सामयिक

पर्यावरण:

अर्थ आवर

26 मार्च, 2022 को रात 8:30 से 9:30 बजे तक दुनिया भर में 'अर्थ आवर' (Earth Hour) मनाया गया।

(Image Source: https://www.earthhour.org.au/)

महत्वपूर्ण तथ्य: यह पर्यावरण के लिए दुनिया का सबसे बड़ा जमीनी स्तर का अभियान है, जहां दुनिया भर के लोग एक घंटे के लिए गैर-जरूरी लाइट/रोशनी को बंद करके जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुहिम में एकजुट होते हैं और हमारे ग्रह के संरक्षण के लिए समर्थन करते हैं।

  • अर्थ आवर 2007 में सिडनी में एक प्रतीकात्मक लाइट-आउट कार्यक्रम के रूप में शुरू हुआ था।
  • यह हर साल मार्च के आखिरी शनिवार को 185 से अधिक देशों और क्षेत्रों में मनाया जाता है, जो सामूहिक और व्यक्तिगत रूप से ग्रह को कार्बन मुक्त करने के प्रयास में लाखों लोगों को एकजुट करता है।
  • पर्यावरण के प्रति हमारी सामूहिक जिम्मेदारी को उजागर करते हुए इस वर्ष के अर्थ आवर वैश्विक आयोजन का विषय 'शेप अवर फ्यूचर' (Shape our Future) था।
  • वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) और इसके भागीदारों द्वारा वर्ष 2007 में सिडनी में अर्थ आवर की शुरुआत की गई थी।

ग्लाइकोस्मिस एल्बीकारपा

भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने तमिलनाडु में कन्याकुमारी वन्यजीव अभयारण्य से एक नई जिन बेरी (gin berry) प्रजाति 'ग्लाइकोस्मिस एल्बीकारपा' (GLYCOSMIS ALBICARPA) की खोज की है।

(Image Source: https://epaper.thehindu.com/)

महत्वपूर्ण तथ्य: ग्लाइकोस्मिस एल्बीकारपा एक सदाबहार छोटा पेड़ है और दक्षिणी पश्चिमी घाट के लिये स्थानिक है। यह प्रजाति ऑरेंज परिवार रूटासी (Orange family Rutaceae) से संबंधित है।

  • इन टैक्सोनॉमिक (taxonomic) समूहों के कई संबंधित पौधों का उपयोग इनके औषधीय मूल्यों और भोजन के लिए किया जा रहा है।
  • मुख्यतः भोजन एवं दवा के रूप में स्थानीय उपयोग के लिये इन पौधों की अधिकतर संबंधित प्रजातियां जंगलों से एकत्र की जाती हैं।
  • ग्लाइकोस्मिस प्रजाति के जामुन में 'जिन सुगंध’ (Gin Aroma) की अनूठी विशेषता होती है और यह एक खाद्य फल के रूप में लोकप्रिय है। इस प्रजाति के पौधे तितलियों और अन्य प्रजातियों के लार्वा को भी आश्रय प्रदान करते है।
  • इसे तिरुनेलवेली अर्द्ध-सदाबहार जंगलों में कन्याकुमारी वन्यजीव अभयारण्य के पनागुडी वन खंड में खोजा गया था।

13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट

14 मार्च, 2022 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने संयुक्त रूप से वानिकी पहलों के माध्यम से ‘13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट ‘(डीपीआर) जारी की।

(Image Source: https://pib.gov.in/)

महत्वपूर्ण तथ्य: 13 नदियों झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज, यमुना, ब्रह्मपुत्र, लूनी, नर्मदा, गोदावरी, महानदी, कृष्णा और कावेरी के लिए डीपीआर जारी किए गए हैं।

  • डीपीआर भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई), देहरादून द्वारा तैयार किया गया है।
  • डीपीआर रिवर फ्रंट, इको-पार्क विकसित कर और जनता के बीच जागरूकता लाकर संरक्षण, वनीकरण, जलग्रहण उपचार, पारिस्थितिक बहाली, नमी संरक्षण, आजीविका में सुधार, आय सृजन, पारिस्थितिक पर्यटन पर केंद्रित है। अनुसंधान और निगरानी को भी एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • 13 डीपीआर का प्रस्तावित बजट 19,342.62 करोड़ रुपए है।

वानिकी पहलों से लाभ: वानिकी पहलों से 13 नदियों के परिदृश्य में वन क्षेत्र में 7417.36 वर्ग किमी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।

  • प्रस्तावित पहलों से 10 साल पुराने वृक्षारोपण से 50.21 मिलियन टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड और 20 साल पुराने वृक्षारोपण से 74.76 मिलियन टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड कम करने में मदद मिलेगी।।
  • वे भूजल पुनर्भरण में मदद करेंगे, तलछट के जमा होने में कमी करेंगे और साथ ही 344 मिलियन मानव-दिवस का रोजगार सृजित करेंगे।

अन्य तथ्य: 13 नदियां सामूहिक रूप से 18,90,110 वर्ग किमी के कुल बेसिन क्षेत्र को आच्छादित करती हैं, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 57.45% हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है।

  • परियोजना के अंतर्गत 202 सहायक नदियों सहित 13 नदियों की लंबाई 42,830 किमी है।

उल्लू प्रजाति संरक्षण

उल्लुओं को होने वाले सामान्य खतरों को उजागर करने और उल्लुओं की प्रभावी पहचान के लिए 'ट्रेफिक' (TRAFFIC) और 'डब्ल्यूडब्ल्यूएफ - इंडिया' (WWF - India) ने हाल में एक पहचान उपकरण लॉन्च किया है।

(Image Source: https://twitter.com/TRAFFIC_India)

महत्वपूर्ण तथ्य: कानून प्रवर्तन अधिकारियों को देश में अवैध व्यापार में आम तौर पर पाई जाने वाली 16 उल्लू प्रजातियों की सही पहचान करने में सक्षम बनाने के लिए पहचान (आईडी) कार्ड जारी किए गए हैं।

  • अंग्रेजी और हिंदी में ये आईडी कार्ड पूरे भारत में वन्यजीव कानून प्रवर्तन एजेंसियों को मुफ्त में वितरित किए जाएंगे।
  • नए आईडी टूल इनकी प्रजातियों की कानूनी स्थिति, आवास और वितरण से संबंधित आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं।
  • वे प्रजातियों के स्तर पर उल्लुओं की पहचान करने और सामान्य खतरों को उजागर करने के लिए कीमती सुझाव भी प्रदान करते हैं।

भारत में उल्लू की प्रजातियाँ: भारत में उल्लू की लगभग 36 प्रजातियाँ हैं, जो सभी वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं।

  • हालाँकि, प्रजातियों के वर्गीकरण के आधार पर गणना की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है, जिससे ये प्रजातियाँ अतिसंवेदनशील (vulnerable) हो जातीहैं।

संरक्षण: वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अनुसार उल्लूओं का शिकार करना, व्यापार करना या किसी अन्य प्रकार का उपयोग एक दंडनीय अपराध है; भारत में पाई जाने वाली सभी उल्लू प्रजातियों को CITES के तहत भी सूचीबद्ध किया गया है, जो इनके अंतरराष्ट्रीय व्यापार को प्रतिबंधित करता है।

ट्रेफिक (TRAFFIC: इसकी स्थापना 1976 में WWF और IUCN द्वारा वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क के रूप में की गई थी ताकि वन्यजीव व्यापार पर निर्णय लेने की सूचना देने के लिए डेटा संग्रह, विश्लेषण और सिफारिशों का प्रावधान किया जा सके।

अरावली जैव विविधता पार्क भारत का पहला ओईसीएम साइट घोषित

अरावली जैव विविधता पार्क को फरवरी 2022 में भारत का पहला 'अन्य प्रभावी क्षेत्र-आधारित संरक्षण उपाय (ओईसीएम) (Other Effective Area-Based Conservation Measures: OECM) साइट घोषित किया गया।


(Image Source: https://www.hindustantimes.com/)

महत्वपूर्ण तथ्य: ओईसीएम टैग इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा उन क्षेत्रों को दिया जाता है, जो संरक्षित नहीं हैं लेकिन समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करते हैं।

  • 390 एकड़ में फैले अरावली जैव विविधता पार्क में लगभग 300 देशी पौधों, 101,000 वृक्षों और कई पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • गुरुग्राम के शहरी स्थानीय निकाय की मदद से नागरिकों, पारिस्थितिकीविदों और वैज्ञानिकों के प्रयासों से पार्क को 40 साल पुराने खनन स्थल से शहर के वन (city forest) में बदल दिया गया था।
  • अरावली, दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक है, जिसे दिल्ली-एनसीआर का 'ग्रीन लंग्स' (green lungs) माना जाता है, जो संभावित रूप से दिल्ली-एनसीआर के लिए लगभग 7.07% ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।

प्लास्टिक प्रदूषण पर संकल्प

केन्या में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में विश्व के नेताओं ने प्लास्टिक प्रदूषण की बाढ़ को रोकने के लिए अब तक के सबसे बड़े प्रयास में एक साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की है।

(Image Source: https://www.washingtonpost.com/)

महत्वपूर्ण तथ्य: पांचवीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में 175 देशों ने एक संकल्प को अपनाने के लिए मतदान किया है, जो 2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते का मार्ग प्रशस्त करता है।

  • संधि की शर्तों पर वार्ता के लिए एक अंतर-सरकारी समिति बनाने के लिए सहमत होने वाले राष्ट्रों के साथ वोट सर्वसम्मति से था।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के प्रमुख, इंगर एंडरसन ने कहा कि प्लास्टिक संधि ‘2015 के पेरिस समझौते’ के बाद से सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय समझौता होगा।
  • अंतिम संधि के विवरण पर बातचीत होनी बाकी है, लेकिन इसमें नए प्लास्टिक के उत्पादन पर प्रतिबंध शामिल हो सकता है, और यह प्लास्टिक प्रदूषण के सभी पहलुओं को ध्यान में रखेगा, जिसमें समुद्र, मिट्टी और खाद्य शृंखला में प्लास्टिक कण शामिल हैं।
  • पांचवीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए 5.2) का पुन: शुरू सत्र (resumed session) 28 फरवरी, 2022 से 2 मार्च, 2022 तक नैरोबी में आयोजित किया गया।

आईपीसीसी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट-II

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने 28 फरवरी, 2022 को अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट का दूसरा भाग जारी किया।

(Image Source: https://www.ipcc.ch/)

रिपोर्ट की मुख्य बातें: दुनिया अगले दो दशकों में 1.5 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग के साथ कई जलवायु खतरों का सामना कर रही है, जिसके गंभीर प्रभाव होंगे, जिनमें से कुछ अपरिवर्तनीय होंगे।

  • मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन, जिसमें अधिक लगातार और तीव्र चरम घटनाएं शामिल हैं, ने प्रकृति और लोगों को व्यापक क्षति पहुंचाई है। कुछ विकास और अनुकूलन प्रयासों ने सुभेद्यता को कम कर दिया है।
  • अगर सरकारें अपने मौजूदा उत्सर्जन-कटौती प्रतिबद्धता को पूरा करती हैं तो इस सदी में वैश्विक समुद्र का स्तर 44-76 सेंटीमीटर तक बढ़ेगा। तेजी से उत्सर्जन में कटौती के साथ, वृद्धि 28-55 सेमी तक सीमित रह सकती है।
  • लेकिन अत्यधिक उत्सर्जन के साथ यदि हिमचादरें टूटती हैं, तो समुद्र का स्तर इस सदी में 2 मीटर और वर्ष 2150 तक 5 मीटर तक बढ़ सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के भौतिक विज्ञान पर इस रिपोर्ट का पहला भाग अगस्त 2021 में जारी किया गया था।

भारत में वेट बल्ब तापमान (wet-bulb temperature): रिपोर्ट में भारत में वेट-बल्ब तापमान के बारे में बताया गया है कि इसके तहत किसी शहर का तापमान और आर्द्रता का आंकलन किया जाता है।

  • अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही तो लखनऊ और पटना 35 डिग्री सेल्सियस के वेट बल्ब तापमान तक तथा भुवनेश्वर, चेन्नई, मुंबई, इंदौर और अहमदाबाद32-34 डिग्री सेल्सियस के वेट बल्ब तापमान तक पहुंच सकते हैं।
  • कुल मिलाकर, असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होंगे।
  • लेकिन अगर उत्सर्जन बढ़ता रहा तो सभी राज्यों में ऐसे क्षेत्र होंगे, जो 30 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक वेट बल्ब तापमान का अनुभव करेंगे।

क्रायटोडैक्टाइलस एक्सर्सिटस

फरवरी 2022 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पशु चिकित्सकों की एक टीम ने मेघालय के उमरोई मिलिट्री स्टेशन के एक जंगली हिस्से से 'बेंट-टोड गेको' (bent-toed gecko) छिपकली की एक नई प्रजाति को दर्ज किया है।

(Image Source: https://www.thehindu.com/)

महत्वपूर्ण तथ्य: इसका वैज्ञानिक नाम 'क्रायटोडैक्टाइलस एक्सर्सिटस' (Crytodactylus exercitus) है और अंग्रेजी नाम 'इंडियन आर्मी बेंट-टोड गेको' (Indian Army’s bent-toed gecko) है।

  • देश के लिए सेना की सेवाओं के लिए सेना को सम्मानित करने के लिए यह नाम दिया गया है।
  • अन्य प्रजातियां: इस अध्ययन की खोज 'यूरोपियन जर्नल ऑफ टैक्सोनॉमी' के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुई थी।
  • इसके अलावा एक और नए ‘बेंट-टोड गेको’ को मिजोरम के सियाहा जिले (जहां यह पाया गया था) के नाम पर ‘क्रायटोडैक्टाइलस सियाहेन्सिस’ (Cyrtodactylus Siahaensis) नाम दिया गया है।
  • एक अलग अध्ययन में मिजोरम के लुंगलेई शहर के नाम पर ‘बेंट-टोड गेको’ की एक नई प्रजाति 'क्रायटोडैक्टाइलस लुंगलेइन्सिस' (Cyrtodactylus lungleiensis) को दर्ज किया गया था।

गेको: गेको छोटी, ज्यादातर मांसाहारी छिपकली होती हैं। ये अंटार्कटिका को छोड़कर हर महाद्वीप पर पाए जाते हैं।

  • अधिकांश गेको प्रजातियां निशाचर हैं, कुछ प्रजातियां दिन के दौरान और सक्रिय होती हैं।
  • भारत अब बेंट-टोड गेको की 40 प्रजातियां है, जिनमें से 16 उत्तर-पूर्व में है।

मध्य प्रदेश के जबलपुर में बनेगा भारत का पहला जियोलॉजिकल पार्क

मध्य प्रदेश के जबलपुर के लम्हेटा में देश का पहला 'जियोलॉजिकल पार्क' (geological park) बनाया जाएगा।

महत्वपूर्ण तथ्य: पांच एकड़ भूमि पर 35 करोड़ रुपये के निवेश के साथ पार्क के निर्माण के लिए भारत सरकार के खनन मंत्रालय के तहत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई है।

  • भूवैज्ञानिक दृष्टिकोण से जबलपुर का लम्हेटा विश्व के सबसे महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है।
  • विलियम हेनरी स्लीमैन ने इस क्षेत्र से वर्ष 1928 में डायनासोर के जीवाश्म की खोज की थी।
  • 15.20 करोड़ रुपये की लागत से जबलपुर जिले के भेड़ाघाट में एक विज्ञान केंद्र भी बनाया जाएगा।
  • नर्मदा घाटी में भेड़ाघाट-लम्हेटाघाट स्थल पहले से ही प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए यूनेस्को की भू-विरासत की अस्थायी सूची में है।

भारत के दो नए रामसर स्थल

फरवरी 2022 में भारत के दो नई आर्द्रभूमि को रामसर स्थल में जोड़ा गया है।

(Image Source: https://newsonair.com/)

महत्वपूर्ण तथ्य: आर्द्रभूमि पर रामसर कन्वेंशन ने गुजरात में जामनगर के पास खिजड़िया पक्षी अभयारण्य और उत्तर प्रदेश में बखिरा वन्यजीव अभयारण्य को अंतरराष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि के रूप में नामित किया है।

  • इन दो आर्द्रभूमियों के जुड़ने से, भारत में रामसर स्थलों की संख्या 49 हो गई है, जो दक्षिण एशिया के किसी भी देश के लिए सबसे अधिक है।
  • रामसर कन्वेंशन (1971), एक अंतर-सरकारी संधि है, जो आर्द्रभूमि और उनके संसाधनों के संरक्षण और बुद्धिमतापूर्ण उपयोग के लिए राष्ट्रीय कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय सहयोग की रूपरेखा प्रदान करती है।
  • विश्व स्तर पर, आर्द्रभूमि दुनिया के भौगोलिक क्षेत्र का 6.4% कवर करती है।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा संकलित राष्ट्रीय आर्द्रभूमि सूची और आकलन के अनुसार, भारत में आर्द्रभूमि 1,52,600 वर्ग किलोमीटरमें फैली हुई है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 4.63% है।
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