- होम
- सामयिक
- समसामयिकी प्रश्न
- धारा 377
धारा 377
आईपीसी की धारा 377 के सम्बंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- धारा 377 को निरस्त करने का एक आधार यह था कि इसने "कानून द्वारा नियम" के बजाय "कानून का नियम" प्रदान किया था।
- धारा 377 को इसलिए निरस्त किया गया क्योंकि यह अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के विरुद्ध था।
- "पुट्टास्वामी मामले" ने धारा 377 के विरुद्ध न्यायशास्त्र के विकास को प्रभावित किया।
नीचे दिए गए कूट से सही कथन का चयन करें:
A |
केवल I और II
|
|
B |
केवल II और III
|
|
C |
I, II, III
|
|
D |
केवल I और III
|
Explanation :
धारा 377 को निरस्त करने के प्रमुख आधारों में से एक यह था कि यह "कानून के नियम" के बजाय "कानून द्वारा नियम" प्रदान करता था। कानून के नियम का अर्थ एक ऐसा कानून है जो समानता, स्वतंत्रता, गरिमा इत्यादि की सुविधा देता है और कानून द्वारा नियम का अर्थ राज्य को मनमाने ढंग से व्यवहार करने के लिए वैधता प्रदान करता है। अतः यह हमारे संविधान की मूल विचारधारा के विरुद्ध था। पुट्टास्वामी मामले" ने धारा 377 के विरुद्ध गोपनीयता के न्यायशास्त्र के विकास को प्रभावित किया। धारा 377 अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के मूल विचार का विरोध करता है। अतः कथन 2 सही है।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए यह प्रश्न इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
इस प्रश्न को पूछने का उद्देश्य छात्रों को अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 को ध्यान में रखते हुए "कानून के नियम" और "कानून द्वारा नियम" के बीच के अंतर से अवगत कराना है।
स्रोत: द हिंदू, इंडियन एक्सप्रेस
सामयिक खबरें
- राजनीति और प्रशासन
- अवसंरचना
- आंतरिक सुरक्षा
- आदिवासियों से संबंधित मुद्दे
- कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ
- कार्यकारी और न्यायपालिका
- कार्यक्रम और योजनाएँ
- कृषि
- गरीबी और भूख
- जैवविविधता संरक्षण
- पर्यावरण
- पर्यावरण प्रदूषण, गिरावट और जलवायु परिवर्तन
- पारदर्शिता और जवाबदेही
- बैंकिंग व वित्त
- भारत को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह
- भारतीय अर्थव्यवस्था
- रक्षा और सुरक्षा
- राजव्यवस्था और शासन
- राजव्यवस्था और शासन
- रैंकिंग, रिपोर्ट, सर्वेक्षण और सूचकांक
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी
- शिक्षा
- सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप
- सांविधिक, विनियामक और अर्ध-न्यायिक निकाय
- स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे