मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (MA) गैर-कानूनी संगठन घोषित

  • 28 Dec 2023

27 दिसंबर, 2023 को केंद्र सरकार ने गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम [UAPA] 1967 की धारा 3(1) के तहत 'मुस्लिम लीग जम्मू कश्मीर (मसरत आलम गुट)' (MLJK-MA) को 'गैर-कानूनी संघ' घोषित किया।

  • इस संगठन के खिलाफ गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम [UAPA], 1967, भारतीय दंड संहिता, 1860, आर्म्स एक्ट, 1959 और रणबीर दंड विधान, 1932 की विभिन्न धाराओं के तहत कई आपराधिक मामले दर्ज हैं।
  • गृह मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 में अब तक 4 संगठनों को आतंकी संगठन, 6 व्यक्तियों को आतंकवादी और 2 संगठनों को विधिविरुद्ध (गैर-कानूनी) संगठन घोषित किया जा चुका है।
  • गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम:
  • गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के अनुसार यदि कोई राष्ट्र विरोधी आन्दोलन का समर्थन करता है अथवा किसी विदेशी शक्ति द्वारा किये गये भारत के क्षेत्र पर दावे का समर्थन करता है तो वह अपराध माना जाएगा।
  • यह कानून कुछ संवैधानिक अधिकारों पर ‘उचित’ प्रतिबंध लगाता है, जैसे कि- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक और हथियारों के बिना एकत्र होने का अधिकार तथा एसोसिएशन या यूनियन बनाने का अधिकार।
  • यूएपीए संशोधन अधिनियम, 2019: केंद्र सरकार ने किसी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का प्रावधान शामिल करने के लिए अगस्त 2019 में गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम में संशोधन किया था। इस संशोधन से पहले, केवल संगठनों को आतंकवादी संगठन घोषित किया जा सकता था।

अभिव्यक्ति की आजादी तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संबंध में यूएपीए की संवैधानिकता

  • यूएपीए संशोधन 2019, जो ‘व्यक्तियों’ को भी आतंकवादी के रूप में नामित करने का प्रावधान करता है, ‘दोषी साबित होने तक निर्दोष होने’ के सामान्य कानूनी सिद्धांत के विपरीत है।
  • यह ‘नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध, 1967’ (International Covenant on Civil and Political Rights, 1967), जोकि सार्वभौमिक मानवाधिकारों के घोषित सिद्धांत की पहचान करता है, का भी उल्लंघन करता है।
  • इस कानून ने सरकार को किसी व्यक्ति को आतंकवादी के रूप में निर्दिष्ट करने के लिए निरंकुश प्राधिकार प्रदान किए हैं।
  • यह कानून असहमति की उपेक्षा करता है। यह उन विचारों और राजनीतिक विरोधों का अपराधीकरण करता है जो भारत संघ के खिलाफ असंतोष को भड़काते हैं।
  • इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त नागरिकों के अभिव्यक्ति के अधिकार तथा समूहों और संघों के अपने विचारों को प्रचारित करने के पारस्परिक अधिकार पर हमला है।
  • यूएपीए में ऐसे प्रावधान भी हैं जो अस्पष्ट हैं। इन प्रावधानों का उपयोग मौलिक अधिकारों और प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, बिना चार्जशीट दायर किए, यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों को 180 दिनों की अवधि के लिए हिरासत में रखा जा सकता है, यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
  • इस कानून का प्रयोग व्यक्तियों पर दबाव डालकर तथा उन्हें प्रताडि़त करके असहमति को दबाने के लिए किया जा सकता है, इस प्रकार यह कानून सार्वजनिक बहस और प्रेस की स्वतंत्रता के अस्तित्व को खतरे में डालता है।