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सामयिक खबरें :
घरेलू प्रवासी मतदाताओं हेतु रिमोट वोटिंग प्रणाली
29 दिसंबर, 2022 को चुनाव आयोग ने यह घोषणा की कि उसने घरेलू प्रवासी मतदाताओं के लिए 'रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन' (RVM) का एक प्रोटोटाइप विकसित किया है, ताकि इन प्रवासी मतदाताओं को मतदान करने के लिए अपने गृह राज्यों की यात्रा न करनी पड़े।
- आयोग ने सभी मान्यताप्राप्त 8 राष्ट्रीय और 57 राज्यीय दलों को इस मल्टी-कंस्टीट्यूएंसी रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) की कार्यप्रणाली का प्रदर्शन करने के लिए 16 जनवरी, 2023 को आमंत्रित किया है।
- निर्वाचन आयोग के अनुसार यह कदम देश में मतदान प्रतिशत (Voter Turnout) बढ़ाने तथा भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने में सक्षम होगा।
रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) क्या है?
- मल्टी-कंस्टीट्यूएंसी रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) एक दूरस्थ स्थित (रिमोट) पोलिंग बूथ से ही 72 तक निर्वाचन क्षेत्रों का मतदान करा सकती है।
- यह विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में सूचीबद्ध मतदाताओं को एक ही मशीन से मतदान के अधिकार का प्रयोग करने में सक्षम करेगी।
- रिमोट ईवीएम एक स्टैंडएलोन डिवाइस होगी, जिसे संचालित करने के लिए कनेक्टिविटी की आवश्यकता नहीं होगी।
- आरवीएम को भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) की सहायता से विकसित किया गया है।
- यह वर्तमान में उपयोग किए जाने वाले ईवीएम सिस्टम पर आधारित है।
प्रवासियों के मताधिकार से वंचित होने का मुद्दा
- यद्यपि पंजीकृत मतदाताओं के मतदान में हिस्सा न लेने के कई कारण हैं, परन्तु भारतीय सन्दर्भ में इसका सबसे प्रमुख कारण व्यापक पैमाने पर होने वाला घरेलू प्रवासन (Domestic Migration) है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 45.36 करोड़ प्रवासी (अंतर्राज्यीय और अंतरराज्यीय दोनों) हैं, जो देश की आबादी का लगभग 37 प्रतिशत है।
- अपने निर्वाचन क्षेत्र से दूर रहने वाला प्रवासी समुदाय, मतदान का इच्छुक होने के बावजूद विभिन्न चुनौतियों के चलते अपने निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने के लिए यात्रा करने में असमर्थ होता है।
- इसका अर्थ यह है कि देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा काम की अनिवार्यता या यात्रा के लिए संसाधनों की कमी के कारण अपने मताधिकार से वंचित रहता है। यह सीधे तौर पर चुनाव आयोग के "कोई मतदाता पीछे न छूटे" (No voter left behind) के लक्ष्य के खिलाफ है।
RVM के जरिये मतदान की प्रक्रिया
- मतदाता की पहचान सत्यापित करने के बाद, निर्वाचन क्षेत्र के विवरण तथा उम्मीदवारों को दर्शाने वाले सार्वजनिक डिस्प्ले (Public Display) के माध्यम से उनके निर्वाचन क्षेत्र के कार्ड को पढ़ा जाएगा।
- इसे RVM के रिमोट बैलेट यूनिट (RBU) में लगे बैलेट यूनिट ओवरले डिस्प्ले (BUOD) पर निजी रूप से भी प्रदर्शित किया जाएगा।
- इसके बाद मतदाता वोट देगा तथा प्रत्येक वोट को निर्वाचन क्षेत्रवार वोटिंग मशीन की कंट्रोल यूनिट में स्टोर किया जाएगा।
- सम्भावना है कि वर्तमान में ईवीएम के साथ प्रयुक्त होने वाली वीवीपीएटी प्रणाली, नई तकनीक के साथ भी इसी तरह कार्य करेगी।
इस नवीन प्रणाली को अपनाने तथा इसे लागू करने में चुनौतियां
कानूनी चुनौतियां
- मौजूदा चुनावी प्रणाली में RVM को पूरी तरह से अपनाने के लिए कुछ प्रमुख कानूनों/नियमों में संशोधन करना होगा। ये निम्नलिखित हैं:
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 एवं 1951
- निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961
- निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण नियम, 1960
- इसके अतिरिक्त प्रवासी मतदाता को परिभाषित करना भी चुनौती है; यह भी देखना होगा कि ये मतदाता मतदान के दिन अनुपस्थिति हैं या स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गए हैं।
प्रशासनिक चुनौतियां
- रिमोट वोटरों की गणना करना;
- रिमोट लोकेशनों पर मतदान की गोपनीयता सुनिश्चित करना;
- रिमोट वोटिंग बूथों पर पोलिंग एजेंटों की व्यवस्था करना;
- प्रतिरूपण से बचने के लिए मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित करना;
- रिमोट लोकेशनों (अन्य राज्य) में आदर्श आचार संहिता लागू करना।
प्रौद्योगिकीय चुनौतियां
- रिमोट वोटिंग की पद्धति का निर्धारण;
- मतदाताओं का परिवर्तित मतदान पद्धतियों तथा RVM की प्रौद्योगिकियों से परिचित होना;
- रिमोट बूथों पर डाले गए मतों की गणना और उसे अन्य राज्यों में स्थित रिटर्निंग अधिकारी को प्रेषित करना।
यूरोज़ोन तथा शेंगेन क्षेत्र में शामिल हुआ क्रोएशिया
1 जनवरी, 2023 से क्रोएशिया यूरोपीय मुद्रा-यूरो (इसे € संकेत द्वारा निरूपित किया जाता है) को अपनाकर यूरोजोन के देशों में शामिल हो गया; साथ ही वह यूरोप के सीमा-मुक्त ‘शेंगेन क्षेत्र’ (Europe’s border-free SCHENGEN ZONE) में भी शामिल हुआ।
- क्रोएशिया ने वर्ष 2013 में यूरोपीय संघ (European Union) की सदस्यता ग्रहण की थी। यह शेंगेन क्षेत्र में शामिल होने वाला 27वां और यूरो मुद्रा अपनाने वाला 20वां देश बन गया है। अब तक क्रोएशिया की मुद्रा को कुना (Kuna) के नाम से जाना जाता था।
- ध्यान रहे कि, वर्ष 2015 में लिथुआनिया के शामिल होने के पश्चात लगभग आठ वर्षों में यह यूरोज़ोन का पहला विस्तार है।
यूरो क्षेत्र क्या है?
- परिचय: यूरो क्षेत्र अथवा 'यूरोज़ोन' यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के एक ऐसे समूह को कहा जाता है जिन्होंने अपनी राष्ट्रीय मुद्राओं को एकल मुद्रा-यूरो से परिवर्तित कर दिया है।
- योग्यता शर्तें: यूरोपीय संघ का वही सदस्य देश यूरो क्षेत्र का सदस्य बनने की योग्यता रखता है जो EU द्वारा निर्धारित आर्थिक मानदंडों एवं कानूनी शर्तों को पूरा करता है। इन मानदंडों में संतुलित मुद्रास्फीति तथा स्थिर विनिमय दर जैसी अनेक विशेषताएं शामिल हैं।
- क्रोएशिया को लाभ: यूरो क्षेत्र का सदस्य बनने से क्रोएशिया को रूस-यूक्रेन युद्ध की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में बढ़ती मुद्रास्फीति के मध्य अपनी अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करने में मदद मिलेगी।
शेंगेन क्षेत्र क्या है?
- परिचय: शेंगेन क्षेत्र (Schengen Area) को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में जाना जाता है जहां यूरोपीय देशों ने नागरिकों की मुक्त और अप्रतिबंधित आवाजाही (Free and unrestricted movement) के लिए अपनी आंतरिक सीमाओं (Internal borders) को समाप्त कर दिया है।
- वर्तमान समय में लगभग 400 मिलियन से अधिक यूरोपीय संघ के नागरिकों के साथ-साथ दूसरे देशों के पर्यटक तथा गैर-सदस्य राष्ट्रों के ऐसे नागरिक जो यूरोपीय संघ में निवास करते हैं, को यूरोपीय संघ के देशों की यात्रा करने, व्यवसाय अथवा रोजगार करने तथा छात्रों के आदान-प्रदान की मुक्त आवाजाही की अनुमति प्राप्त है।
- सदस्य: शेंगेन क्षेत्र के अंतर्गत कुल 27 सदस्य देश हैं; इनमें 23 यूरोपीय संघ के देश तथा 4 अन्य देश [नॉर्वे, स्विट्जरलैंड, आइसलैंड और लिचेटेंस्टीन (Liechtenstein)] शामिल हैं; शेंगेन क्षेत्र के ये 4 देश यूरोपीय संघ में शामिल नहीं हैं, परन्तु इन्होंने 1985 के शेंगेन समझौते (Schengen Agreement, 1985) पर हस्ताक्षर किए हैं।
- क्रोएशिया को लाभ: शेंगेन क्षेत्र में शामिल होने के साथ अब क्रोएशियाई नागरिकों को अन्य शेंगेन सदस्य देशों में स्वतंत्र आवाजाही की अनुमति प्राप्त होगी तथा उन्हें यात्रा के समय अपना पासपोर्ट दिखाने की आवश्यकता नहीं होगी।
गोंड जनजातीय समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा
24 दिसंबर, 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 'संविधान (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) आदेश (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 2022' हस्ताक्षरित किया गया।
- विधेयक के रूप में इसे 1 अप्रैल, 2022 को लोक सभा द्वारा तथा 14 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा पारित किया गया था।
मुख्य बिंदु
- यह विधेयक उत्तर प्रदेश के 4 जिलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने का प्रयास करता है।
- विधेयक का उद्देश्य उत्तर प्रदेश के इन जिलों में गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति की सूची (SC list) से अनुसूचित जनजाति की सूची (ST list) में स्थानांतरित करना है।
- उत्तर प्रदेश के ये 4 जिले हैं- संत कबीर नगर, संत रविदास नगर, कुशीनगर एवं चंदौली।
- यह विधेयक निम्नलिखित आदेशों में संशोधन करता है:
- संविधान (अनुसूचित जनजाति) (उत्तर प्रदेश) आदेश, 1967
- संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950।
उत्तर प्रदेश की गोंड जनजाति
- गोंड एक द्रविड़ जातीय-भाषाई समूह हैं। वे भारत के सबसे बड़े जनजातीय समूहों में से एक हैं।
- गोंड जनजाति मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, बिहार और ओडिशा राज्यों में पाई जाती हैं।
- 2001 की जनगणना के अनुसार गोंडों की जनसंख्या लगभग 11 मिलियन (1.1 करोड़) थी, जिसमें उत्तर प्रदेश में गोंडों की आबादी करीब पांच लाख थी।
अनुसूचित जनजाति की सूची में संशोधन करने की प्रक्रिया
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 (1) के तहत राष्ट्रपति के पास किसी जाति, नस्ल, जनजाति अथवा उसके समूह को चिन्हित करने की शक्ति है।
- अनुच्छेद 342 (1) के अनुसार राष्ट्रपति, किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के राज्यपाल से सलाह के बाद एक अधिसूचना द्वारा, आदिवासी जाति या आदिवासी समुदायों या आदिवासी जातियों या आदिवासी समुदायों के भागों या समूहों को निर्दिष्ट कर सकते हैं, जो उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझे जाएंगे।
- अनुच्छेद 342 (2) के अनुसार संसद कानून के द्वारा धारा (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी भी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय के किसी भाग या समूह को शामिल कर या उसमें से निकाल सकती है।
- इस प्रकार, किसी विशेष राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी समुदाय के नाम को शामिल या हटाना संबंधित राज्य सरकारों की सलाह के बाद, राष्ट्रपति के अधिसूचित आदेश द्वारा किया जाता है। ये आदेश तदनुपरांत केवल संसद की कार्रवाई द्वारा ही संशोधित किए जा सकते हैं।
नेपाल के नए प्रधानमंत्री तथा भारत-नेपाल संबंध
25 दिसंबर, 2022 को पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' ने नेपाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की।
- ध्यान रहे कि वर्ष 2015-2016 तथा वर्ष 2018-2021 तक ओली के कार्यकाल के दौरान भारत-नेपाल संबंधों में कड़वाहट देखने को मिली थी। वर्ष 2021 में देउबा के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् भारत-नेपाल संबंधों में सुधार हुआ।
भारत-नेपाल : सहयोग के क्षेत्र
- व्यापार एवं अर्थव्यवस्था: भारत, नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार देश है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार लगभग 07 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर गया।
- नेपाल में कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) स्टॉक में भारत की भागीदारी 33% से अधिक हिस्सा है।
- पारगमन सुविधाएं: भू-आबद्ध देश होने के कारण भारत नेपाल को शेष विश्व के साथ व्यापार करने के लिए पारगमन सुविधाएं प्रदान करता है।
- रक्षा सहयोग: भारत रक्षा उपकरणों की आपूर्ति तथा प्रशिक्षण प्रदान करके नेपाली सेना के आधुनिकीकरण में सहायता करता है।
- दोनों देशों के मध्य वर्ष 2011 से प्रत्येक वर्ष 'सूर्य किरण' नामक संयुक्त युद्धाभ्यास किया जाता है।
- बहुपक्षीय साझेदारी: दोनों देश बीबीआईएन (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल-BBIN), बिम्सटेक (बहु क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल-BIMSTEC), गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा सार्क (क्षेत्रीय सहयोग के लिये दक्षिण एशियाई संघ-SAARC) जैसे कई बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं।
चुनौतियां
- सीमा संबंधी विवाद: वर्ष 2020 में नेपाल ने नवीन मानचित्र जारी करते हुए कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख ऐसे क्षेत्रों को अपनी सीमा में प्रदर्शन किया था।
- इसी प्रकार, कालापानी सीमा मुद्दा भी दोनों देशों के मध्य तनाव का विषय रहा है।
- चीन का हस्तक्षेप: चीन नेपाल में व्यापक बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का विकास कर रहा है। वह नेपाल को अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) परियोजना का महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है।
- आंतरिक सुरक्षा: भारत के अन्य पड़ोसी देशों के विपरीत नेपाल के साथ खुली सीमा रेखा (Open Boundary) है, जहां से आतंकवादियों, अवैध तस्करों तथा विद्रोही समूहों के प्रवेश का खतरा सदैव बना रहता है।
मैरीटाइम एंटी पायरेसी बिल, 2022
21 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा की मंजूरी के साथ ‘समुद्री जल दस्युता रोधी विधेयक, 2022’ (Maritime Anti Piracy Bill 2022) को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी प्राप्त हो गई।
- यह विधेयक 19 दिसंबर, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित किये जाने के पश्चात यह विधेयक अधिनियम का रूप ले लेगा।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 से 2011 के बीच समुद्री डकैती के 27 मामले देखे गए, जिनमें 288 भारतीय नागरिक प्रभावित हुए। वहीं 2014 से 2022 के बीच ऐसे 19 मामले प्रकाश में आए और इनमें 155 भारतीय चालक दल के सदस्य प्रभावित हुए।
मुख्य विशेषताएं
- परिभाषा: किसी निजी जहाज या विमान के चालक दल अथवा यात्रियों द्वारा निजी उद्देश्यों के लिए किसी अन्य जहाज, विमान या व्यक्ति के खिलाफ हिंसा, हिरासत या विनाश का कोई भी गैरकानूनी कार्य पायरेसी कहा जा सकता है।
- मैरीटाइम पायरेसी के विरुद्ध कार्रवाई: यह विधेयक भारतीय अधिकारियों को सुदूर समुद्र (high seas) में समुद्री डकैती के विरुद्ध कार्रवाई करने में सक्षम बनाता है।
- प्रभाविता: यह भारत के समुद्र तट से 200 समुद्री मील के अंतर्गत आने वाले ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) के पार भी प्रभावी होता है।
- UNCLOS के प्रावधानों को लागू करना: इस विधेयक के माध्यम से ‘समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के प्रावधानों को देश के कानून में शामिल किया जाएगा।
- सख्त दंडात्मक प्रावधान: यदि समुद्री डकैती के दौरान किसी की मृत्यु होती है या यह किसी की मौत का कारण बनती है, तो ऐसे कृत्य के लिए दोषी को आजीवन कारावास या मृत्युदंड की सजा दी जाएगी।
- समुद्री डकैती के कृत्यों में भाग लेने, इसे आयोजित करने, इसमें सहायता या समर्थन करने या दूसरों को इसमें भाग लेने के लिए निर्देशित करने के लिए 14 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
विधेयक का महत्व
- भारतीय दंड संहिता या आपराधिक प्रक्रिया संहिता में समुद्री डकैती के संबंध में किसी विशिष्ट कानून या कानूनी प्रावधान का अभाव है, ऐसे में यह विधेयक समुद्री डकैती से निपटने के लिए एक प्रभावी कानूनी उपाय प्रदान करेगा, जिससे भारत की समुद्री सुरक्षा मजबूत होगी।
- समुद्री डकैती रोधी इस क़ानून से अन्य साझेदार देशों के बीच भारत की वैश्विक साख बढ़ेगी तथा दुनिया के समुद्री मार्ग समुद्री डकैती से मुक्त हो सकेंगे।
- यह विधेयक भारत को UNCLOS के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने में भी सक्षम करेगा, जिस पर भारत ने 1982 में हस्ताक्षर किए थे और 1995 में इसकी पुष्टि की थी।
- 'संपर्क के समुद्री मार्गों' (sea lanes of communication) की सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत का 90 प्रतिशत से अधिक व्यापार समुद्री मार्गों से होता है और देश की हाइड्रोकार्बन आवश्यकताओं का 80 प्रतिशत से अधिक समुद्र से ही प्राप्त होता है। ऐसे में यह विधेयक समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करके भारत की सुरक्षा और आर्थिक भलाई दृष्टि से महत्वपूर्ण साबित होगा।
लॉयन @ 47: विजन फॉर अमृतकाल
22 दिसंबर, 2022 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 'लॉयन @ 47: विजन फॉर अमृतकाल' (Lion @ 47: Vision for Amrutkal) शीर्षक से एक प्रोजेक्ट लायन दस्तावेज़ (Project Lion document) लॉन्च किया गया।
महत्वपूर्ण बिंदु
- गुजरात का बर्दा वन्यजीव अभयारण्य: इसकी पहचान एशियाई शेरों (Asiatic lions) के संभावित दूसरे घर (Potential second home) के रूप में की गई है।
- यह पोरबंदर के पास स्थित है जो गिर राष्ट्रीय उद्यान (Gir National Park) से लगभग100 किलोमीटर दूर है।
- शेर के संदर्भ में: पृथ्वी पर जाने वाली सबसे बड़ी पशु प्रजातियों में से एक 'शेर' (Lion) को वैज्ञानिक रूप से 'पैंथेरा लियो' (Panthera Leo) नाम से जाना जाता है।
- एशियाई शेरों की IUCN स्थिति: लुप्तप्राय (Endangered)
प्रोजेक्ट लॉयन (Project Lion)
- परिचय: इस परियोजना के अंतर्गत गुजरात में संरक्षण एवं पर्यावरण-विकास को एकीकृत (Integrating conservation and eco-development) करके एशियाई शेरों के पारिस्थितिकी-आधारित संरक्षण (Ecology-based conservation) की परिकल्पना की गई है।
- इस परियोजना को गुजरात में गिर राष्ट्रीय उद्यान में लागू किया जा रहा है, जो वर्तमान समय में भारत में एशियाई शेरों का एकमात्र निवास स्थान है।
- उद्देश्य: इसके उद्देश्यों में शामिल हैं-
- शेरों की बढ़ती आबादी के प्रबंधन हेतु उनके आवासों को सुरक्षित और पुनर्स्थापित करना।
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी के साथ उनकी आजीविका एवं उत्पादन को बढ़ावा देना।
- शेर एवं चीते जैसी बिल्ली की विशाल प्रजातियों (Big Cats) में होने वाली बीमारियों के उपचार तथा रोगों के निदान के वैश्विक केंद्र के रूप में पहचान स्थापित करना।
- प्रोजेक्ट लायन पहल (Project lion initiative) के माध्यम से समावेशी जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देना।
- वितरण: एशियाई शेरों का वितरण वर्तमान समय में गुजरात के 9 जनपदों- जूनागढ़, गिर सोमनाथ, अमरेली, भावनगर, बोटाड, पोरबंदर, जामनगर, राजकोट एवं सुरेंद्रनगर के लगभग 30,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इस क्षेत्र को सामूहिक रूप से एशियाटिक लायन लैंडस्केप (Asiatic Lion Landscape) कहा जाता है।
ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022
19 दिसंबर, 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 [Energy Conservation (Amendment) Act, 2022] हस्ताक्षरित किया गया। विधेयक के रूप में इसे 12 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा तथा 8 अगस्त, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था।
- संदर्भ: यह संशोधन अधिनियम, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम-2001 में संशोधन करता है, जिसे अंतिम बार वर्ष 2010 में संशोधित किया गया था।
- उद्देश्य: भारत को जलवायु परिवर्तन पर अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता करना।
संशोधन के प्रमुख प्रावधान
- गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों के उपयोग की बाध्यता: सरकार किसी निर्दिष्ट उपभोक्ता (विशेषकर कंपनी) से ऊर्जा खपत का एक न्यूनतम हिस्सा गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करने के संदर्भ में दिशानिर्देश जारी कर सकती है।
- जुर्माना: गैर-जीवाश्म स्रोतों से ऊर्जा उपभोग की बाध्यता पूरी न करने की स्थिति में 10 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।
- कार्बन ट्रेडिंग: यह अधिनियम केंद्र सरकार को कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग योजना (Carbon credit trading scheme) को लागू करने का अधिकार प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार अथवा उसके द्वारा अधिकृत एजेंसी पंजीकृत एवं अनुपालन संस्थाओं को कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र (Carbon credit certificate) जारी कर सकती है। अधिनियम में प्रावधान है कि संस्थाओं के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति भी स्वेच्छा से कार्बन क्रेडिट प्रमाण-पत्र खरीद सकता है।
- भवनों के लिये ऊर्जा संरक्षण संहिता: यह अधिनियम 'ऊर्जा संरक्षण एवं सतत भवन संहिता' (Energy Conservation and Sustainable Building Code) को निर्दिष्ट करने तथा इसे आवासीय भवनों तक विस्तारित करने का अधिकार केंद्र सरकार को प्रदान करता है।
- वाहनों एवं जलयानों के लिये मानदंड: ईंधन की खपत तथा ऊर्जा उपभोग संबंधी मानदंडों को वाहनों एवं जलयानों (Vehicles and Vessels) तक विस्तारित किया गया है।
- अधिनियम के अनुसार ईंधन खपत के नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन निर्माताओं को बिक्री किए गए प्रत्येक वाहन पर 50,000 रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) की शासी परिषद का पुनर्गठन: अधिनियम के अंतर्गत BEE की शासी परिषद का पुनर्गठन करके इसके सदस्यों की संख्या में (20 से 26 के स्थान पर 31 से 37 के मध्य) वृद्धि करने का प्रावधान किया गया है।
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो को ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत 1 मार्च, 2002 को स्थापित किया गया था।
सामाजिक प्रगति सूचकांक
20 दिसंबर, 2022 को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय द्वारा ‘सामाजिक प्रगति सूचकांक : भारत के राज्य एवं जिले’ (Social Progress Index : States and Districts of India) नामक रिपोर्ट जारी की गई।
- सूचकांक का विकास: यूएस-आधारित गैर-लाभकारी संस्था 'सोशल प्रोग्रेस इम्पेरेटिव' (Social Progress Imperative) तथा 'इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस' (Institute for Competitiveness) द्वारा विकसित।
सूचकांक के बारे में
- सामाजिक प्रगति सूचकांक, सामाजिक प्रगति के 3 महत्वपूर्ण आयामों- बुनियादी मानव आवश्यकताओं (Basic Human Needs), कल्याण के आधार (Foundations of Wellbeing) तथा अवसर (Opportunity) में 12 घटकों के आधार पर राज्यों और जिलों का आकलन करता है।
- सूचकांक एक व्यापक ढांचे का उपयोग करता है जिसमें राज्य स्तर पर 89 संकेतक और जिला स्तर पर 49 संकेतक शामिल हैं।
- एसपीआई स्कोर के आधार पर, राज्यों और जिलों को सामाजिक प्रगति के 6 स्तरों के तहत रैंक प्रदान की गई है। ये 6 स्तर हैं-
- टीयर 1: बहुत उच्च सामाजिक प्रगति;
- टीयर 2: उच्च सामाजिक प्रगति;
- टीयर 3: ऊपरी मध्य सामाजिक प्रगति;
- टीयर 4: निम्न मध्य सामाजिक प्रगति,
- टीयर 5: कम सामाजिक प्रगति और
- टीयर 6: बहुत कम सामाजिक प्रगति।
प्रमुख निष्कर्ष
- पुडुचेरी का देश में उच्चतम एसपीआई स्कोर 65.99 है, जिसका श्रेय व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद, आश्रय, और जल और स्वच्छता जैसे घटकों में इसके उल्लेखनीय प्रदर्शन को दिया जाता है। लक्षद्वीप और गोवा क्रमशः 65.89 और 65.53 के स्कोर के साथ दुसरे एवं तीसरे स्थान पर हैं। झारखंड और बिहार ने सबसे कम (क्रमशः 43.95 और 44.47) स्कोर हासिल किया है।
- पिछले एक दशक में भारत ने उल्लेखनीय आर्थिक प्रगति की है। वर्ष 2011-12 से 2020-21 तक प्रति व्यक्ति जीडीपी में 39.7 से अधिक की वृद्धि हुई है।
- भारत, वर्तमान में सामाजिक प्रगति सूचकांक में 60.19/100 के स्कोर के साथ विश्व में 110वें स्थान पर है।
सतही जल एवं महासागर स्थलाकृति (SWOT) उपग्रह
16 दिसंबर, 2022 को स्पेसएक्स फाल्कन 9 रॉकेट (SpaceX Falcon 9 rocket) की सहायता से सतही जल एवं महासागर स्थलाकृति (Surface Water and Ocean Topography-SWOT) अंतरिक्ष उपग्रह लांच किया गया।
SWOT उपग्रह के संदर्भ में
- निर्माण एवं प्रबंधन: SWOT उपग्रह को कनाडा की अंतरिक्ष एजेंसी (Canadian Space Agency-CSA) एवं यूनाइटेड किंगडम की अंतरिक्ष एजेंसी (united kingdom space agency-UKSA) के योगदान से नासा (NASA) तथा फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी- नेशनल सेंटर फॉर स्पेस स्टडीज (National Center for Space Studies) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित और प्रबंधित किया गया है।
- उद्देश्य: यह उपग्रह पृथ्वी के सतही जल का सर्वेक्षण (Surface water survey) करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह अपनी तरह का पहला वैश्विक सर्वेक्षण होगा जिसमें SWOT उपग्रह द्वारा यह पता लगाने का प्रयास किया जाएगा कि पृथ्वी पर स्थित जल निकायों में परिवर्तन किस प्रकार होता है।
- कार्य प्रणाली: SWOT द्वारा महासागर संचालन मॉडल (Ocean circulation models) और मौसम एवं जलवायु भविष्यवाणियों (Weather and climate predictions) में सुधार करने में मदद के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर स्वच्छ जल प्रबंधन (Fresh water management) में सहायता करने के लिए प्रत्येक 21 दिनों में पृथ्वी के लगभग 90% भू-भाग का सर्वेक्षण किया जाएगा। सर्वेक्षण के दौरान यह उपग्रह मुख्य रूप से झीलों, नदियों, जलाशयों और समुद्री जल निकायों को आच्छादित करेगा।
- विस्तार क्षेत्र: ग्लोब पर इसका आच्छादन मुख्य रूप से 78 डिग्री उत्तरी तथा 78 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के मध्य होगा। इसके द्वारा प्रति दिन लगभग एक टेराबाइट असंसाधित डेटा (Raw Data) पृथ्वी पर प्रेषित किया जाएगा।
- अन्य विशेषता: इस अंतरिक्ष यान का वैज्ञानिक केंद्र Ka-बैंड रडार इंटरफेयरोमीटर (KaRIn) नामक एक अभिनव उपकरण है। इस उपकरण के माध्यम से उपग्रह की तकनीकी प्रगति को चिन्हित किया जाता है। KaRIn रडार अंतरिक्ष यान के दोनों ओर लगे एंटीना के माध्यम से जल सतह से परावर्तित किरणों को अवशोषित करके उसे असंसाधित डेटा के रूप में परिवर्तित किया जाएगा, जिसे अंततः पृथ्वी पर स्थित शोध संस्थान एकत्र करेंगे।
महत्व
- ताजे जल स्रोतों की जानकारी: SWOT उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिक पृथ्वी पर विस्तृत ताजे जल स्रोतों की वास्तविक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। इस मिशन के तहत कम से कम 15 एकड़ में विस्तृत पृथ्वी की लगभग 90% झीलों तथा कम से कम 330 फीट चौड़ी नदियों की जानकारी प्राप्त होगी।
- एकीकृत शोध कार्य: वर्तमान समय में विभिन्न देशों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर इस प्रकार की झीलों एवं नदियों के प्रवाह एवं उनके जल-स्तर की जानकारी एकत्र की जाती है। वर्तमान मिशन, वैश्विक रूप से एकीकृत शोध कार्य को बढ़ावा देगा जिससे स्वच्छ जल के संरक्षण में मदद मिलेगी।
- समुद्री जल स्तर की वास्तविक माप: SWOT उपग्रह समुद्री जल स्तर तथा तटवर्ती क्षेत्रों में समुद्री जल के विस्तार के संदर्भ में विस्तृत आंकड़े प्रदान करेगा। इससे विभिन्न देशों को ज्वार लाइन का निर्धारण करने तथा तटवर्ती योजनाओं को लागू करने में सहायता मिलेगी। यह परियोजना तटीय पारिस्थितिक तंत्र तथा समुद्री अर्थव्यवस्था पर निर्भर समुदायों को भी लाभान्वित करेगी।
- सतही जल पर नवीन शोध कार्यों को बढ़ावा: इस परियोजना से शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और संसाधन प्रबंधकों को बाढ़ एवं सूखे के बेहतर आकलन तथा समस्याओं के निवारण हेतु योजनाओं के निर्माण में मदद मिलेगी।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन: इस परियोजना से जलवायु परिवर्तन के समुद्री एवं सतही जल संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों का व्यापक आकलन किया जा सकेगा तथा संभावित चुनौतियों से बचने के लिए पहले से ही तैयारी करने में सहायता मिलेगी।
आईएनएस मोरमुगाओ भारतीय नौसेना में शामिल
18 दिसंबर, 2022 को परियोजना 15बी (Project 15B) वर्ग के दूसरे युद्धपोत आईएनएस मोरमुगाओ (INS Mormugao) को मुंबई में नौसेना डॉकयार्ड में कमीशन किया गया। इस श्रेणी के पहले जहाज आईएनएस विशाखापट्टनम (INS Visakhapatnam) को नवंबर 2021 में नौसेना में शामिल किया गया था।
आईएनएस मोरमुगाओ के संदर्भ में
- आरंभ एवं समुद्री परीक्षण: वर्ष 2016 में इस युद्धपोत का जलावतरण तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर द्वारा किया गया था जबकि इसका समुद्री परीक्षण गोवा मुक्ति के 60 वर्ष पूरे होने के अवसर पर वर्ष 2021 में शुरू किया गया था।
- विशेषता: यह एक स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक युद्धपोत (Stealth guided-missile destroyer) है जो 163 मीटर लंबा और 17 मीटर चौड़ा है।
- यह अत्याधुनिक हथियारों तथा ‘सतह से सतह’ एवं ‘सतह से हवा’ में मार करने वाली मिसाइलों से सुसज्जित है।
- नामकरण: पश्चिमी तट पर अवस्थित ऐतिहासिक बंदरगाह शहर 'गोवा' के मोरमुगाओ पतन के नाम पर इस युद्धपोत का नाम 'मोरमुगाओ' रखा गया है।
- निर्माण: इस युद्धपोत को भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो (Warship Design Bureau of the Indian Navy) द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन किया गया है, जबकि इसके निर्माण का कार्य मुंबई के मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (Mazagon Dock Shipbuilders Limited-MDSL) द्वारा किया गया है।
महत्त्व
- राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण: आईएनएस मोरमुगाओ सबसे शक्तिशाली स्वदेश निर्मित युद्धपोतों में से एक है, जो देश की समुद्री क्षमताओं को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने और राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित करने में सहायक होगा।
- उन्नत तकनीक से सुसज्जित: यह विश्व के सबसे तकनीकी रूप से उन्नत मिसाइल वाहकों में से एक है जो परमाणु, जैविक और रासायनिक युद्ध स्थितियों में लड़ने के लिये सुसज्जित है।
- स्वदेशी तकनीक द्वारा निर्मित: यह युद्धपोत 75% से अधिक स्वदेशी सामग्री से निर्मित है, जो डिजाइन और विकास में भारत की उत्कृष्टता और बढ़ती स्वदेशी रक्षा उत्पादन क्षमताओं का एक बेहतरीन उदाहरण है।
प्रोजेक्ट 15बी
- आरंभ: परियोजना 15बी (Project 15B) के तहत चार युद्धपोतों के निर्माण के लिये वर्ष 2011 में अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए थे। इन सभी युद्धपोतों को वर्ष 2024 तक भारतीय नौसेना में शामिल किये जाने का लक्ष्य रखा गया है।
- विशेषता: इन्हें विशाखापट्टनम श्रेणी (Visakhapatnam Series) के जहाज़ों के रूप में जाना जाता है। इसके तहत देश में स्वदेशी तकनीक की मदद से विशाखापट्टनम, मोरमुगाओ, इंफाल और सूरत (Visakhapatnam, Mormugao, Imphal and Surat) नामक चार युद्धपोतों का निर्माण किया जाना है।
- प्रगति: इसके अंतर्गत निर्मित आईएनएस विशाखापट्टनम का वर्ष 2015 में, आईएनएस मोरमुगाओ का वर्ष 2016 में, आईएनएस इंफाल का वर्ष 2019 में तथा आईएनएस सूरत का वर्ष 2022 में जलावतरण किया गया था।
प्रोजेक्ट 15 एवं 15ए
- आरंभ: भारत का स्वदेशी विध्वंसक निर्माण कार्यक्रम (Indigenous destroyer building program) 1990 के दशक के अंत में दिल्ली श्रेणी (परियोजना 15) के तीन युद्धपोतों के साथ शुरू हुआ। इसके तहत 'आईएनएस दिल्ली (INS Delhi), आईएनएस मैसूर (INS Mysore) और आईएनएस मुंबई (INS Mumbai)' नामक युद्धपोतों का निर्माण किया गया।
- अगला चरण: इसके पश्चात् परियोजना 15ए (Project 15A) के तहत कोलकाता वर्ग के तीन युद्धपोतों को भी भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। इस श्रेणी के तीन निर्देशित मिसाइल विध्वंसक युद्धपोतों में 'आईएनएस कोलकाता (INS Kolkata), आईएनएस कोच्चि (INS Kochi) और आईएनएस चेन्नई (INS Chennai)' को कमीशन किया गया।
- निर्माण संस्था: इन सभी स्टील्थ गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक युद्धपोतों का निर्माण देश के सबसे महत्त्वपूर्ण रक्षा सार्वजनिक उपक्रमों में से एक मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDSL) द्वारा किया जा रहा है।