ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था) पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स

  • 20 Feb 2020

  • 19 फरवरी-2020 को भारत ने नॉर्वे के साथ मिलकर नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स स्थापित किया गया, जो दोनों देशों के सतत विकास को बढ़ावा देगा.

पृष्ठभूमि

  • ब्लू अर्थव्यवस्था पर टास्क फोर्स के विचार को जनवरी-2019 में नार्वे के प्रधान मंत्री की यात्रा के दौरान प्रस्तुत किया गया था.
  • दोनों देशों ने भारत-नॉर्वे महासागरीय वार्ता और 'ब्लू इकोनॉमी' पर संयुक्त टास्क फ़ोर्स की स्थापना करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए, जो ब्लू-इकॉनोमी के विभिन्न पहलुओं में बहु-क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा.

प्रमुख बिंदु

  • टास्क फोर्स का उद्देश्य दोनों देशों के मध्य संयुक्त पहलों को विकसित करना और उनका पालन करना है.महासागरों में स्थायी तरीके से संसाधनों का प्रबंधन करना द्विपक्षीय सहयोग का इरादा है.
  • इसका अंतिम लक्ष्य महासागर आधारित उद्योगों में स्थायी मूल्य निर्माण और रोजगार को बढ़ावा देना है.
  • उच्चतम स्तर पर भारत व नॉर्वे दोनों देशों के प्रासंगिक हितधारकों (relevant stakeholders) को जुटाने की क्षमता, ब्लू इकोनॉमी पर भारत-नॉर्वे संयुक्त कार्य बल की ताकत व मूल्य है तथा यह मंत्रालयों और एजेंसियों में निरंतर प्रतिबद्धता और प्रगति सुनिश्चित करता है.
  • दोनों देशों ने एकीकृत महासागर प्रबंधन और अनुसंधान पर एक नए सहयोग की भी शुरुआत की.

नीली अर्थव्यवस्था (BlueEconomy)

  • यह विचार गुंटर पाउली ने अपनी 2010 की पुस्तक- "द ब्लू इकोनॉमी: 10 ईयर्स, 100 इनोवेशन, 100 मिलियन जॉब्स" में पेश किया था.
  • ‘ब्लू इकोनॉमी’ शब्द को पहली बार 2012 के रियो शिखर सम्मेलन के दौरान छोटे विकासशील द्वीपीय राज्यों (SIDS) और अन्य तटीय देशों के प्रतिनिधियों द्वारा गढ़ा गया था.
  • ब्लू इकोनॉमी का लक्ष्य व्यवसाय से आगे बढ़कर आर्थिक विकास और महासागरों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रस्तावों का विचार करना ​​है.
  • यह आर्थिक विकास, सामाजिक समावेश, और आजीविका के संरक्षण या सुधार को बढ़ावा देना चाहता है, साथ ही साथ महासागरों और तटीय क्षेत्रों की पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करता है.
  • इस संदर्भ में ये क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, आजीविका, वाणिज्य तथा सुरक्षा से संबंधित विभिन्न संभावनाएँ एवं चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं.
  • सतत विकास लक्ष्य (SDG) 14, सतत विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण और निरंतर उपयोग का इरादा रखता है.


ब्लू इकोनॉमी के घटक

  • ब्लू इकोनॉमी में विविध घटक हैं.जिनमें मत्स्य, पर्यटन, और समुद्री परिवहन जैसे स्थापित पारंपरिक महासागरीय उद्योग शामिल हैं.लेकिन साथ ही नई और उभरती हुई गतिविधियाँ, जैसे अपतटीय नवीकरणीय ऊर्जा, मत्स्य पालन (aquaculture), समुद्री सतह पर प्राप्त गतिविधियाँ (seabed extractive activities),और समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी और जैव-पूर्वेक्षण इत्यादि भी ब्लू इकोनॉमी के महत्वपूर्ण घटक हैं.
  • ब्लू इकोनॉमी के घटकों के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए, निम्न गतिविधियों की आवश्यकता है:
    • वर्तमान और भावी पीढ़ियों के लिए सामाजिक और आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं. 
    • समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की विविधता, उत्पादकता, लचीलापन, मुख्य कार्य और आंतरिक मूल्य को बहाल, संरक्षित और बनाए रखना.
    • स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, नवीकरणीय ऊर्जा, और वृत्ताकार सामग्री के प्रवाह पर आधारित होना जो अपशिष्ट को कम करेगा और सामग्रियों के पुनर्चक्रण को बढ़ावा देगा.

 

Components of Blue Economy

नीली अर्थव्यवस्था का महत्व

खाद्य सुरक्षा की कुंजी

  • मत्स्यउद्द्योग एक महत्वपूर्ण महासागरीय संसाधन है जो ब्लू इकोनॉमी का मूल है. यह सैकड़ों लाखों लोगों को भोजन प्रदान करता है और तटीय समुदायों की आजीविका के लिएएक बड़ी संभावना है. यह खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन को सुनिश्चित करने और व्यापार के अवसरों में बहुत योगदान देता है.

अक्षय महासागरीय ऊर्जा का अपार स्रोत

  • दुनिया की आबादी 2050 में अनुमानित 9 बिलियन लोगों तक बढ़ने की उम्मीद है, जो वर्तमान आबादी से 1.5 गुना अधिक है, जिसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन पर देशों की मांग में वृद्धि हुई है.
  • इस परिदृश्य में, ब्लू इकोनॉमी स्वच्छ ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत हो सकता है जिसमें ज्य़ादा मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा का दोहन नहीं होता है.

तटीय पर्यटन के अवसर

  • तटीय पर्यटन, ब्लू इकोनॉमी का एक प्रमुख क्षेत्र हैजो रोजगार सृजन और आर्थिक विकास में बड़ी संभावनाएं प्रस्तुत करता है.
  • सतत तटीय पर्यटन,छोटे स्तर पर मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका तथा उनके संरक्षण में मदद कर सकता है.पर्यावरण की रक्षा कर सकता है और स्थायी आर्थिक विकास में सकारात्मक योगदान दे सकता है.

पोत परिवहन,बंदरगाहों का बुनियादी ढांचा और संभार तंत्र

  • बंदरगाह और समुद्री परिवहन क्षेत्र ब्लू इकोनॉमी के तहत महत्वपूर्ण प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक है.
  • वैश्विक व्यापार के लिए समुद्र, परिवहन का एक लागत प्रभावी और कार्बन-अनुकूल साधन है. लगभग 90 प्रतिशत विश्व व्यापार समुद्री मार्गों से होता है.

समुद्री सतह का खनन

  • घटती अंतर्देशीय खनिज संपदा और बढ़ती औद्योगिक माँगों के साथ, खनिज पदार्थों की खोज और समुद्री सतहों के खनन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है.
  • गहरे समुद्र की खुदाई को ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए एक संभावित क्षेत्र के रूप में देखा जाता है.समुद्री सतह में खनिज होते हैं जो तटीय राष्ट्रों केविशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) और राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र की सीमाओं से परे दोनों में आर्थिक विकास के लिए तेजी से विकसित होने वाले अवसर का प्रतिनिधित्व करते हैं.

समुद्री उद्योग

  • समुद्री विनिर्माण, अपतटीय स्रोतों से बिजली उत्पादन, गैस और पानी ब्लू इकोनॉमी के औद्योगिक क्षेत्रों का गठन करते हैं. समुद्री विनिर्माण क्षेत्र में नाव निर्माण, पाल बनाना, जाल बनाना, नाव और जहाज की मरम्मत, समुद्री उपकरण, जलीय कृषि प्रौद्योगिकी, समुद्री औद्योगिक इंजीनियरिंग, आदि गतिविधियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है.

 

समुद्री जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास

  • समुद्री जैव-प्रौद्योगिकी (या ब्लू टेक्नोलॉजी) को पर्यावरण-टिकाऊ और अत्यधिक कुशल समाज के निर्माण में योगदान के कारण यहबहुत रुचि और क्षमता का क्षेत्र माना जाता है.
  • एक मूल पहलू मत्स्य पालन से संबंधित है, जिससे नई कार्यप्रणाली में मदद मिलेगी. जैसे- प्रजातियों के चुनिंदा प्रजनन,उत्पादन की स्थिरता में वृद्धि,और पशु कल्याणमें बढ़ावा, खाद्य आपूर्ति में समायोजन, निवारक उपचारात्मक उपायों (preventive therapeutic measures) और शून्य-अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रणालियों के उपयोग (use of zero-waste recirculation systems) इत्यादि.

ब्लू इकोनॉमी को चुनौती

समुद्री संसाधनों का अवहनीय दोहन

  • समुद्री संसाधनों का निरंतर अवहनीय निष्कर्षण, जैसे कि तकनीकी में हुए सुधार और मांग में बढ़त के परिणामस्वरूप अनवरत मछली पकड़ना, जबकि भंडारण का प्रबंधन बेहद खराब है.
  • खाद्य और कृषि संगठन (FAO) का अनुमान है कि लगभग 57 फीसदी मछली स्टॉक एकदम घटिया है और अन्य 30 फीसदीकम घटिया हैं या ठीक हो रहे हैं.
  • अवैध, बिना लाइसेंस के, और अनियमित रूप से मछली पकड़ने से मछली के स्टॉक का और अधिक दोहन होता है. ये सालाना 11 से 26 मिलियन टन मछली पकड़ते हैं जिसका राजस्व गैरकानूनी रूप से या बिन दस्तावेज़ के लगभग 10-22 बिलियन अमेरिकी डॉलर है.

समुद्री पारिस्थितिकी के लिए खतरा

  • बड़े पैमानें पर तटीय विकास, वनों की कटाई और खनन के कारण समुद्री और तटीय आवासों और परिदृश्यों का भौतिक परिवर्तन और विनाश हो रहा है. समुद्र तटीय कटाई, बुनियादी ढांचे और आजीविका को भी नष्ट कर देता है.
  • समुद्र के संकीर्ण तटीय क्षेत्रों व निकटवर्ती क्षेत्रों में अनियोजित और अनियंत्रित विकास की वज़ह से क्षेत्रों का अतिव्यापी उपयोग होता है, जिससे महत्वपूर्ण स्थानों का नुकसान होता है और गरीब समुदायों को हाशिए पर धकेल दिया जाता है.

समुद्री प्रदूषण

  • अनुपचारित गंदे नालों कृषि संबंधित प्रदूषित तत्वों के अपवाह और प्लास्टिक जैसे समुद्री मलबोंके कारण समुद्री जल लगातारप्रदूषित हो रहा है.

जलवायु परिवर्तन

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, उदाहरण के लिए समुद्री सतह का बढनाअधिक तीव्र होना और मौसमी घटनाएं ब्लू इकोनॉमी के लिए प्रमुख चुनौतियां हैं. समुद्र के तापमान में परिवर्तन और अम्लता पहले से ही समुद्री जीवन, निवास स्थान और उन पर निर्भर समुदायों के लिए खतरा है.

अनुचित और अनियंत्रित व्यापार व्यवहार

  • कई बार मछली पकड़ने के समझौते देश के एक विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) को विदेशी संचालकों तक पहुंच प्रदान करते हैं. ये ऑपरेटर, राष्ट्रीय हितधारकों को मछली पकड़ने के विशिष्ट ज्ञान के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय ऑपरेटरों द्वारा मत्स्य निर्यात राजस्व का कम विनियोग होता है. इसलिए लंबे समय में उन संसाधनों के राष्ट्रीय दोहन की संभावना कम हो जाती है.

 

भारत में नीली अर्थव्यवस्था

  • तीन तरफ से पानी से घिरा होने के बावजूद भारत तकनीकी प्रगति और कुशल जनशक्ति की कमी के कारण अपने समुद्री संसाधनों का उपयोग करने में असमर्थ है.
  • भारत,ब्लू अर्थव्यवस्था को उच्च प्राथमिकता मानती है. भारत सरकार का यह एक एकीकृत समुद्री विकास कार्यक्रम है जिसे सागरमाला कार्यक्रम कहा जाता है जो सरकार की समुद्री दृष्टि पर केंद्रित है.
  • दूसरी ओर, डीप ओशन मिशन का उद्देश्य भारत के दायरे में आने वाले 75,000 वर्ग किमी के समुद्री विस्तार का पता लगाना है.

सागरमाला कार्यक्रम

  • यह 2015 में घोषित किया गया था और इसका उद्देश्य व्यापार के लिए क्षेत्रीय और वैश्विक समुद्री संपर्क स्थापित करके तटीय क्षेत्रों को आर्थिक केन्द्रों में परिवर्तित करना. भारत में बंदरगाह के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देना इसका व्यापक उद्देश्य है.

सागरमाला कार्यक्रम के घटक

  • बंदरगाहों का आधुनिकीकरण और नए बंदरगाहों का विकास: अड़चनों को ख़त्म कर और मौजूदा बंदरगाहों की क्षमता का विस्तार और नए ग्रीनफील्ड बंदरगाहों का विकास.
  • बंदरगाहों से संपर्क बढ़ाना: बंदरगाहों से आतंरिक इलाकों का संपर्क बढ़ाना तथा सामानों के लेकर होने वाली गतिविधियों की लागत और समय को अनुकूलित करने के लिए घरेलू जलमार्गों (अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय पोत परिवहन) सहित विभिन्न साभार तंत्रों से संपर्क स्थापित करना.
  • बंदरगाहों से जुड़े उद्द्योगों का विकास: बंदरगाहों के समीप औद्योगिक क्लस्टर और तटीय आर्थिक क्षेत्र विकसित करना जिससे निर्यात-आयात के रसद (logistics) में लागत व समय की बचत होगी.
  • तटीय सामुदायिक विकास: मत्स्य विकास, तटीय पर्यटन, कौशल विकास व आजीविका उत्पादन गतिविधियोंआदि के माध्यम से तटीय समुदायों के सतत विकास को बढ़ावा देना.
  • तटीय नौवहन और अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन: टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल तटीय और अंतर्देशीय जलमार्ग तरीके से माल (सामान) को स्थानांतरित करने के लिए प्रेरित करना.