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ई-कॉमर्स उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु रूपरेखा

हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामलों के विभाग ने ई-कॉमर्स (E-commerce) में फर्जी एवं भ्रामक समीक्षाओं (fake and deceptive reviews) से उपभोक्ता हितों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक रूपरेखा का शुभारंभ किया।

प्रमुख दिशानिर्देश

  • स्वैच्छिक कार्रवाई: अमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर पेश किए जाने वाले उत्पादों एवं सेवाओं से संबंधित सभी सशुल्क उपभोक्ता समीक्षाओं का स्वेच्छा से खुलासा करना होगा।
  • पहचान: समीक्षाओं (Reviews) को भ्रामक(misleading) नहीं होना चाहिए और समीक्षकों की अनुमति के बिना उनकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए।
  • खरीदी गई समीक्षा: अगर कोई समीक्षा खरीदी जाती है या समीक्षा लिखने के लिए व्यक्ति को पुरस्कृत किया जाता है, तो उसे स्पष्ट रूप से खरीदी गई समीक्षा (Purchased Review) के रूप में चिह्नित करना होगा।
  • आवेदन पत्र: मानक IS 19000 : 2022, उन सभी संगठनों पर लागू होगा, जो उपभोक्ता समीक्षाओं को ऑनलाइन प्रकाशित करते हैं। इनमें उत्पादों एवं सेवाओं के आपूर्तिकर्ता शामिल होंगे जो अपने ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं द्वारा अनुबंधित तृतीय पक्षों या स्वतंत्र तृतीय पक्षों से समीक्षा एकत्र करते हैं।
  • परिभाषा: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा समीक्षाओं को अनुरोधित और अवांछित के रूप में परिभाषित किया गया है। किसी भी संगठन में समीक्षा को संभालने के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को समीक्षा प्रशासक कहा जाएगा।
  • समय-सीमा: यदि किसी उत्पाद को 4-5 स्टार रेटिंग मिलती है, तो संगठन को डेटा एकत्र करने वाली अवधि की सूचना देनी होगी।

भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र

  • वर्ष 2020 में 50 बिलियन डॉलर के कारोबार के साथ, भारत ई-कॉमर्स के लिए 8वां सबसे बड़ा बाजार बन गया है।
  • भारतीय ई-कॉमर्स क्षेत्र वर्ष 2027 में 26.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2021 में 3.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • भारत की उपभोक्ता डिजिटल अर्थव्यवस्था (consumer digital economy) के 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का बाजार बनने की उम्मीद है, जो 2020 में 537.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
  • व्यावसायिक सेवा कंपनी ग्रांट थॉर्नटन के अनुसार, वर्ष 2025 तक भारत में ई-कॉमर्स का मूल्य 188 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने की उम्मीद है।

-कॉमर्स से जुड़ी चुनौतियां

  • ठोस विनियामक प्रणाली का अभाव: भारत में वर्तमान में भी ई-कॉमर्स फर्मों के लिए किसी ठोस विनियामक प्रणाली का अभाव है, इन्हें कई मंत्रालयों द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • डेटा की सुरक्षा: ई-कॉमर्स कंपनियों के संबंध में डेटा की निजता (Data Privacy) को लेकर भी सवाल उठाए जाते हैं, कुछ लोगों मानना है कि ये कंपनियां उनका व्यक्तिगत डेटा कलेक्ट कर रही हैं, जो कि चिंता की बात है।
  • असमान प्रतिस्पर्धा: ठोस विनियामक प्रणाली के अभाव की वज़ह से छोटे और मझोले उद्योगों को इन ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ असमान प्रतिस्पर्धा की समस्या का सामना भी करना पड़ता है|
  • फेक रिव्यू: ई-कॉमर्स कंपनियों की वेबसाइट पर फेक रिव्यू के बढ़ते मामले भी देखे जाते हैं। यह उपभोक्ताओं के किसी वस्तु को खरीदने के निर्णय को प्रभावित करता है।

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS)

  • इसे भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम, 2016 द्वारा स्थापित किया गया है।
  • भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) भारत सरकार के उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के उपभोक्ता मामलों के विभाग के तहत भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है।
  • यह वस्तुओं के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन की गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए उत्तरदायी है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है तथा इसके 5 क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई, मुंबई, चंडीगढ़ और दिल्ली में हैं।

4500 मेगावाट बिजली की खरीद हेतु योजना

28 नवंबर, 2022 को ऊर्जा मंत्रालय ने शक्ति (SHAKTI- Scheme for Harnessing and Allocating Koyala Transparently in India) नीति के तहत 5 साल के लिए प्रतिस्पर्धी आधार पर ‘4500 मेगावाट की कुल बिजली की खरीद’ (Procurement of Aggregate Power of 4500 MW) नामक योजना का शुभारंभ किया।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • नोडल एजेंसी: पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन (Power Finance Corporation) की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी 'पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन कंसल्टिंग (Consulting)' को ऊर्जा मंत्रालय द्वारा नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • विद्युत की आपूर्ति: इस योजना के तहत, पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन कंसल्टिंग ने 4500 मेगावाट की आपूर्ति के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं और अप्रैल 2023 से विद्युत की आपूर्ति शुरू हो जाएगी।
  • संशोधित बिजली खरीद समझौता: यह पहली बार है कि शक्ति योजना के तहत बोली लगाई जा रही है। साथ ही, इस बोली में मध्यम अवधि के लिए संशोधित बिजली खरीद समझौता (Power Purchase Agreement) का इस्तेमाल किया जा रहा है।
  • महत्व: इस योजना से उन राज्यों को मदद मिल सकती है, जो ऊर्जा की कमी का सामना कर रहे हैं और उत्पादन संयंत्रों को अपनी क्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

शक्ति नीति

  • शुभारंभ: शक्ति (स्कीम फॉर हार्नेसिंग एंड अलॉटिंग कोयला ट्रांसपेरेंटली इन इंडिया) नीति की शुरुआत 2017 में वर्तमान और भविष्य के ऊर्जा संयंत्रों को कोयले के बेहतर आवंटन की पूर्ति करने हेतु की गई थी।

उद्देश्य:

  • भारत में सभी थर्मल पावर प्लांटों को कोयले की उपलब्धता सुनिश्चित करना है;
  • कोयले के लाभ अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुंचाना;
  • आयातित कोयले पर निर्भरता कम करना और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना;
  • बिजली उत्पादकों को समन्वित तरीके से ईंधन की आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करना।

पीएसएलवी-सी54 के जरिये ईओएस-06 सहित 9 उपग्रहों का प्रक्षेपण

26 नवंबर, 2022 को इसरो ने पीएसएलवी-सी54 से ईओएस-06 (EOS-06) उपग्रह तथा 8 नैनो-उपग्रहों को एक साथ दो अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह मिशन सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पूरा किया गया।

  • यह पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) की 56वीं उड़ान तथा PSLV-XL संस्करण की 24वीं उड़ान थी।

EOS-06 उपग्रह

  • यह ओशनसैट श्रृंखला में तीसरी पीढ़ी का उपग्रह है, इसी कारण से इस उपग्रह को ओशनसैट-3.0 (Oceansat-3) का नाम भी दिया गया है, जो एक प्रकार का भू-प्रेक्षण उपग्रह (Earth Observation Satellite) है|
  • EOS-06 उपग्रह में ओशन कलर मॉनिटर (Ocean Color Monitor-3 या OCM-3), सी सरफेस टेम्परेचर मॉनिटर (Sea Surface Temperature Monitor - SSTM), Ku-बैंड स्कैटरोमीटर (SCAT-3) जैसे महत्वपूर्ण पेलोड हैं।

ईओएस-06 के अतिरिक्त 8 अन्य उपग्रह

उपग्रह

संख्या

निर्माता

इसरो नैनो सैटेलाइट-2 (INS-2B)

1

यू आर राव उपग्रह केंद्र/इसरो

आनंद (Anand) नैनो उपग्रह

1

बेंगलुरू स्थिति निजी कंपनी पिक्सेल (Pixxel)

एस्ट्रोकास्ट उपग्रह (Astrocast)

4

अमेरिकी एयरोस्पेस कंपनी स्पेसफ्लाइट (Spaceflight)

थायबोल्ट (Thybolt) उपग्रह

2

भारतीय निजी एयरोस्पेस निर्माता ध्रुव स्पेस लिमिटेड

अन्य महत्वपूर्ण बिंदु

  • आईएनएस-2बी (INS-2B): आईएनएस-2बी नामक नैनो सैटेलाइट भारत और भूटान के मध्य सहयोग मिशन है।
  • आनंद (Anand): यह ‘थ्री एक्सिस स्टेबलाइज़्ड’ (Three Axis Stabilized) नैनो उपग्रह है, जो लघुकृत इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल पेलोड (miniaturized electro-optical payload) के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक है।
  • एस्ट्रोकास्ट (Astrocast): यह इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक उपग्रह है।

भू-प्रेक्षण उपग्रह

  • इसरो ने वर्ष 1988 में आई.आर.एस.-1ए को प्रक्षेपित किया था, इसके पश्चात इसरो द्वारा कई सुदूर संवेदन उपग्रहों का प्रमोचन किया गया है।
  • वर्तमान में भारत के पास सबसे बड़ी संख्या में प्रचालनरत सुदूर संवेदन उपग्रहों का समूह है।
  • इनमें रिसोर्ससैट-1 और 2, 2ए, कार्टोसैट-1 एवं 2, 2ए, 2बी, रीसैट-1 एवं 2, ओशनसैट-2, मेघा-ट्रापिक्स, सरल आदि उल्लेखनीय है।
  • इन उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का प्रयोग विभिन्न अनुप्रयोगों जैसे कृषि, जल संसाधन, शहरी योजना, ग्रामीण विकास, खनिज संभावना, पर्यावरण, वानिकी, समुद्री संसाधन तथा आपदा प्रबंधन में किया जाता है।

बिहार सरकार की ‘हर घर गंगाजल’ योजना

27 नवंबर, 2022 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नालंदा जिले के राजगीर से 'हर घर गंगाजल योजना' का शुभारंभ किया। इस योजना को दिसंबर 2019 में बिहार कैबिनेट की मंजूरी प्राप्त हुई थी।

  • इस योजना को राज्य सरकार की ‘जल, जीवन, हरियाली योजना’ के तहत आरंभ किया गया है।
  • योजना के तहत गंगा नदी के अधिशेष जल को दक्षिण बिहार के जल संकट वाले क्षेत्रों (मुख्य रूप से शहरों) में ले जाकर पेयजल के रूप में इस्तेमाल करने की अनूठी परिकल्पना पेश की गई है।
  • योजना के तहत, प्रत्येक व्यक्तिगत लाभार्थी को पेयजल तथा घरेलू उद्देश्यों के लिए प्रतिदिन 135 लीटर (दो बड़ी बाल्टी) गंगा जल प्राप्त होगा।

योजना की शुरुआत क्यों की गई है?

  • धार्मिक और पर्यटन के लिए प्रसिद्ध नालंदा, गया और बोधगया में प्रति वर्ष लाखों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं, किंतु इन शहरों में गर्मियों में पेयजल की कमी हो जाती है।
  • इस परियोजना का उद्देश्य इन्ही दक्षिणी क्षेत्रों में उपचारित गंगा जल की आपूर्ति करना है।

योजना का कार्यान्वयन

  • योजना का पहला चरण 4,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ लागू किया जा रहा है। इस चरण के तहत राजगीर, बोधगया तथा गया में लगभग 7.5 लाख घरों में जल की आपूर्ति हेतु बड़े पंपों के माध्यम से हाथीदह (मोकामा के पास) से जल एकत्र किया जाएगा।
  • एकत्रित जल को आरंभ में राजगीर और गया में जलाशयों में संग्रहीत किया जाएगा। तत्पश्चात, इस जल को तीन उपचार एवं शुद्धिकरण संयंत्रों में भेजा जाएगा।
  • इस योजना के तहत राजगीर शहर के 19 वार्डों के करीब 8031 घरों, गया शहर के 53 वार्डों के करीब 75000 घरों और बोधगया शहर के 19 वार्डों के करीब 6000 घरों में शुद्ध पेयजल के रूप में गंगाजल की आपूर्ति की जाएगी। योजना के तहत प्रतिव्य क्ति प्रतिदिन 135 लीटर शुद्ध जल की आपूर्ति का लक्ष्य है।
  • इस परियोजना के दूसरे चरण के वर्ष 2023 में आरंभ होने की संभावना है। इससे नवादा जनपद को गंगा जल प्रदान किया जाएगा।

महत्व

  • यह प्रथम बार है जब देश में गंगा नदी के बाढ़ के अतिरिक्त जल को पेयजल के रूप में परिवर्तित करके लगभग 7.5 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है।
  • बिहार सरकार की ओर से वर्ष 2051 तक की जनसंख्या वृद्धि का अनुमान लगाते हुए इस परियोजना का निर्माण किया गया है। आने वाले समय में इस परियोजना से लगभग 25 लाख से अधिक लोगों को लाभ प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया है।

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात

28 नवंबर, 2022 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश के विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात के संबंध में नवीनतम आंकड़े जारी किये गए।

अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के ऋण-जमा अनुपात संबंधी तिमाही आंकड़े (Quarterly Statistics on Credit-Deposit Ratios of Scheduled Commercial Banks)

  • इन आंकड़ों के अनुसार भारत के उत्तरी एवं पश्चिमी क्षेत्रों के क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात में वर्ष 2022 में गिरावट आई है, जबकि उत्तर-पूर्वी, पूर्वी, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में सुधार हुआ है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • 2022 में हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में सुधार देखा गया है, जबकि पंजाब, चंडीगढ़ और दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेश एवं राज्यों में गिरावट देखी गई है।
  • जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2022 में क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात में 52.2 प्रतिशत (2021 में 48.9 प्रतिशत) और 36.9 प्रतिशत (2021 में 35.4 प्रतिशत) के साथ बेहतर सुधार किया है।

क्षेत्रवार क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात

क्षेत्र

2021

2022

उत्तरी

78.2 प्रतिशत

77.7 प्रतिशत

उत्तर-पूर्वी

46.1 प्रतिशत

46.4 प्रतिशत

पूर्वी

43.9 प्रतिशत

44.7 प्रतिशत

मध्य

51.3 प्रतिशत

53.1 प्रतिशत

पश्चिमी

78.1 प्रतिशत

77.5 प्रतिशत

दक्षिणी

86.3 प्रतिशत

87.6 प्रतिशत

क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात

  • तात्पर्य: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात का तात्पर्य बैंकों की संपत्ति और देनदारियों के अनुपात से है। यह अनुपात दर्शाता है कि एक बैंक ने अपने द्वारा जुटाई गई जमाराशियों में से कितना उधार दिया है।
  • उपयोग: इसका उपयोग बैंक के कुल ऋण को प्राप्त कुल जमा राशि से विभाजित करके बैंक की तरलता को मापने के लिए किया जाता है।
  • महत्व: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बैंक के वित्तीय स्वास्थ्य का आकलन करने में मदद करता है।
    • इसका उपयोग बैंकिंग विकास में अंतर-राज्यीय असमानताओं और आर्थिक गतिविधियों में बैंकिंग की भूमिका को मापने के लिए एक व्यापक संकेतक के रूप में किया जाता है।
    • इसका निम्न अनुपात दर्शाता है कि बैंक अपने संसाधनों (अर्थात् जमा) का पूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हैं। अर्थात यह खराब ऋण वृद्धि को दर्शाता है।
  • ऋणों की गुणवत्ता: क्रेडिट-डिपॉजिट अनुपात बैंक द्वारा जारी किए गए ऋणों की गुणवत्ता को नहीं मापता है। यह उन ऋणों की संख्या को भी नहीं दर्शाता है जो डिफ़ॉल्ट रूप में हैं या उनके भुगतान में चूक हो सकती है।

CITES की कॉप-19 बैठक

14 से 25 नवंबर 2022 के मध्य वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (Convention on International Trade in Endangered Species - CITES) के पक्षकारों की 19वीं बैठक (COP19) पनामा में आयोजित की गई।

  • इस सम्मेलन में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा तथा संरक्षण संबंधी पहलों की शुरुआत की गई।

सम्मेलन के मुख्य बिंदु

  • भारत द्वारा प्रस्ताव: भारत द्वारा इस सम्मेलन में सॉफ्टशेल कछुए (Leith’s Softshell Turtle), जयपुर हिल गेको (Jeypore Hill Gecko) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल (Red-Crowned Roofed Turtle) को CITES के परिशिष्ट II से परिशिष्ट I में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
    • सॉफ्टशेल कछुए को निल्सोनिया लेथि (Nilssonia leithi) कहा जाता है। जयपुर हिल गेको को साइरटोडैक्टाइलस जेपोरेंसिस (Cyrtodactylus jeyporensis) तथा रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल को बटागुर कचुगा (Batagur kachuga) कहा जाता है। भारत के इस प्रस्ताव को वर्तमान इस बैठक में अपनाया लिया गया है।
  • पैंगोलिन का संरक्षण: पैंगोलिन दुनिया में सबसे ज्यादा तस्करी किये जाने वाला जानवर है, इसको तस्करी से संरक्षित किए जाने से संबंधित पहल की शुरुआत की गई है।
    • 19वें सम्मेलन में भागीदार देशों ने पैंगोलिन के भागों और इसके ‘डेरिवेटिव’ को दवा बनाने के लिए संदर्भित न करने का आग्रह किया है ताकि इस प्रजाति को अवैध शिकार से बचाया जा सके।
  • समुद्री खीरा (Sea Cucumbers): इस सम्मलेन में समुद्री खीरे के अवैध व्यापार पर भी नियंत्रण लगाने का प्रयास किया गया तथा समुद्री खीरे को संकटग्रस्त (threatened) प्रजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • हाथी दांत का व्यापार: CITES की CoP19 बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित अंतरराष्ट्रीय व्यापार को फिर से खोलने के प्रस्ताव पर भी मतदान किया गया, जिसमें भारत ने भाग नहीं लिया।
    • हालांकि इस बैठक में हाथी दांत के नियंत्रित व्यापार की अनुमति देने वाला प्रस्ताव विफल हो गया, यह प्रस्ताव नामीबिया, बोत्सवाना, दक्षिण अफ्रीका और जिम्बाब्वे द्वारा लाया गया था ।

वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन

  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों और वनस्पतियों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार से प्रजातियों के अस्तित्व को खतरा नहीं है।
  • इसके अंतर्गत वर्तमान में जानवरों और पौधों की 37, 000 से अधिक प्रजातियों की अलग-अलग श्रेणियों को विभिन्न परिशिष्टों में रखकर सुरक्षा प्रदान की जाती है।
  • यह देशों के बीच बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय समझौता (संधि) है, जिसे 1963 में IUCN के सदस्यों द्वारा अपनाए गए एक प्रस्ताव के परिणामस्वरूप तैयार किया गया था। 1975 में यह लागू हुआ।
  • इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जंगली जानवरों और पौधों के नमूनों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार उनके अस्तित्व के लिए खतरा नहीं हो।
  • CITES सदस्य देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी (legally binding) है। हालांकि यह राष्ट्रीय कानूनों का स्थान नहीं लेता है। भारत इसका एक हस्ताक्षरकर्ता है और 1976 में CITES कन्वेंशन की पुष्टि भी कर चुका है।

CITES के तीन परिशिष्ट

  • परिशिष्ट I : यह उन प्रजातियों को सूचीबद्ध करता है जिनके विलुप्त होने की संभावना हैं। इन प्रजातियों के व्यापार-नमूनों को केवल असाधारण परिस्थितियों में अनुमति दी जाती है।
  • परिशिष्ट II : वे प्रजातियां हैं जिन्हें विलुप्त होने का खतरा नहीं है, लेकिन अगर व्यापार प्रतिबंधित नहीं है तो संख्या में गंभीर गिरावट हो सकती है। प्रजातियों का व्यापार पूर्व अनुमति से हो सकता है।
  • परिशिष्ट III: इसमें वे प्रजातियां आती हैं जो कम से कम एक ऐसे देश में संरक्षित हों जो एक CITES सदस्य देश हो तथा जिसने उस प्रजाति के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने हेतु सहायता मांगी हो।

अग्नि-3 परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल

24 नवंबर, 2022 को भारत ने ओडिशा स्थित अब्दुल कलाम द्वीप से मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (Intermediate Range Ballistic Missile) अग्नि-3 का सफल प्रक्षेपण किया।

  • अग्नि-3 बैलिस्टिक मिसाइल सशस्त्र बलों के शस्त्रागार में पहले से ही शामिल की जा चुकी है, जो भारत को प्रभावी रक्षा क्षमता प्रदान करती है।

मुख्य बिंदु

  • वर्तमान अग्नि-3 मिसाइल का परीक्षण नियमित उपयोगकर्ता प्रशिक्षण प्रक्षेपण का एक हिस्सा था जो सामरिक बल कमान (Strategic Forces Command) के तत्वावधान में किया जाता है।
  • अग्नि-3 का यह परीक्षण एक पूर्व निर्धारित सीमा के अंदर सभी परिचालन मानकों की जांच के लिए किया गया था| इसने सभी मानकों को पूरा किया|
  • अग्नि-3 का पहली बार परीक्षण 9 जुलाई, 2006 को किया गया था हालांकि, यह एक सफल प्रक्षेपण नहीं था।
  • इस मिसाइल ने अपनी प्रथम सफल परीक्षण उड़ान 2007 में सफलतापूर्वक पूरी की। वर्ष 2008 में इस मिसाइल ने अपने लगातार तीसरे प्रक्षेपण में निर्धारित मानकों के अनुसार सफल प्रदर्शन किया।

अग्नि-3 मिसाइल

  • इसका वजन 48 टन से अधिक है तथा यह इसकी लम्बाई 16 मीटर है| यह अत्याधुनिक मिसाइल आधुनिक और कॉम्पैक्ट वैमानिकी या एवियोनिक्स (avionics) से लैस है।
  • मारक क्षमता: इस मिसाइल की मारक क्षमता 3000 किलोमीटर से अधिक है और यह 1.5 टन से अधिक का पेलोड ले जाने में सक्षम है।
  • सटीक स्ट्रेटेजिक बैलिस्टिक मिसाइल: अपनी उच्च रेंज के कारण, अग्नि-3 मिसाइल को अपने वर्ग में दुनिया की सबसे सटीक स्ट्रेटेजिक बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में जानी जाती है।
  • वारहेड क्षमता: अपने लक्ष्य तक उच्च दक्षता के साथ यह पारंपरिक तथा गैर-पारंपरिक वारहेड ले जा सकती है जो इसे एक घातक हथियार बनाता है।
  • अग्नि श्रृंखला की मिसाइलें भारत की परमाणु हथियार क्षमता की रीढ़ हैं।

अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल

22 नवंबर, 2022 को तमिलनाडु सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी कर मदुरै जिले के अरिट्टापट्टी और मीनाक्षीपुरम गांवों को राज्य का पहला जैव विविधता विरासत स्थल (Biodiversity Heritage Site) घोषित किया गया।

  • यह तमिलनाडु का पहला और भारत का 35वाँ जैव विविधता विरासत स्थल है।
  • इसे अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल (Arittapatti Biodiversity Heritage site) के रूप में जाना जाएगा।

अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल से संबंधित मुख्य तथ्य

  • क्षेत्र एवं विस्तार: अरिट्टापट्टी जैव विविधता विरासत स्थल का विस्तार 193.42 हेक्टेयर क्षेत्र पर होगा, जिसके अंतर्गत अरिट्टापट्टी गांव (मेलूर ब्लॉक) का 139.63 हेक्टेयर क्षेत्र तथा मीनाक्षीपुरम गांव (पूर्वी मदुरै तालुक) का 53.8 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल होगा।
  • कानूनी आधार: इसे जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 (Section 37 of the Biological Diversity Act, 2002) के तहत जैव विविधता विरासत स्थल घोषित किया गया है।
  • स्थानिक जैव विविधता: अरिट्टापट्टी गांव अपने पारिस्थितिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है| यहाँ पक्षियों की लगभग 250 प्रजातियां पाई जाती हैं| यह भारतीय पैंगोलिन, स्लेंडर लोरिस और अजगर जैसे वन्यजीवों का भी निवास स्थल है।
    • इनमें तीन महत्वपूर्ण शिकारी पक्षियों (raptors) लैगर फाल्कन (Laggar Falcon), शाहीन फाल्कन (Shaheen Falcon) और बोनेली ईगल (Bonelli’s Eagle) की प्रजाति पाई जाती हैं।
  • ऐतिहासिक महत्व: यहाँ की कई महापाषाण संरचनाएं (megalithic structures), रॉक-कट मंदिर (Rock-Cut Temples), तमिल ब्राह्मी शिलालेख (Tamil Brahmi inscriptions) और जैन संस्तर (Jain beds) इस क्षेत्र के ऐतिहासिक महत्व को बढ़ाते हैं।

महत्व

  • विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा: किसी क्षेत्र को जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित करने से इसके समृद्ध और विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने में मदद मिलती है।
  • संरक्षण पहल का पूरक: यह कदम इस क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों के संरक्षण के विभिन्न पहलों के पूरक का कार्य करेगा और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों का निवारण किया जा सकेगा|
  • जल संभरण (Watershed): यह क्षेत्र सात पहाड़ियों या इंसेलबर्ग की एक श्रृंखला से घिरा हुआ है जो जल संभरण (Watershed) के रूप में काम करता है| इस क्षेत्र द्वारा 72 झीलों, 200 प्राकृतिक झरनों और तीन चेक डैम को जल प्राप्ति होती है।
    • 16वीं शताब्दी में पांडियन राजाओं के शासनकाल के दौरान निर्मित एनाइकोंडन टैंक (Anaikondan tank) उनमें से एक है।

जैव विविधता विरासत स्थल

  • जैव विविधता विरासत स्थल एक विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्र होते हैं, जिनकी अपनी अनूठी पारिस्थितिक विशेषताएं होती हैं| यह स्थलीय, तटीय एवं अंतर्देशीय जल क्षेत्र हो सकता है, जहाँ समृद्ध जैव विविधता पाई जाती है| इस प्रकार के स्थल पर दुर्लभ एवं संकटग्रस्त, कीस्टोन वन्य प्रजातियां पाई जाती हैं।
  • जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37(1) में यह प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार स्थानीय निकायों के परामर्श से जैव विविधता के अधिक महत्व वाले क्षेत्रों को “जैव विविधता विरासत स्थल” अधिसूचित कर सकती है।
  • किसी स्थल को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित करने का उद्देश्य संरक्षण उपायों के माध्यम से स्थानीय समुदायों के जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करना है।
  • किसी स्थान को जैव विविधता विरासत स्थल घोषित कर देने से स्थानीय समुदायों की प्रचलित प्रथाओं पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाता है।

लाचित बोरफुकन की 400वीं जयंती

23 नवंबर, 2022 को नई दिल्ली में अहोम साम्राज्य के सेनापति 'लाचित बोरफुकन' (Lachit Borphukan) की 400वीं जयंती के 3 दिवसीय समारोह की शुरुआत की गई।

  • केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने इस अवसर पर विज्ञान भवन में प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस प्रदर्शनी में अहोम साम्राज्य और लाचित बोरफुकन तथा अन्य वीरों की जीवन उपलब्धियां दिखाई गईं।

लाचित बोरफुकन कौन थे?

  • अहोम राजाओं (Ahom kings) की पहली राजधानी चराइदेव (Charaideo) में 24 नवंबर, 1622 को उनका जन्म हुआ था।
  • लाचित बोरफुकन वर्तमान के असम में स्थित अहोम साम्राज्य (Ahom dynasty) के सेनापति थे।
  • उन्होंने मुगल सेना के खिलाफ दो लड़ाइयों का नेतृत्व किया- सराईघाट का युद्ध (Battle of Saraighat) तथा अलाबोई का युद्ध (Battle of Alaboi)।
  • उन्हें सराईघाट के युद्ध (1671) में अनुकरणीय सैन्य नेतृत्व के लिए जाना जाता है।
  • लाचित बोरफुकन अपनी महान नौ-सैन्य रणनीतियों के लिए लिए जाने गए। उनके द्वारा पीछे छोड़ी गई विरासत ने भारतीय नौसेना को मजबूत करने तथा अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने के पीछे प्रेरणा के रूप में काम किया।
  • लाचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय का स्मरण करने के लिए संपूर्ण असम राज्य में प्रति वर्ष 24 नवंबर को लाचित दिवस (Lachit Diwas) मनाया जाता है।

सराईघाट का नौसैनिक युद्ध (1671 ईस्वी)

  • सराईघाट का युद्ध मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच लड़ा गया एक नौसैनिक युद्ध था।
  • इस युद्ध में लाचित बोरफुकोन के वीरतापूर्ण नेतृत्व के कारण मुगलों की निर्णायक हार हुई।
  • उन्होंने इलाके के शानदार उपयोग, गुरिल्ला रणनीति, सैन्य आसूचना तथा मुगल सेना की एकमात्र कमजोरी 'नौसेना' का फायदा उठाकर मुगल सेना को हराया।
  • सरायघाट की लड़ाई गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई थी।

अलाबोई का युद्ध (1669 ईस्वी)

  • यह युद्ध 5 अगस्त, 1669 को उत्तरी गुवाहाटी में दादरा के पास अलाबोई हिल्स (Alaboi Hills) में लड़ा गया। औरंगजेब ने वर्ष 1669 में 'राजपूत राजा राम सिंह प्रथम' (Rajput Raja Ram Singh I) के अधीन आक्रमण का आदेश दिया, जिन्होंने एक संयुक्त मुगल और राजपूत सेना का नेतृत्व किया।
  • बोरफुकन, गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेते हुए, मुग़ल-राजपूत सेना पर बार-बार हमले करते रहे, जब तक कि राम सिंह प्रथम ने अहोमों पर अपनी पूरी सेना लगाकर उन्हें हरा नहीं दिया। अहोमों को इस युद्ध में गंभीर पराजय का सामना करना पड़ा और उनके हजारों सैनिक मारे गए।

अहोम साम्राज्य (1228-1826)

  • यह असम में ब्रह्मपुत्र घाटी में एक 'उत्तर मध्यकालीन' साम्राज्य था। अहोम राजाओं की राजधानी शिवसागर ज़िले में वर्तमान जोरहाट के निकट गढ़गाँव में थी।
  • अहोम राजाओं ने 13वीं और 19वीं शताब्दी के मध्य, वर्तमान असम एवं पड़ोसी राज्यों में स्थित क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर शासन किया।
  • यह साम्राज्य लगभग 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बनाए रखने और पूर्वोत्तर भारत में मुगल विस्तार का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए जाना जाता है।
  • मुग़लों द्वारा पूरे भारत पर अपना अधिकार कर लेने के बावजूद असम में अहोम राज्य 6 शताब्दी (1228-1835 ई.) तक क़ायम रहा। इस अवधि में 39 अहोम राजा गद्दी पर बैठे।
  • इसकी स्थापना मोंग माओ (Mong Mao) के एक ताई राजकुमार 'सुकाफा' (Tai prince 'Sukaphaa') ने की थी।
  • 16वीं शताब्दी में सुहंगमुंग (Suhungmung) के तहत राज्य का अचानक विस्तार हुआ और यह राज्य चरित्र में बहु-जातीय बन गया, जिसने संपूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।

ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) तथा भारत

21 नवंबर 2022 को भारत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी [Global Partnership on Artificial Intelligence (GPAI)] नामक समूह की अध्यक्षता ग्रहण की। भारत वर्ष 2022-23 के लिए इस समूह का अध्यक्ष होगा।

  • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने जापान के टोक्यो में आयोजित समूह की तीसरी शिखर बैठक में वर्चुअल माध्यम से भाग लिया। इस दौरान भारत ने फ्रांस से प्रतीकात्मक रूप से समूह की अध्यक्षता ग्रहण की।
  • GPAI समूह मानव केन्द्रित विकास और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दायित्वपूर्ण उपयोग में सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय पहल है। भारत इस समूह का संस्थापक सदस्य है।


आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर वैश्विक भागीदारी (GPAI)

  • शुभारंभ: 15 संस्थापक सदस्यों द्वारा 15 जून 2020 को इसकी शुरुआत की गई।
  • उद्देश्य: AI के क्षेत्र में इसके सिद्धांत एवं व्यवहार के बीच दिखाई देने वाली खाई को पाटने के लिए अत्याधुनिक अनुसंधान तथा अनुप्रयुक्त गतिविधियों को बढ़ावा देना।
  • विशेषता: यह एक अंतरराष्ट्रीय बहु-हितधारक पहल है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के जिम्मेदारीपूर्ण विकास और मानवाधिकारों, समावेशन, विविधता, नवाचार और आर्थिक विकास में उपयोग का मार्गदर्शन करने पर आधारित है।
    • यह प्रतिभागी देशों के अनुभव और विविधता का उपयोग करके एआई (AI) से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों की बेहतर समझ विकसित करने का अपने किस्म का पहला प्रयास भी है।
    • यह पहल विज्ञान, उद्योग, नागरिक समाज, सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय निकायों तथा शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों को एक मंच पर लाकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक के संदर्भ में वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देती है।
  • सदस्य: GPAI की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 29 है।
    • सदस्य देश: अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, चेक गणराज्य, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इज़राइल, इटली, जापान, मैक्सिको, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, पोलैंड, कोरिया गणराज्य, सेनेगल, सर्बिया, सिंगापुर, स्लोवेनिया, स्पेन, स्वीडन, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।
  • महत्व: GPAI की भारत को प्राप्त अध्यक्षता यह प्रदर्शित करती है कि वैश्विक स्तर पर भारत विश्वसनीय प्रौद्योगिकी भागीदार के रूप में उभरा है। भारत ने लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने हेतु प्रौद्योगिकी के उपयोग की सदैव वकालत की है।

GPAI के वार्षिक सम्मेलन

  • GPAI मॉन्ट्रियल समिट 2020: GPAI के उद्घाटन संस्करण की बैठक 3- 4 दिसंबर, 2020 के मध्य आयोजित की गई थी। इसकी मेजबानी मॉन्ट्रियल, कनाडा द्वारा की गई थी।
  • GPAI पेरिस समिट 2021: इस समूह की दूसरी वार्षिक बैठक 11-12 नवंबर, 2021 के मध्य फ़्रांस के पेरिस में आयोजित की गई थी।
  • GPAI टोक्यो सम्मेलन 2022: तीसरी वार्षिक बैठक जापान के टोक्यो में 20-21 नवंबर, 2022 के मध्य आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता फ्रांस ने की तथा इसी बैठक में भारत को अध्यक्षता सौंपी गई।

AI पर सरकार की महत्वपूर्ण पहलें

  • राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता कार्यनीति: यह कार्यनीति एक रूपरेखा पर आधारित है, जो भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं और आकांक्षाओं के अनुकूल है। इसका उद्देश्य, एआई विकास का लाभ उठाने के लिए पूरी क्षमता हासिल करना है।
    • यह कार्यनीति आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर ऑल से संबन्धित है जिसमें पांच क्षेत्रों को महत्वपूर्ण माना गया है- हेल्थकेयर, कृषि, शिक्षा, स्मार्ट सिटी इन्फ्रास्ट्रक्चर और शहरी यातायात।
  • राष्ट्रीय एआई पोर्टल: सरकार ने ‘राष्ट्रीय एआई पोर्टल’ (National AI Portal) लॉन्च किया है, जो एक ही स्थान पर सभी हितधारकों के लिए देश में कृत्रिम बौद्धिमत्ता (एआई) आधारित पहलों की रिपोजिटरी है।
  • फ्यूचर स्किल्स प्राइम (FutureSkills Prime): इस पहल का उद्देश्य एआई सहित उभरती और भविष्य की प्रौद्योगिकियों में रि-स्किलिंग/अप-स्किलिंग इकोसिस्टम तैयार करना तथा भारत को एक डिजिटल प्रतिभा वाले देश (Digital Talent Nation) के रूप में उभारना है।
    • यह नैसकॉम (NASSCOM) तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है
  • उत्कृष्टता केंद्र: अनुसंधान प्रौद्योगिकी के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा देने के लिए, सरकार ने कृत्रिम बौद्धिमत्ता सहित विभिन्न उभरती हुई प्रौद्योगिकियों पर कई ‘उत्कृष्टता केंद्र’ (Centres fo Excellence) बनाए हैं।
  • विश्वेश्वरैया पीएचडी योजना: सरकार ने देश में एआई सहित इलेक्ट्रॉनिकी प्रणाली डिजाइन और विनिर्माण के क्षेत्र में पीएचडी की संख्या बढ़ाने के उद्देश्य से ‘विश्वेश्वरैया पीएचडी योजना’ प्रारंभ की है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भारत के लिए संभावनाएं

  • सरकारी अनुमानों के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से वर्ष 2025 तक भारत की GDP में 450 से 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर वृद्धि होने की संभावना है। यह वित्त वर्ष 2024-25 तक सरकार द्वारा निर्धारित 5 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी लक्ष्य का 10% है।
  • नीति आयोग (NITI Aayog) के अनुमानों के अनुसार- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को उचित ढंग से अपनाने से वर्ष 2035 तक भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल मूल्य वर्धन (Gross Value Added-GVA) में 15 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रौद्योगिकी तकनीकी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच तथा उनकी सामर्थ्य में वृद्धि करने में सहायक होगी।
  • यह तकनीक कृषि क्षेत्र में उत्पादन में वृद्धि करने, कृषि अपव्यय को रोकने तथा किसानों की आय बढ़ाने में सहायक होगी।
  • इसके माध्यम से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता एवं पहुँच में सुधार किया जा सकता है, बल्कि इससे वृद्धिशील शहरी आबादी हेतु कुशल बुनियादी ढाँचे के निर्माण में भी सहायता मिलेगी।
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