सामयिक
पर्यावरण:
ट्री सिटीज ऑफ द वर्ल्ड 2021
अप्रैल 2022 में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (UN-FAO) और गैर-सरकारी और गैर-लाभकारी संगठन 'आर्बर डे फाउंडेशन' द्वारा मुंबई और हैदराबाद को 'ट्री सिटीज ऑफ द वर्ल्ड 2021' (Tree Cities of the World 2021) के रूप में मान्यता दी गई है।
(Image Source: https://treecitiesoftheworld.org/)
महत्वपूर्ण तथ्य: दो भारतीय शहरों ने "स्वस्थ, लचीले और खुशहाल शहरों के निर्माण में शहरी वृक्षों को उगाने और हरियाली बनाए रखने की प्रतिबद्धता" के लिए मान्यता हासिल की है।
- हैदराबाद को लगातार दूसरे साल इस सूची में शामिल किया गया है। मुंबई को पहली बार सूची में स्थान प्राप्त हुआ है।
- 21 देशों के कुल 138 शहर 'ट्री सिटीज ऑफ द वर्ल्ड 2021' सूची का हिस्सा हैं।
- सूची में अमेरिका के 37 शहर हैं, जबकि यूनाइटेड किंगडम के 19 और कनाडा के 18 शहर हैं, जो दर्शाता है कि विकसित देशों में हरित शहरों की हिस्सेदारी अधिक है।
ट्री सिटीज ऑफ द वर्ल्ड: यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन और अमेरिकी गैर-लाभकारी संगठन आर्बर डे फाउंडेशन द्वारा शुरू किया गया एक कार्यक्रम है।
- यह कार्यक्रम उन शहरों और कस्बों को मान्यता देने का एक अंतरराष्ट्रीय प्रयास है, जो अपने शहरी वनों और वृक्षों का ठीक से रखरखाव करने और उनका स्थायी रूप से प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- ट्री सिटी य वृक्ष शहर के रूप में मान्यता के लिए, एक समुदाय को पांच मुख्य मानकों को पूरा करना होता है- उत्तरदायित्त्व स्थापित करना, नियम निर्धारित करना, आपके पास क्या है यह जानना, संसाधनों का आवंटन करना तथा उपलब्धियों का जश्न मनाना।
भारत का तटीय क्षरण
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने अप्रैल 2022 में लोक सभा को सूचित किया कि भारतीय मुख्य भूमि की 6,907.18 किलोमीटर लंबी तट रेखा में से लगभग 33.6% तटीय क्षरण/कटाव की स्थिति के अंतर्गत है।
महत्वपूर्ण तथ्य: तटीय क्षेत्र का लगभग 26% अभिवृद्धि प्रकृति (accretional nature) का है और शेष 40% स्थिर अवस्था में है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के संलग्न कार्यालय नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च, चेन्नई द्वारा 1990 से 2018 तक मुख्य भूमि की लगभग 6,907.18 किलोमीटर लंबी भारतीय तट रेखा का विश्लेषण किया गया है।
- प्रतिशत के संदर्भ में, देश के पूर्वी तट पर स्थित पश्चिम बंगाल (जिसकी 534.35 किलोमीटर लंबी तट रेखा है) को 1990 से 2018 की अवधि में लगभग 60.5% (323.07 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा।
- पश्चिमी तट पर स्थित केरल (जिसकी तट रेखा 592.96 किमी लंबी है) को 46.4% (275.33 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा।
- तमिलनाडु (जिसकी 991.47 किमी की लंबी तट रेखा है) को 42.7% (422.94 किमी) के तटीय कटाव का सामना करना पड़ा है।
- 1,945.6 किमी की सबसे लंबी तट रेखा के साथ गुजरात ने 27.06% (537.5 किमी) का तटीय कटाव दर्ज किया है।
- केंद्र-शासित प्रदेश पुडुचेरी (जिसकी 41.66 किलोमीटर लंबी तटरेखा है) को लगभग 56.2% (23.42 किमी) तटीय कटाव का सामना करना पड़ा है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक अन्य संगठन, इंडियन नेशनल सेंटर फॉर ओशन इंफॉर्मेशन सर्विसेज (INCOIS) ने 1: 100000 के पैमाने पर भारत के पूरे समुद्र तट के लिए तटीय सुभेद्यता सूचकांक (Coastal Vulnerability Index: CVI) मानचित्रों का एक एटलस तैयार कर उसका प्रकाशन किया है।
दुर्लभ तितली पामकिंग
अप्रैल 2022 में तमिलनाडु में पहली बार दुर्लभ तितली 'पामकिंग' (Rare butterfly Palmking) देखी गई।
(Image Source: https://www.the hindu.com/ & Photo Credit: Dinesh Kumar)
महत्वपूर्ण तथ्य: पामकिंग को पहली बार दक्षिण भारत में 1891 में ब्रिटिश वैज्ञानिक एच.एस.फर्ग्यूसन द्वारा रिकॉर्ड किया गया था।
- एक सदी से भी अधिक समय के बाद, इसे 2007 में थेनमाला में सी. सुशांत द्वारा फिर से खोजा गया और एक साल बाद तितली शोधकर्ता जॉर्ज मैथ्यूज और उन्नीकृष्णन पी. ने पामकिंग के जीवन-चरणों का अध्ययन किया और पहली बार इसे फोटोग्राफिक रूप से प्रलेखित किया।
- पामकिंग को वैज्ञानिक रूप से 'अमाथुसिया फिडिपस' (Amathusia phidippus) के नाम से जाना जाता है।
- भूरे और गहरे रंग की पट्टियाँ इस तितली की विशेषता है तथा इसे एकांतप्रिय के रूप में वर्णित किया गया है, जो ज्यादातर छाया में आराम करती है।
- पामकिंग को पहचानना आसान नहीं है क्योंकि लकड़ी की तरह इसका भूरा रंग आसानी से छलावरण (camouflage) करता है और यह शायद ही कभी अपने पंख फैलाता है।
- पामकिंग 'निम्फैलिडे' (Nymphalidae) उप-परिवार से संबंधित है और यह ताड़, नारियल और कैलमस (calamus) किस्मों के पौधों से भोजन प्राप्त करती है।
- मार्च 2022 में एक और दुर्लभ तितली प्रजाति 'स्पॉटेड रॉयल' को नीलगिरि में फिर से खोजा गया और एक सदी के बाद दर्ज किया गया। स्पॉटेड रॉयल को वैज्ञानिक रूप से 'तजुरिया मैक्युलाटा' (Tajuria maculata) के नाम से जाना जाता है।
गोल्डन लंगूर के पर्यावास में भारी गिरावट
वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार गोल्डन लंगूर (वैज्ञानिक नाम- ट्रेचीपिथेकस जीई) (Trachypithecus geei) के आवास में भारी गिरावट हुई है।
(Image Source: https://www.indiatimes.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: गोल्डन लंगूर एक 'संकटग्रस्त' प्राइमेट प्रजाति है, जो भूटान और भारत की सीमा के साथ पाई जाती है।
- जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों ने 'फ्यूचर सिमुलेटेड लैंडस्केप प्रेडिक्ट्स हैबिटाट लॉस फॉर गोल्डन लंगूर: ए रेंज-लेवल एनालिसिस फॉर ए इंडेंजर्ड प्राइमेट' (Future simulated landscape predicts habitat loss for the golden langur: a range-level analysis for an endangered primate) शीर्षक वाले शोधपत्र में यह अध्ययन प्रकाशित किया है।
- गोल्डन लंगूरों को उनके फर के रंग से आसानी से पहचाना जाता है, और ये भूटान के त्सिरंग, सरपांग, जेमगांग और ट्रोंगसा जिलों के वनों में पाये जाते हैं।
- भारत में, प्रजातियों की खंडित और पृथक आबादी असम के चिरांग, कोकराझार, धुबरी और बोंगाईगांव जिलों में पाई जाती है।
- परिणामों के अनुसार 66,320 वर्ग किमी की कुल रेंज सीमा में से केवल 12,265 वर्ग किमी (18.49%) ही वर्तमान में गोल्डन लंगूर प्रजातियों के लिए उपयुक्त है।
- गोल्डन लंगूर की पर्यावास रेंज वर्ष 2031 तक घटकर 8,884 वर्ग किमी तक हो सकती है।
- असम स्थित चक्रशिला भारत का पहला वन्यजीव अभयारण्य है, जिसमें प्राथमिक प्रजाति के रूप में गोल्डन लंगूर है। चक्रशिला में लगभग 600 गोल्डन लंगूर हैं, जिनकी आबादी पश्चिमी असम और भूटान की तलहटी में फैली हुई है।
संरक्षण की स्थिति: 2003 में, इसे IUCN रेड लिस्ट द्वारा 'संकटग्रस्त' प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। इसे CITES परिशिष्ट I के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया था।
काजीरंगा गैंडों की आबादी में बढ़ोतरी
विश्व धरोहर स्थल काजीरंगा के प्रमुख जानवर की नवीनतम जनगणना से पता चला है कि काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में एक-सींग वाले या भारतीय गैंडों की आबादी में चार वर्षों में 200 की वृद्धि हुई है।
महत्वपूर्ण तथ्य: 2018 में हुई पिछली गैंडों की गणना में यह संख्या 2,413 थी।
- इस साल की गणना में पहली बार 26 उद्यान खंडों की पुन: जांच के लिए ड्रोन का उपयोग किया गया था, जहां नमूना सर्वेक्षण किया गया था।
- भारतीय गैंडा (गैंडा यूनिकॉर्निस), जिसे भारतीय गैंडा, एक सींग वाले गैंडा या महान भारतीय गैंडा भी कहा जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी गैंडे की प्रजाति है।
- इसे आईयूसीएन रेड लिस्ट में 'अतिसंवेदनशील' (Vulnerable) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021
स्विट्जरलैंड स्थित वायु गुणवत्ता प्रौद्योगिकी कंपनी 'आईक्यूएयर' (IQAir) द्वारा जारी ‘विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021’ के अनुसार बांग्लादेश दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है।
(Image Source: https://www.iqair.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: हवा में पार्टिकुलेट मैटर के संदर्भ में, बांग्लादेश ने 2021 में 76.9 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर का औसत पीएम2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) स्तर दर्ज किया है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के अधिकतम अनुमेय स्तर से कहीं अधिक है।
- भारत ने अपने औसत वार्षिक पीएम 2.5 के स्तर में सुधार किया है।
शीर्ष 20 प्रदूषित शहर: भिवाड़ी, गाजियाबाद, होतान (चीन), दिल्ली, जौनपुर, फैसलाबाद (पाकिस्तान), नोएडा, बहावलपुर (पाकिस्तान), पेशावर (पाकिस्तान), बागपत, हिसार, फरीदाबाद, ग्रेटर नोएडा, रोहतक, लाहौर (पाकिस्तान), लखनऊ, जींद, गुरुग्राम, काशगर (चीन) और कानपुर।
भारत का प्रदर्शन: नई दिल्ली लगातार चौथे वर्ष दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है।
- सूचकांक द्वारा 35 भारतीय शहरों को 2021 के लिए सबसे खराब वायु गुणवत्ता वाले शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- इस सूची में राजस्थान का भिवाड़ी सबसे ऊपर है और उसके बाद उत्तर प्रदेश का गाजियाबाद है।
5 अक्टूबर ‘राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा
डॉल्फिन के संरक्षण के लिए जागरूकता पैदा करने के लिए प्रति वर्ष 5 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय डॉल्फिन दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।
महत्वपूर्ण तथ्य: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह जानकारी 25 मार्च, 2022 को राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड की स्थायी समिति की 67वीं बैठक की अध्यक्षता करते हुए दी।
- स्वस्थ जलीय पारिस्थितिक तंत्र ग्रह के समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करते हैं।
- डॉल्फिन एक स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के आदर्श पारिस्थितिक संकेतक के रूप में कार्य करती हैं।
- डॉल्फिन के संरक्षण से प्रजातियों के अस्तित्व और आजीविका के लिए जलीय प्रणाली पर निर्भर लोगों को भी लाभ होगा।
गंगा डॉल्फिन: यह एक संकेतक प्रजाति है, जिसकी स्थिति पारिस्थितिकी तंत्र और उस पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों की समग्र स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करती है।
- इसे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर रेड लिस्ट में 'संकटग्रस्त' (endangered) प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- 2012 और 2015 में WWF-India और उत्तर प्रदेश वन विभाग के आकलन में गंगा, यमुना, चंबल, केन, बेतवा, सोन, शारदा, गेरुवा, गहागरा, गंडक और राप्ती में 1,272 डॉल्फिन दर्ज की गईं।
बोमा कैप्चरिंग तकनीक
मार्च 2022 में राजस्थान के भरतपुर जिले के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में चित्तीदार हिरणों (spotted deer) को पकड़ने और स्थानांतरित करने के लिए ‘अफ्रीका की बोमा तकनीक’ (BOMA CAPTURING TECHNIQUE) का प्रयोग किया गया।
(Image Source: https://epaper.thehindu.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: इस असामान्य प्रयोग को चित्तीदार हिरणों को लगभग 450 किमी दूर स्थित मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित करने के लिए किया गया, ताकि वहाँ शिकार के आधार में सुधार किया जा सके।
- बोमा कैप्चरिंग तकनीक अफ्रीका में काफी लोकप्रिय है। इसमें फनल (वी आकार) जैसी बाड़ के माध्यम से जानवरों का पीछा करके उन्हें एक बाड़े में कैद किया जाता है।
- यह फनल एक पशु चयन-सह-लोडिंग संरचना (animal selection-cum-loading chute) का रूप ले लेता है और इसे जानवरों को भ्रमित करने के लिये घास की चटाई और हरे रंग के जाल से ढका जाता है, जिसे बाद में दूसरे स्थान पर परिवहन के लिए एक बड़े वाहन में रखा जाता है।
- इस पुरानी तकनीक का उपयोग पहले जंगली हाथियों को प्रशिक्षण और सेवा के लिए पकड़ने के लिए किया जाता था।
जीके फैक्ट: हाल के वर्षों में मध्य प्रदेश में इसे अपनाने के बाद, बोमा को राजस्थान में पहली बार बाघों और तेंदुओं के शिकार आधार में सुधार के लिए लिए अभ्यास में लाया जा रहा है।
प्रवाल विरंजन
25 मार्च, 2022 को दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति प्रणाली ऑस्ट्रेलिया के ग्रेट बैरियर रीफ में बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन घटना की पुष्टि की गई।
(Image Source: https://www.climatechangenews.com/)
महत्वपूर्ण तथ्य: प्रवाल या मूंगे समुद्री अकशेरुकी या ऐसे जानवर हैं, जिनकी रीढ़ नहीं होती है। प्रत्येक कोरल को पॉलिप कहा जाता है और ऐसे हजारों पॉलिप्स एक कॉलोनी बनाने के लिए एक साथ रहते हैं।
- प्रवाल एकल-कोशिकीय शैवाल के साथ सहजीवी संबंध साझा करते हैं, जिन्हें 'जूजैन्थेली' (Zooxanthellae) कहा जाता है।
- जूजैन्थेली (शैवाल) प्रवाल को भोजन और चमकीला रंग प्रदान करते हैं। बदले में, प्रवाल जूजैन्थेली शैवाल को आश्रय और प्रमुख पोषक तत्व प्रदान करता है।
- ऑस्ट्रेलिया का ग्रेट बैरियर रीफ 2,300 किमी में फैली दुनिया की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति प्रणाली है। यह 400 विभिन्न प्रकार के प्रवाल, मछलियों की 1,500 प्रजातियों और 4,000 प्रकार के मोलस्क को आश्रय देता है।
- प्रवाल विरंजन तब होता है, जब तापमान में परिवर्तन, प्रदूषण या समुद्र की अम्लता के उच्च स्तर के कारण प्रवाल अपने वातावरण में तनाव का अनुभव करते हैं।
- तनावपूर्ण परिस्थितियों में, प्रवाल पॉलिप्स के अंदर रहने वाले जूजैन्थेली को निष्कासित कर देते हैं। इस कारण प्रवाल सफेद रंग में परिवर्तित हो जाते हैं। यह घटना प्रवाल विरंजन कहलाती है। यह सहजीवी संबंध को भी समाप्त कर देता है जो प्रवाल को जीवित रहने और बढ़ने में मदद करता है।
रेलवे ट्रैक पर हाथियों की मौत को रोकने के लिए स्थायी निकाय का गठन
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने रेल पटरियों पर हाथियों की मौत को रोकने के लिए एक ‘स्थायी’ समन्वय समिति का गठन किया है, जिसमें रेल और पर्यावरण मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
(Image Source: https://www.theweek.in/)
महत्वपूर्ण तथ्य: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने यह जानकारी 28 मार्च, 2022 को लोक सभा में दी।
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि 2018-19 में रेलवे ट्रैक पर देश भर में 19, 2019-20 में 14 और 2020-21 में 12 हाथियों की मौत हुई।
- रेलवे पर एक स्थायी समिति ने 2013 में टकराव की संभावना को कम करने के लिए अतिसंवेदनशील स्थानों पर ट्रेनों की गति को 50 किलोमीटर प्रति घंटे या उससे कम तक सीमित करने की सिफारिश की थी।
हाथियों की मौत की रोकथाम के लिए उठाए गए कदम: चिन्हित किए गए हाथी गलियारों और आवासों में स्थायी और अस्थायी गति (स्पीड) प्रतिबंध लगाना;
- चिन्हित स्थानों पर हाथियों की आवाजाही के लिए अंडरपास और रैंप बनाना;
- चयनित स्थानों पर बाड़ लगाना;
- चिन्हित किए गए हाथी गलियारों के बारे में ट्रेन चालकों को चेतावनी देने के लिए साइनेज (संकेतक) लगाना;
- हाथियों के साथ ट्रेन की टक्कर से बचने के लिए ट्रेन के चालक दल और स्टेशन मास्टरों को संवेदनशील बनाना;
- और रेलवे भूमि के भीतर ट्रैक के किनारों पर वनस्पति/झाड़ी आदि को साफ करना।