावट और ऐसे अन्य कारकों के कारण ऐसी परियोजनाओं को शुरू करने में काफी समय लग जाता है, जो अक्सर परियोजना समर्थकों की नियंत्रण से परे होती हैं। ।
- इस संदर्भ में, केंद्र सरकार का मानना है कि ऐसी परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मंजूरी की वैधता बढ़ाना आवश्यक है।
- पर्यावरण मंजूरी एक लंबी प्रक्रिया है, जो एक निश्चित आकार से बड़ी परियोजनाओं के लिए अनिवार्य है और इसमें अक्सर एक संभावित परियोजना का पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन और कभी-कभी सार्वजनिक सुनवाई शामिल होती है।
- पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में परियोजना से प्रभावित होने वाली स्थानीय आबादी शामिल होती है।
- पर्यावरण मंजूरी की शर्तों में से एक यह भी है कि एक परियोजना को उस अवधि में निर्माण शुरू करना चाहिए, जब उसे पर्यावरण मंजूरी दी गई हो और यदि वह ऐसा करने में असमर्थ हो, तो एक नई प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। इससे परियोजनाएं आर्थिक रूप से अव्यवहारिक हो जाती हैं।
- खनन पट्टे अब 50 साल की अवधि के लिए दिए जाते हैं लेकिन पर्यावरण मंजूरी 30 साल के लिए वैध है।