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डेटा इकॉनमी को बढ़ावा देने के लिए नियामक ढांचा

हाल ही में भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने भारत में डेटा केंद्रों (Data Centers), सामग्री वितरण नेटवर्क (Content Delivery Networks) और इंटरकनेक्ट एक्सचेंज (Interconnect Exchanges) की स्थापना के माध्यम से डेटा अर्थव्यवस्था (Data Economy) को बढ़ावा देने के लिए एक नियामक ढांचे के संबंध में अपनी सिफारिशें जारी कीं।

सिफारिशों के मुख्य बिंदु

  • डेटा केंद्र प्रोत्साहन योजना: ट्राई ने डेटा केंद्र और डेटा केंद्र पार्क (Data Centre Park) स्थापित करने के लिए डेटा केंद्र प्रोत्साहन योजना (Data Centre Incentivization Scheme) लाने की सिफारिश की है।
  • डेटा सेंटर SEZ: डेटा सेंटर और डेटा सेंटर पार्कों की स्थापना के लिए आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और ओडिशा राज्य में एक SEZ की पहचान की जा सकती है।
  • ग्रीन डेटा सेंटर: सरकार को ग्रीन डेटा सेंटर को बढ़ावा देने के लिए अपनाई जा सकने वाली नई तकनीक / पद्धतियों / प्रक्रियाओं के लिए प्रायोगिक आधार पर प्रस्ताव के लिए अनुरोध आमंत्रित करने के लिए एक योजना बनानी चाहिए।
  • पावर इंफ्रास्ट्रक्चर: डेटा सेंटर और डेटा सेंटर पार्क साइटों को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (State Pollution Control Board) या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) से बिना किसी बाधा के बैकअप पावर इंफ्रास्ट्रक्चर के रूप में संचालित करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • डेटा डिजिटलीकरण और मुद्रीकरण परिषद: केंद्र में डेटा डिजिटलीकरण अभियान को चलाने के लिए ‘डेटा डिजिटलीकरण और मुद्रीकरण परिषद’ (Data Digitization and Monetization Council) नामक एक वैधानिक निकाय की स्थापना की जानी चाहिए।
    • डेटा डिजिटाइजेशन और मुद्रीकरण परिषद को सरकार के साथ-साथ भारत में कॉर्पोरेट द्वारा डेटा के नैतिक उपयोग के लिए एक व्यापक रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी भी सौंपी जानी चाहिए।
  • डेटा साझाकरण एवं सहमति प्रबंधन रूपरेखा: सरकार को ‘डेटा अधिकारिता और संरक्षण ढांचे’ (DEPA framework) की तर्ज पर एक ‘डेटा साझाकरण और सहमति प्रबंधन रूपरेखा’ (Data Sharing & Consent Management Framework) स्थापित करना चाहिए।

भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण

  • स्थापना: भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (TRAI) की स्थापना वर्ष 1997 में संसद के एक अधिनियम द्वारा की गई थी।
  • मुख्यालय: नई दिल्ली में स्थित है।
  • उद्देश्य: देश में दूरसंचार के विकास के लिए ऐसी परिस्थितियों का निर्माण और पोषण करना है जो भारत को उभरते वैश्विक सूचना समाज में अग्रणी भूमिका निभाने में सक्षम बनाए।
  • प्रमुख कार्य: दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करना तथा दूरसंचार सेवाओं के लिए टैरिफ का निर्धारण/संशोधन करना हेतु की गई थी।

भारत का पहला निजी प्रक्षेपण यान : विक्रम-एस

18 नवंबर, 2022 को श्रीहरिकोटा स्थित भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के स्पेसपोर्ट से स्काईरूट एरोस्पेस (Skyroot Aerospace) के विक्रम-एस (Vikram-S) यान ने अपनी पहली उड़ान भरी|

  • स्काईरूट एयरोस्पेस के इस पहले मिशन को ‘प्रारंभ’ नाम दिया गया है।
  • विक्रम-एस की कुल मिशन अवधि 300 सेकंड थी एवं अपने मिशन को पूरा करने के बाद इसने बंगाल की खाड़ी में स्पलैशडाउन (splashdown) किया।

मुख्य बिंदु

  • विशेषता: विक्रम-एस प्रमोचन यान की लंबाई 6 मीटर है तथा यह एक एकल-चरण ठोस ईंधन उप-कक्षीय रॉकेट (Single-Stage Solid Fuelled Sub-Orbital Rocket) है|
    • इस प्रमोचन वाहन का लिफ्ट ऑफ मास 545 किलोग्राम था| स्काईरूट एरोस्पेस कंपनी द्वारा विक्रम लॉन्च वाहन श्रृंखला के अन्य उपग्रहों, विक्रम II और विक्रम III, का विकास किया जा रहा हैं।
    • रॉकेट में ध्वनि की गति से 5 गुना अधिक गति यानी 5 मैक तक पहुंचने की क्षमता है| यह 83 किग्रा. (183 पाउंड) के पेलोड को 100 किमी. (62 मील) की ऊंचाई तक ले जाने की क्षमता रखता है।
    • स्काईरूट एयरोस्पेस 526 करोड़ रुपए के साथ भारत में अंतरिक्ष क्षेत्र की सबसे बड़ी वित्त पोषित निजी कंपनी बन गई है।
  • प्रमोचन: इस प्रमोचन के माध्यम से तीन उपग्रह लांच किये गए| इसमें चेन्नई स्थित स्टार्ट-अप स्पेसकिड्ज़ (SpaceKidz), आंध्र प्रदेश स्थित एन-स्पेसटेक (N-SpaceTech) के उपग्रह शामिल हैं|
    • एक अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत, आर्मेनिया के बाज़ूमक्यू स्पेस रिसर्च लैब (BazoomQ Space Research Lab) के उपग्रह को भी प्रमोचित किया गया है।

भारत में निजी क्षेत्र द्वारा किये जा रहे अन्य प्रयास

  • एक अन्य कंपनी अग्निकुल कॉसमॉस (Agnikul Cosmos) ने अपने सेमी-क्रायोजेनिक इंजन (Semi-Cryogenic Engine) का हाल ही में परीक्षण किया है।
    • अग्निकुल कॉसमॉस आईआईटी मद्रास द्वारा इनक्यूबेटेड एक ‘स्पेस टेक स्टार्ट-अप’ है, जो वर्तमान में अग्निबाण (Agnibaan) नामक छोटे लॉन्च वाहन को भी विकसित कर रही है|
    • अग्निबाण को इस प्रकार विकसित किया जा रहा है कि यह 100 किलोग्राम पेलोड को 700 किमी. की कक्षा में स्थापित कर सके।
  • इसी प्रकार पिक्सल (Pixxel), एक अन्य स्टार्टअप है जो भविष्य में अंतरिक्ष में एक उपग्रह समूह (constellation of satellites) स्थापित करने पर काम कर रहा है| इसके माध्यम से मौसम की निगरानी और भविष्यवाणी की जा सकेगी।

इन-स्पेस (IN-SPACe)

  • इन-स्पेस (IN-SPACe) भारतीय अंतरिक्ष अवसंरचना का उपयोग करने हेतु निजी क्षेत्र की कंपनियों को समान अवसर उपलब्ध कराएगा।
  • इस निकाय के गठन का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपनी आवश्यक गतिविधियों जैसे- अनुसंधान एवं विकास, ग्रहों के अन्वेषण तथा अंतरिक्ष के रणनीतिक उपयोग आदि पर ध्यान केंद्रित कर सके और अन्य सहायक कार्यों को निजी क्षेत्र को हस्तांतरित कर दिया जाए।
  • यह इसरो और कॉरपोरेट क्षेत्र के बीच सहयोग के लिए एक प्लेटफॉर्म के रूप में काम करेगा और देश के अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग करने और अंतरिक्ष-आधारित गतिविधि का विस्तार करने का सबसे प्रभावी तरीका निर्धारित करेगा।
  • इसके अतिरिक्त यह निकाय छात्रों और शोधकर्त्ताओं आदि को भारत की अंतरिक्ष परिसंपत्तियों तक अधिक पहुंच प्रदान करेगा, जिससे भारत के अंतरिक्ष संसाधनों और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित होगा।

आर्टेमिस 1 मिशन प्रमोचन

16 नवंबर, 2022 को फ्लोरिडा स्थित कैनेडी स्पेस सेंटर के लॉन्च कॉम्प्लेक्स 39 बी से नासा के आर्टेमिस 1 (Artemis 1) मिशन को प्रमोचित किया गया। इस मिशन को 14 नवंबर 2022 को लॉन्च किया जाने वाला था, लेकिन उष्णकटिबंधीय तूफान निकोल (Nicole) के कारण स्थगित करना पड़ा था।

मुख्य बिंदु

  • आर्टेमिस 1 के लिए ‘ओरियन अंतरिक्ष यान’ (Orion Spacecraft) तथा ‘स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट’ [(Space Launch System (SLS) rocket)] का उपयोग किया गया है।
  • इस मिशन के लिए यान में आरएस-25 इंजन का प्रयोग किया गया है उष्णकटिबंधीय तूफान निकोल (Nicole) के कारण इसे क्षति का सामना करना पड़ा था।
  • मानवरहित आर्टेमिस 1 मिशन के माध्यम से मानवयुक्त अंतरिक्ष यान भेजने की क्षमता का परीक्षण भी किया जाएगा।
  • आर्टेमिस मिशन के अंतर्गत नासा का अगला मिशन आर्टेमिस 2 होगा। चंद्रमा की परिक्रमा करने वाले इस मानवयुक्त मिशन को 2024 में प्रक्षेपित किया जाना है।
  • वर्ष 2025 में आर्टेमिस 3 मिशन भेजने की योजना है जिसमें एक लैंडर भी होगा। इसके बाद अन्य क्रू मिशनों को भी चन्द्रमा पर भेजने की योजना है।

चन्द्र अन्वेषण में आर्टेमिस मिशन का महत्व

  • आर्टेमिस का अर्थ है ‘सूर्य के साथ चंद्रमा की पारस्परिक क्रिया का त्वरण, पुनर्संयोजन, विक्षोभ एवं उसकी विद्युतगतिकी’ (Acceleration, Reconnection, Turbulence and Electrodynamics of the Moon's Interaction with the Sun)।
  • इस मिशन के तहत अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में लैंड कराने की योजना है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक वर्तमान में कोई भी इंसान नहीं पहुंचा है।
  • आर्टेमिस के परिणामस्वरूप नासा वर्ष 2028 तक चंद्रमा पर एक स्थायी मानव उपस्थिति स्थापित करने, नई वैज्ञानिक खोजों का अनावरण करने, नई तकनीकी प्रगति का प्रदर्शन करने और निजी कंपनियों के लिए एक चंद्र अर्थव्यवस्था (lunar economy) के निर्माण की नींव रखने में सक्षम होगा।
  • नासा अपने शक्तिशाली स्पेस लांच सिस्टम और अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने में सक्षम अंतरिक्ष यान को अत्याधुनिक स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित करेगा।
  • आर्टेमिस कार्यक्रम के तहत, नासा द्वारा वर्ष 2024 तक चंद्रमा की सतह पर पहली बार किसी महिला को उतारा जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि अपोलो कार्यक्रम के द्वारा मानव ने 1960 और 70 के दशक में पहली बार चंद्रमा की सतह पर कदम रखा था।
  • अभी तक केवल 12 मनुष्य (सभी पुरुष) ही चंद्रमा की सतह पर उतरे हैं तथा वे सभी अमेरिकी थे। अभी तक कोई भी महिला चंद्रमा की सतह पर नहीं पहुंची है।

जनजातीय गौरव दिवस तथा बिरसा मुंडा

15 नवंबर, 2022 को बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया गया।

  • सरकार ने बहादुर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति में 15 नवंबर को 'जनजातीय गौरव दिवस' मनाए जाने की घोषणा पिछले साल 10 नवंबर, 2021 को की थी।
  • बिरसा मुंडा को देश भर के जनजातीय समुदाय द्वारा भगवान के रूप में सम्मान दिया जाता है।

जीवन परिचय

  • बिरसा मुंडा देश के एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और श्रद्धेय जनजातीय नायक थे, जिन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार की शोषणकारी व्यवस्था के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
  • उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को तत्कालीन बंगाल प्रेसीडेंसी के लोहारदगा जिले के उलिहतु गांव (जो वर्तमान में झारखंड के खुंटी जिले में स्थित है) में हुआ था।
  • बिरसा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने शिक्षक जयपाल नाग के मार्गदर्शन में प्राप्त की। जयपाल नाग की सिफारिश पर, बिरसा ने जर्मन मिशन स्कूल में शामिल होने के लिए ईसाई धर्म अपना लिया।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों तथा मिशनरियों द्वारा आदिवासियों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के मिशनरियों के प्रयासों के बारे में जानने के पश्चात बिरसा ने ‘बिरसैत’ (Birsait) की आस्था शुरू की।
  • जल्द ही मुंडा और उरांव समुदाय के सदस्य बिरसैत संप्रदाय में शामिल होने लगे तथा धर्मांतरण गतिविधियों को रोकने का प्रयास किया।

योगदान

  • 1886 से 1890 की अवधि के दौरान, बिरसा मुंडा ने ‘चाईबासा’(Chaibasa) में काफी समय बिताया, जो ‘सरदारों के आंदोलन’(sardar's Agitation) के करीब था।
  • सरदारों के इस आंदोलन का युवा बिरसा के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा, जिससे प्रभावित होकर उन्होंने मिशनरी विरोधी और सरकार विरोधी प्रदर्शनों की तैयारी प्रारंभ की।
  • बिरसा ने आदिवासियों को ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा कृषि भूमि पर कब्जे के माध्यम से किए जा रहे शोषण के संबंध में जागरूक करने का प्रयास किया ताकि उन्हें क्रांतिकारी संघर्ष के लिए तैयार किया जा सके।
  • मिशनरियों तथा ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के कारण बिरसा को 24 अगस्त, 1895 को गिरफ्तार कर लिया गया तथा दो साल की कैद की सजा सुनाई गई। 28 जनवरी, 1898 को जेल से रिहा होने के पश्चात उन्होंने अपने अनुयायियों को संघर्ष के लिए एकत्रित करना प्रारंभ किया।
  • उन्होंने जनजातियों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों को समझने और एकता का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

उलगुलान विद्रोह

  • उन्होंने जनजातियों से "उलगुलान" (विद्रोह) का आह्वान किया तथा जनजातीय आंदोलन को संगठित करने के साथ नेतृत्व प्रदान किया।
  • मुंडा विद्रोह ‘उलगुलान’ की शुरुआत 1899-1900 के दौरान रांची के आस-पास के क्षेत्रों में हुई। इस विद्रोह का उद्देश्य ब्रिटिश राज को समाप्त कर ‘मुंडा शासन’ की स्थापना करना था।
  • विद्रोह के दौरान मुंडा आदिवासियों ने पुलिस स्टेशनों, सार्वजनिक संपत्तियों, चर्चों तथा जमीदारों को निशाना बनाया।
  • वर्ष 1900 तक मुंडा विद्रोह को दबा दिया गया। 9 जून, 1900 को बिरसा मुंडा की जेल में हैजा होने से मृत्यु हो गई।

सेना स्पेक्टैबिलिस : आक्रामक विदेशी प्रजाति

हाल ही में मुदुमलाई टाइगर रिजर्व द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, सेना स्पेक्टाबिलिस (Senna spectabilis) नामक एक आक्रामक विदेशी प्रजाति का पेड़ मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (Mudumalai Tiger Reserve) के बफर जोन में काफी तेजी से प्रसार कर रहा है|

मुख्य बिंदु

  • यह पेड़ मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (नीलगिरी पहाड़ी जिले) के 800 और 1,200 हेक्टेयर के भूमि पर विस्तारित हो चूका है।
  • मुदुमलाई टाइगर रिजर्व के बफर जोन में सिंगारा और मासीनागुडी वन पर्वतमाला क्षेत्र के साथ ही रिजर्व के कोर क्षेत्र में स्थित कारगुडी रेंज में भी इन पेड़ों की उपस्थिति है|
  • संरक्षणवादियों का कहना है कि इस आक्रामक पौधे का स्थानीय जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है और इससे वन्यजीवों के लिए भोजन की उपलब्धता सीमित हो गई है।
  • सेना स्पेक्टाबिलिस को दक्षिण और मध्य अमेरिका से एक सजावटी तथाजलाऊ लकड़ी के रूप में उपयोग करने के लिए लाया गया था|
  • मुदुमलाई टाइगर रिजर्व (एमटीआर) तमिलनाडु राज्य के नीलगिरी जिले में स्थित है। इस टाइगर रिजर्व की सीमा कर्नाटक और केरल से लगी है|

आक्रामक विदेशी प्रजाति क्या है?

  • आक्रामक विदेशी प्रजाति एक ऐसी प्रजाति होती है जो किसी ख़ास विशिष्ट स्थान की मूल निवासी नहीं होती है और यह एक हद तक पर्यावरण, मानव अर्थव्यवस्था या मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है। ऐसी प्रजातियां पौधे या जानवर हो सकते हैं।
  • आक्रामक विदेशी प्रजाति (invasive alien species - IAS)उस पारिस्थितिक तंत्र की संरचना में परिवर्तन का कारण बनती हैं।
  • विश्व में लोगों और वस्तुओं की आवाजाही के कारण आक्रामक प्रजातियों का प्रसार होता है।
  • आक्रामक प्रजातियों की समस्या का आइची जैव विविधता लक्ष्य-9 (Aichi Biodiversity Target - 9) और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य की धारा 15 में उल्लेख किया गया है।

आचार्य जे.बी. कृपलानी की जयंती

11 नवंबर, 2022 को आचार्य जे. बी. कृपलानी (11 नवंबर 1888 – 19 मार्च 1982) की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा इन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

आचार्य कृपलानी (पूरा नाम- जीवटराम भगवानदास कृपलानी) का जन्म 11 नवंबर, 1888 को ब्रिटिश भारत काल में तात्कालिक बॉम्बे प्रेसीडेंसी के हैदराबाद शहर में हुआ था, जो वर्तमान में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है।

संक्षिप्त परिचय

  • आचार्य कृपलानी भारत के प्रमुख भारतीय शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, पर्यावरणवादी और राजनीतिज्ञ थे।
  • वे महात्मा गांधी के करीबी सहयोगी और उनकी विचारधारा के लंबे समय से समर्थक थे।
  • गुजरात विद्यापीठ में पढ़ाने के दौरान उन्हें महात्मा गांधी द्वारा 'आचार्य' उपनाम प्रदान किया गया था।

योगदान

  • बिहार में नील की खेती करने वाले किसानों की दशा सुधारने से संबंधित चंपारण सत्याग्रह में आचार्य कृपलानी ने गाँधी जी का साथ दिया था|
  • वे नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में काफी सक्रियता से शामिल थे।
  • आचार्य कृपलानी ने भारत की अंतरिम सरकार (1946-1947) और भारत की संविधान सभा में प्रमुख जिम्मेदारी निभाई थी।
  • वे सन् 1947 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जब भारत को आजादी मिली। कृपलानी जी एक दशक से अधिक समय तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के शीर्ष पदों पर आसीन रहे|

स्वतंत्रता के पश्चात

  • उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की उन नीतियों का विरोध किया, जो उनके अनुसार गांधीवादी मूल्यों के खिलाफ थीं|
  • कृपलानी जी ने इंदिरा गांधी सरकार की विभिन्न नीतियों का भी विरोध किया।
  • आचार्य कृपलानी ने 1977 में जनता पार्टी की सरकार के गठन में अहम भूमिका निभायी। आचार्य कृपलानी गांधीवादी दर्शन के एक प्रमुख व्याख्याता थे और उन्होंने इस विषय पर अनेक पुस्तकें लिखीं।

मृदा कार्बन पृथक्करण के जरिये जलवायु परिवर्तन का न्यूनीकरण

हाल ही में, इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (International Crops Research Institute for The Semi-Arid Tropics - ICRISAT) ने एक मॉडलिंग अध्ययन प्रकाशित किया है। इस मॉडलिंग अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन को कम करने में मृदा कार्बन पृथक्करण (Soil Carbon Sequestration) मदद कर सकता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

  • इस मॉडलिंग अध्ययन में पाया गया कि उर्वरक, बायोचार (biochar) और सिंचाई का सही संयोजन मृदा कार्बन पृथक्करण (Soil Carbon Sequestration) को 300 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है|
  • शोधकर्ताओं ने उर्वरकों के इष्टतम उपयोग से कार्बन में वृद्धि के साथ साथ उत्पादन में 30 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • मॉडलिंग अध्ययन के तहत महाराष्ट्र के पांच जिलों (जालना, धुले, अहमदनगर, अमरावती और यवतमाल) और ओडिशा के आठ जिलों (अंगुल, बोलांगीर, देवगढ़, ढेंकेनाल, कालाहांडी, केंदुझार, नुआपाड़ा और सुंदेगढ़) को शामिल किया गया था।
  • दोनों राज्यों में मुख्य रूप से अर्ध-शुष्क जलवायु है जिसमें 600 मिलीमीटर और 1,100 मिमी के बीच वार्षिक वर्षा होती है।
  • इन क्षेत्र में कपास, ज्वार, सोयाबीन, चना, अरहर और बाजरा जैसी महत्वपूर्ण फसलों का अध्ययन किया गया।

महत्व

  • संपूर्ण खाद्य प्रणाली द्वारा लगभग एक तिहाई ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) का उत्सर्जन होता है। इस मॉडलिंग अध्ययन के आधार पर कृषि क्षेत्र जलवायु संकट के विरुद्ध लड़ाई में सकारात्मक योगदान दे सकता है|
  • इस कृषि मॉडलिंग अध्ययन के आधार पर वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को पकड़ने (capture) और इसे मिट्टी में संग्रहीत (storing) किया जा सकता है।
  • इससे कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारकों के स्थान पर एक समाधान बनाया जा सकता है।
  • मृदा में कार्बन सीक्वेस्टिंग (sequencing) किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान कर सकती है।
  • यह सतत विकास लक्ष्य 13 (एसडीजी 13: जलवायु कार्रवाई) के लक्ष्य के अनुरूप है जो जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग करता है।

भारत के 50वें सीजेआई : न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़

9 नवंबर, 2022 को न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण किया। उन्हें उनकी पद की शपथ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा दिलाई गई।

  • न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का अपेक्षाकृत दो वर्ष का लंबा कार्यकाल होगा और वे 10 नवंबर, 2024 को सेवानिवृत्त होंगे।
  • जस्टिस चंद्रचूड़ भारत के 16वें चीफ जस्टिस वाई. वी. चंद्रचूड़ के बेटे हैं। उनके पिता का बतौर सीजेआई करीब 7 वर्ष एवं 4 महीने का कार्यकाल रहा था। जो कि सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में किसी सीजेआई का अब तक सबसे लंबा कार्यकाल है।

प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति की प्रक्रिया

  • भारतीय संविधान में प्रधान न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति के संबंध में किसी "प्रक्रिया" का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • संविधान का अनुच्छेद 124 (1) केवल यह कहता है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा, जो भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलकर बनेगा।
  • अनुच्छेद 124 का खंड (2) कहता है कि सर्वोच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।
  • इस प्रकार, नियुक्ति की प्रक्रिया से संबंधित स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान के अभाव में, सीजेआई की नियुक्ति की प्रक्रिया परंपरा पर निर्भर करती है
  • यह एक प्रथा या परंपरा रही है कि निवर्तमान सीजेआई वरिष्ठता के आधार पर अपने उत्तराधिकारी की सिफारिश करते हैं। हालांकि, दो बार इस प्रथा का उल्लंघन भी हुआ है।

राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति

  • अनुच्छेद 124 के खंड (2) के तहत भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • इसी प्रकार अनुच्छेद 217 उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है, जो यह कहता है कि राष्ट्रपति, भारत के मुख्य न्यायाधीश, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल से परामर्श के पश्चात उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा।
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक होता है, जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के संबंध में यह आयु सीमा 62 वर्ष है।

न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने संबंधी योग्यताएं

  • अनुच्छेद 124 (3) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिए:
  • वह भारत का नागरिक हो तथा
  • किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो या
  • किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो; या
  • राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता हो।

प्रधान न्यायाधीश (CJI) के कार्य

  • मामलों का आवंटन:
    • सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख के रूप में सीजेआई मामलों के आवंटन और संवैधानिक पीठों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार है जो कानून के महत्वपूर्ण मामलों से निपटती हैं।
    • संविधान के अनुच्छेद 145 और सुप्रीम कोर्ट के प्रक्रिया नियम 1966 के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश अन्य न्यायाधीशों को सभी कार्य आवंटित करता है।
  • प्रशासनिक दायित्व: प्रशासनिक रूप से सीजेआई निम्नलिखित कार्य करता है:
    • रोस्टर का रखरखाव;
    • न्यायालय के अधिकारियों की नियुक्ति और
    • सर्वोच्च न्यायालय के पर्यवेक्षण और कामकाज से संबंधित सामान्य और विविध मामलों को देखना।

गुरु नानक देव जी की 553वीं जयंती

8 नवंबर, 2022 को विश्व भर में गुरु नानक देव जी की 553वीं जयंती मनाई गई। गुरु नानक जयंती को प्रकाश उत्सव या गुरु पूरब के नाम से भी जाना जाता है।

  • इसे प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन सिख संस्थापक गुरु नानक देव जी की जन्म वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है।
  • इस दिन दुनिया भर के सिख, गुरु नानक देव जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं, जिनका जन्म 1469 ईस्वी में वर्तमान पाकिस्तान में लाहौर के निकट ननकाना साहिब में हुआ था। ननकाना साहिब को पहले 'राय-भोई-दी-तलवंडी' के नाम से जाना जाता था।

गुरु नानक के बारे में

  • गुरु नानक देव जी, सिखों के 10 गुरुओं में से पहले हैं। उनके पिता का नाम मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता था।
  • उनकी शिक्षाओं को सिखों की पवित्र पुस्तक ‘गुरु ग्रंथ साहिब’में संकलित किया गया है।
  • गुरु नानक ने ‘मानवता की एकता’(Oneness of Humanity) की शिक्षा दी। गुरु नानक ने कहा कि “अपने अंदर प्रभु के प्रकाश को पहचानो तथा सामाजिक वर्ग या स्थिति पर विचार मत करो क्योंकि दुनिया में कोई सामाजिक वर्ग या जाति नहीं है”।
  • गुरु नानक देव जी ने ईश्वर के एकता और पवित्रता के संदेश को फैलाने के लिए हजारों मील की यात्रा की थी। पंजाब के अपने जन्मस्थान से, गुरु नानक ने मध्य-पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया के कई देशों तक पैदल यात्रा की थी।
  • अपने वफादार अनुयाई मर्दाना के साथ गुरु नानक मक्का, तिब्बत तथा तुर्की की यात्रा पर गए थे।
  • अलग-अलग संस्कृतियों में गुरु नानक देव को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है। अफगानिस्तान में उन्हें आमतौर पर नानक पीर, नेपाल में नानक ऋषि, इराक में बाबा नानक, श्रीलंका में नानक-चर्या और तिब्बत में नानक लामा के नाम से भी जाना जाता है।

सिख धर्म

  • सिख धर्म ने सामाजिक पहचान पर आधारित विभाजन का विरोध किया तथा मानवता की एकता का संदेश दिया।
  • सिख धर्म ने भारत में लंगर प्रथा का प्रारंभ किया, जिसमें जाति, धर्म तथा नस्ल आधारित भेदभाव को अस्वीकार कर सभी को भोजन खिलाने की परंपरा की शुरुआत की गई, जो वर्तमान में पूरे विश्व में प्रचलित है।
  • सिख धर्म में अनुयायियों को किसी भी आपातकालीन स्थिति में लोगों को सेवा प्रदान करने की शिक्षा दी जाती है। इसी शिक्षा से प्रेरणा लेकर सिख धर्म के अनुयायी आपदा के दौरान दुनिया के प्रत्येक कोने में जाकर ‘स्वार्थरहित’(Selfless) सेवा प्रदान करते हैं।

भारत के 22वें विधि आयोग का गठन

7 नवंबर, 2022 को केंद्र सरकार ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता में भारत के 22वें विधि आयोग का गठन किया। केंद्र सरकार द्वारा विधि आयोग के सदस्यों की भी नियुक्ति की गई।

  • उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा फरवरी 2020 में ही 22वें विधि आयोग के गठन को मंजूरी दी गई थी, परन्तु अभी तक इसके अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई थी।

भारत का विधि आयोग

  • भारत का विधि आयोग महत्वपूर्ण विधायी सुधारों की सिफारिश करने वाली सरकार की शीर्ष संस्था है तथा यह कार्यकारी निकाय भारत सरकार के एक आदेश के माध्यम से स्थापित किया जाता है।
  • मूल रूप से विधि आयोग का गठन 1955 में किया गया था तथा इसका हर तीन साल में पुनर्गठन किया जाता है। विधि आयोग द्वारा अब तक सरकार को 277 रिपोर्टें सौंपी जा चुकी हैं।
  • आयोग का कार्य कानूनी सुधारों पर भारत सरकार को शोध और सलाह प्रदान करना है। इसमें कानूनी विशेषज्ञ शामिल होते हैं तथा इसकी अध्यक्षता एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा की जाती है। यह कानून और न्याय मंत्रालय के सलाहकार निकाय के रूप में काम करता है।

22वें विधि आयोग के कार्य

  • यह ऐसे कानूनों की पहचान करना जिनकी अब कोई जरूरत नहीं है या वे अप्रासंगिक हैं और जिन्हें तुरन्त निरस्त किया जा सकता है।
  • राज्य नीति के निदेशक तत्वों के आलोक में मौजूदा कानूनों की जांच करना तथा सुधार के तरीकों के सुझाव देना।
  • नीति निदेशक तत्वों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना तथा संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।
  • सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, संदिग्धताओं और असमानताओं को दूर किया जा सके।
  • कानून और न्यायिक प्रशासन से संबंधित उस किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जो इसे विधि और न्याय मंत्रालय के माध्यम से सरकार द्वारा विशेष रूप से अग्रेषित किया गया हो।
  • गरीब लोगों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए आवश्यक सभी उपाय करना।
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