वृद्धों की बढ़ती जनसंख्या


प्रश्नः क्या यह सच है कि घटती प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर में कमी और वृद्धावस्था में बढ़ती हुई उत्तरजीविता के साथ युवा से वृद्ध में बदल रही आयु संरचना के फलस्वरूप जन स्वास्थ्य परिचया बोझ में काफी वृद्धि होने की संभावना है; क्या सरकार वृद्ध-परिचया ढांचा, स्वास्थ्य-परिचया ढांचा इत्यादि पर अन्यथा प्रभाव न डालते हुए इन जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है?

(मगुंटा श्रीनिवासुलू रेड्डी एवं पी.वी. मिधुन रेड्डी द्वारा लोकसभा में पूछा गया तारांकित प्रश्न)

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन द्वारा दिया गया उत्तरः रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) के डाटा के अनुसार प्रजनन दर में गिरावट, मृत्यु दर में कमी और वृद्धजनों की उत्तरजीविता में वृद्धि के साक्ष्य हैं। इसके परिणामस्वरूप वृद्धजनों की आबादी (60 वर्ष से अधिक आयु के लोग) वर्ष 1961 में 5.6% (2.47 करोड़) की तुलना में वर्ष 2011 में बढ़कर 8.6% (10.38 करोड़) हो गई है।
  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि वृद्धावस्था में रुग्णता भार अधिक होता है तथा प्रायः अशक्तता रहती है एवं इससे कार्य क्षमता प्रभावित होती है।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रलय प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य परिचया के विविध स्तरों पर राष्ट्रीय वृद्धजन स्वास्थ्य परिचया कार्यक्रम कार्यान्वयन कर रहा है, जिनके तहत निम्नलिखित सुविधा केंद्र स्वीकृत किए गए हैंः

  • अन्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों जैसे कि दृष्टिहीनता, बहरापन, गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के नियंत्रण और मानसिक स्वास्थ्य और मुख स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों के तहत भी वृद्धजनों को स्वास्थ्य परिचया सेवाएं प्रदान की जाती है।
  • इसके अलावा वृद्धजन स्वास्थ्य परिचया सेवाओं को आयुष्मान भारत - स्वास्थ्य एवं आरोग्य केंद्रों के तहत सेवाओं की व्यापक रेंज में भी शामिल किया गया है। आयुष्मान भारत - प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत, सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना डाटा के अनुसार लगभग 10.74 करोड़ गरीब एवं संवेदनशील परिवारों को हर वर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये के हेल्थ कवर का प्रावधान किया गया है, इसमें आयु और परिवार के आकार पर कोई प्रतिबंध नहीं है तथा पात्र परिवार के वृद्धजनों सहित सभी सदस्यों को शामिल किया गया है।