- होम
- सामयिक
- समसामयिकी प्रश्न
- धारा 377
धारा 377
हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को निरस्त किया है। इसके सन्दर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- "नाज़ फाउंडेशन बनाम दिल्ली सरकार" मामले (2009) में दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 377 का हवाला देते हुए कहा कि "धारा 377" असंवैधानिक है और यह कुछ लोगों के अधिकारों का मुद्दा है।
- नालसा (NALSA) मामले (2014) के एक फैसले में, जिसमें 'थर्ड जेंडर' को "अन्य" की श्रेणी में शामिल करने की अनुमति दी गयी, इसने धारा 377 पर एक बार फिर से चर्चा को शुरू कर दिया।
- धारा 377 कानूनी रूप से संरक्षित, गोपनीयता के मौलिक अधिकार का सीधे विरोध करती है।
नीचे दिए गए कूट से सही कथन का चयन करें:
A |
केवल I और II
|
|
B |
केवल II और III
|
|
C |
I, II, III
|
|
D |
केवल I और III
|
Explanation :
जुलाई, 2009 में स्थापित सामाजिक मान्यताओं से हटकर अपने महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने वयस्कों के बीच सहमति से बनाए जाने वाले समलैंगिक संबंधों को वैध घोषित कर दिया था। न्यायालय का कहना था कि समलैंगिकों को धारा 377 की वज़ह से ही समाज अपराधी के तौर पर देखता है, जो कि बेहद चिंताजनक है। क्योंकि, आपसी सहमति से स्थापित यौन संबंधों का अपराधीकरण न केवल लोगों के गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार को नकारना है, बल्कि यह भेदभावपूर्ण भी है।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह और न्यायमूर्ति एस. मुरलीधर की एक खंडपीठ ने कहा कि निर्दोष बच्चों और अप्राकृतिक यौन संबंधों के प्रति असहमति ज़ाहिर करने वाली महिलाओं को इस तरह के आचरण से बचाने के लिये धारा 377 जैसा कानून अस्तित्व में बना रहेगा।
सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन में इस ऐतिहासिक फैसले को चुनौती दी गई थी। नालसा (NALSA) मामले (2014) के एक फैसले में, जिसमें 'थर्ड जेंडर' को "अन्य" की श्रेणी में शामिल करने की अनुमति दी गयी, इसने धारा 377 पर एक बार फिर से चर्चा को शुरू कर किया। क्योंकि, धारा 377 कानूनी रूप से संरक्षित, निजता के मौलिक अधिकार का सीधे विरोध करती है।
प्रारंभिक परीक्षा के लिए यह प्रश्न इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
इस प्रश्न को पूछने का उद्देश्य छात्रों को धारा 377 की ऐतिहासिक पृष्टभूमि के साथ विस्तृत रूप से समझाना है। क्योंकि, इन तर्कों का मुख्य परीक्षा में भी उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामयिक खबरें
- राजनीति और प्रशासन
- अवसंरचना
- आंतरिक सुरक्षा
- आदिवासियों से संबंधित मुद्दे
- कमजोर वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ
- कार्यकारी और न्यायपालिका
- कार्यक्रम और योजनाएँ
- कृषि
- गरीबी और भूख
- जैवविविधता संरक्षण
- पर्यावरण
- पर्यावरण प्रदूषण, गिरावट और जलवायु परिवर्तन
- पारदर्शिता और जवाबदेही
- बैंकिंग व वित्त
- भारत को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह
- भारतीय अर्थव्यवस्था
- रक्षा और सुरक्षा
- राजव्यवस्था और शासन
- राजव्यवस्था और शासन
- रैंकिंग, रिपोर्ट, सर्वेक्षण और सूचकांक
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी
- शिक्षा
- सरकार की नीतियां और हस्तक्षेप
- सांविधिक, विनियामक और अर्ध-न्यायिक निकाय
- स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे