सामयिक

सामयिक खबरें :

परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का रात्रि परीक्षण

15 दिसंबर, 2022 को भारत द्वारा सबसे लंबी दूरी की परमाणु-सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 (Nuclear-capable ballistic missile Agni-5) का रात्रि परीक्षण (Night Trials) सफलतापूर्वक किया गया।

  • परीक्षण स्थल: इस मिसाइल को एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप, ओडिशा (APJ Abdul Kalam Island, Odisha) से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया।

अग्नि-5 मिसाइल

  • उन्नत बैलिस्टिक मिसाइल: अग्नि-5 एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Programme- IGMDP) के तहत विकसित सतह-से-सतह पर मार करने वाली उन्नत बैलिस्टिक मिसाइल (Advanced ballistic missile) है।
  • कार्यप्रणाली: यह दागो और भूल जाओ सिद्धांत (Fire and forgets theory) पर कार्य करती है, जिसे इंटरसेप्टर मिसाइल (Interceptor missile) के बिना रोका नहीं जा सकता है।
  • क्षमता एवं महत्त्व: तीन चरणीय तथा ठोस ईंधन इंजन पर आधारित (Based on three stage and solid fuel engine) यह मिसाइल 5,000 किलोमीटर तक के लक्ष्य को भेदने में सक्षम है।
    • इसके माध्यम से अत्यंत उच्च स्तर की सटीकता के साथ चीन के अधिकांश हिस्सों तक पहुंचा जा सकता है। यही कारण है कि इस मिसाइल को भारत की आत्मरक्षा प्रणाली (Self defense systems of India) के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम: अग्नि श्रृंखला की मिसाइलों को परमाणु हथियारों के परीक्षण हेतु महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मिसाइल लगभग 1.5 टन परमाणु आयुध ले जाने में सक्षम है।

अग्नि श्रृंखला की मिसाइलें

इस श्रृंखला के तहत निर्मित मिसाइलें निम्नलिखित हैं:

  • अग्नि I: 700-800 किमी. की रेंज।
  • अग्नि II: 2000 किमी. से अधिक की रेंज।
  • अग्नि III: 2,500 किमी. से अधिक की रेंज।
  • अग्नि IV: रेंज 3,500 किमी से अधिक है और इसे रोड-मोबाइल लॉन्चर (Road-Mobile Launcher) से फायर किया जा सकता है।
  • अग्नि-V: यह अग्नि श्रृंखला की सबसे लंबी, एक अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (Intercontinental ballistic missile-ICBM) है, जिसकी रेंज 5,000 किमी से अधिक है।
  • अग्नि-पी (प्राइम): यह एक कैनिस्टराइज्ड मिसाइल (Canisterised Missile) है, जिसकी मारक क्षमता 1,000 से 2,000 किमी. के बीच है। यह अग्नि-I मिसाइल का स्थान लेगी।
  • विश्व के केवल कुछ ही देशों के पास अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें हैं, इनमें भारत के साथ-साथ अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और उत्तर कोरिया जैसे देश शामिल हैं।

एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP)

  • आरंभ: IGMDP को प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम द्वारा वर्ष 1983 में आरंभ किया गया था।
  • उद्देश्य: मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना।
  • लाभ:रणनीतिक रूप से स्वदेशी मिसाइल प्रणालियों को आकार देने के लिये इस कार्यक्रम के तहत देश के वैज्ञानिक समुदाय, शैक्षणिक संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, उद्योगों और तीनों रक्षा सेवाओं को एक साथ लाया गया।
  • शामिल मिसाइलें: रक्षा बलों की विभिन्न प्रकार की मिसाइलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम के तहत 5 मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने की मंज़ूरी दी गई।
    • पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
    • त्रिशूल: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
    • नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
    • आकाश: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।

इंडिया इंटरनेट गवर्नेंस फोरम-2022

11 दिसंबर, 2022 को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी तथा कौशल विकास एवं उद्यमिता राज्य मंत्री ने 'इंडिया इंटरनेट गवर्नेंस फोरम-2022' (India Internet Governance Forum-2022 [IIGF-2022]) के समापन समारोह को संबोधित किया।

  • इंडियाइंटरनेटगवर्नेंस फोरम-2022 की बैठक 9-11 दिसंबर, 2022 के मध्य आयोजित की गई।
  • बैठक की थीम: “भारत के सशक्तीकरण के लिये प्रौद्योगिकी के दशक का उपयोग” (Leveraging Techade for Empowering Bharat)।
  • आयोजन का उद्देश्य: डिजिटलीकरण के रोडमैप पर चर्चा करना तथा इंटरनेट गवर्नेंस पर अंतरराष्ट्रीय नीति विकास में भारत की भूमिका को उजागर करना।

IIGF के संदर्भ में

  • आरंभ: इसकी पहली बैठक वर्ष 2006 में आयोजित की गई थी।
    • इसका गठन संयुक्त राष्ट्र स्थित इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (UN-based Internet Governance forum) के ट्यूनिस एजेंडा के IGF-पैराग्राफ 72 (GF-Paragraph 72) के अनुरूप किया गया है।
    • इस प्रकार, इंडिया इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (IIGF) वास्तव में संयुक्त राष्ट्र इंटरनेट गवर्नेंस फोरम (UN-IGF) से जुड़ी एक भारतीय पहल है।
  • उद्देश्य/कार्य: यह फोरम इंटरनेट से संबंधित सार्वजनिक नीति के मुद्दों के बारे में चर्चा करने के लिए विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • प्रकृति: यह फोरम इंटरनेट से संबंधित सार्वजनिक नीति के मुद्दों के विषय में चर्चा करने के लिए विभिन्न समूहों के प्रतिनिधियों को एक मंच पर लाने के लिए एक प्रकार के 'इंटरनेट गवर्नेंस नीति विचार-विमर्श मंच' (Internet Governance Policy Consultation Forum) के रूप में कार्य करता है।

भारत की इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थिति

  • वर्तमान इंटरनेट क्षमता: भारत 800 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ताओं के साथ विश्व का सबसे बड़ा इंटरनेट कनेक्टिविटी (Internet Connectivity) वाला देश है। साथ ही, भारत को विश्व के दूसरे सबसे बड़े ब्रॉडबैंड सदस्यता वाले देश तथा प्रति उपयोगकर्ता प्रतिमाह सर्वाधिक डेटा की खपत करने वाले देश के रूप में भी जाना जाता है।
  • भविष्य की क्षमता: 5-जी तथा ‘भारत-नेट’ ग्रामीण ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी नेटवर्क परियोजना (Rural Broadband Connectivity Network Project) के तहत आगे चलकर 1.2 अरब भारतीय उपयोगकर्ता होंगे। इस तरह वैश्विक इंटरनेट में भारत सबसे बड़ी उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करेगा।
  • अन्य देशों को सहयोग: भारत, वैश्विक दक्षिण (Global South) के देशों के लिये भी इंटरनेट तक पहुंच में सुधार हेतु सहयोग कर रहा है। इनमें वे देश हैं जो अपनी अर्थव्यवस्थाओं के विकास में इन्टरनेट उपयोग तथा डिजिटलीकरण की कमी के कारण अर्थव्यवस्था को आवश्यक गति प्रदान करने में सक्षम नहीं हैं।
    • इंटरनेट के उपयोग एवं कनेक्टिविटी से किसी भी अर्थव्यवस्था को उत्पादकता, वित्तीय स्वतंत्रता और सूचना तक अधिक व्यापक पहुंच संबंधी लाभ प्राप्त होते हैं।

इंटरनेट गवर्नेंस

  • अर्थ एवं परिभाषा: इंटरनेट गवर्नेंस को मुख्यतः सरकारों, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज द्वारा साझा सिद्धांतों, मानदंडों, नियमों, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं और कार्यक्रमों की अपनी-अपनी भूमिकाओं में इंटरनेट प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • समन्वित रूप में इसके अंतर्गत तकनीकी मानकों के विकास एवं समन्वय, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के संचालन तथा इंटरनेट से जुड़े सार्वजनिक नीति के मुद्दों को भी शामिल किया जाता है।
    • इसके तहत वे प्रक्रियाएं भी शामिल की जाती हैं, जिनसे इंटरनेट के विकास और उपयोग को बढ़ावा मिलता है।
  • इंटरनेट गवर्नेंस के क्षेत्र: इंटरनेट गवर्नेंस के अंतर्गत इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेसिंग (IP Addressing), डोमेन नेम सिस्टम (DNS), रूटिंग, तकनीकी नवाचार, मानकीकरण, सुरक्षा, सार्वजनिक नीति, गोपनीयता, कानूनी मुद्दे, साइबर मानदंड, बौद्धिक संपदा और कराधान संबंधी मुद्दे शामिल हैं।
  • इंटरनेट गवर्नेंस के आयाम: इसके आयामों में भौतिक अवसंरचना, कोड या तार्किक तथ्य, विषय वस्तु तथा सुरक्षा संबंधी विषय आते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (संशोधन) विधेयक, 2022

14 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (संशोधन) विधेयक, 2022 [New Delhi International Arbitration Centre (Amendment) Bill, 2022] को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी प्राप्त हो गई।

  • इसे 8 अगस्त, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। यह ‘नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अधिनियम, 2019’ (New Delhi International Arbitration Centre Act, 2019) में संशोधन करता है।
  • मुख्य प्रावधान: यह विधेयक नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र का नाम बदलकर "भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र" (India International Arbitration Centre) करने का प्रावधान करता है।
  • विधेयक की आवश्यकता: केंद्र सरकार द्वारा यह महसूस किया गया कि संस्था का वर्तमान नाम शहर-केंद्रित होने का आभास देता है, जबकि यह केंद्र भारत को संस्थागत मध्यस्थता के केंद्र के रूप में उभारने की आकांक्षाओं का प्रतिबिंबित करता है।

विधेयक के अन्य प्रावधान

  • मूल अधिनियम के तहत, नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (NDIAC) को 'अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मामलों में 'मध्यस्थता और सुलह' (Arbitration & Conciliation) के संचालन की सुविधा के लिए प्रयास करने के लिए निर्देशित किया गया था। वहीं नवीन संशोधन विधेयक इस प्रक्रिया में वैकल्पिक विवाद समाधान के अन्य रूपों को भी शामिल करने के लिए क़ानून का विस्तार करता है।
  • संशोधन विधेयक के अनुसार मध्यस्थता के संचालन के तरीकों तथा वैकल्पिक विवाद समाधान के अन्य रूपों को केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न नियमों के माध्यम से निर्दिष्ट किया जाएगा।
  • 2019 के मूल अधिनियम में केंद्र सरकार को अधिनियम के लागू होने की तारीख से 2 वर्ष के भीतर इसे लागू करने में आने वाली किसी भी कठिनाई को दूर करने की अनुमति दी गई थी। नवीन संशोधन विधेयक इस समय अवधि को 5 वर्ष तक के लिए विस्तारित करता है।

एनडीआईएसी के मुख्य उद्देश्य

  • विवादों के वैकल्पिक समाधान के मामलों से जुड़े शोध को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण देना तथा कॉन्फ्रेंस एवं सेमिनार आयोजित करना।
  • मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाहियों के लिए सुविधाएं और प्रशासनिक सहयोग प्रदान करना।
  • मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाहियों के लिए मान्यता प्राप्त प्रोफेशनलों का पैनल तैयार करना।

वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) क्या है?

  • एडीआर (Alternative Dispute Resolution) विवाद समाधान का एक ऐसा तंत्र है जिसमें संबंधित पक्ष सहयोगपूर्ण तरीके से सर्वोत्तम समाधान तक पहुंचने के लिए आपस में मिलकर काम करते हैं।
  • वैकल्पिक विवाद समाधान, विवाद को हल करने के उन तरीकों को संदर्भित करता है, जो न्यायालयी मुकदमेबाजी के विकल्प हो सकते हैं। इनमें मध्यस्थता, सुलह, समझौता वार्ता, पंचाट तथा लोक अदालत जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • आमतौर पर यह तंत्र, विवाद समाधान की प्रक्रिया में एक तटस्थ तीसरे पक्ष का उपयोग करता है, जो विवाद से संबंधित पक्षों को संवाद करने, मतभेदों पर चर्चा करने तथा विवाद को हल करने में मदद करता है।

वैकल्पिक विवाद समाधान का महत्व

  • समय की बर्बादी से बचाव: एडीआर के माध्यम से लोग अदालतों की तुलना में कम समय में अपने विवाद को सुलझा सकते हैं।
  • लागत प्रभावी: एडीआर की प्रक्रिया काफी कम खर्चीली है, जबकि न्यायालयों में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया में काफी खर्च होता है।
  • तकनीकी जटिलता रहित: यह प्रक्रिया अदालतों की तकनीकी जटिलताओं से मुक्त है तथा इसमें विवाद को सुलझाने में अनौपचारिक तरीके अपनाए जाते हैं।
  • मामले के बारे में सही तथ्यों का उजागर होना: चूंकि यह प्रक्रिया अदालती प्रक्रिया की तुलना में अपेक्षाकृत अनौपचारिक प्रकृति की होती है, इसलिए इस प्रक्रिया में विवाद से जुड़े पक्ष अधिक प्रभावी रूप में अपनी बात रख पाते हैं।
  • विवाद का स्वतः निपटान: चूंकि एडीआर की प्रक्रिया में संबंधित पक्ष एक ही मंच पर अपने मुद्दों पर एक साथ चर्चा करते हैं, ऐसे में विवाद के स्वतः निपटान की संभावना भी बढ़ जाती है। साथ ही यह प्रक्रिया पक्षों के बीच संघर्ष को बढ़ने से भी रोकती है।

वैकल्पिक विवाद समाधान की सीमाएं

  • अपील का न होना: वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के द्वारा दिए गए फैसलों में अपील की गुंजाइश कम या न के बराबर होती है; ऐसे में यदि फैसले के संबंध में कोई समस्या प्रकट होती है, तो उसका समाधान संभव नहीं होता। यानी इसमें अंतिम समाधान की कोई गारंटी नहीं होती।
  • विभिन्न क़ानून: घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए अलग-अलग क़ानूनों के कारण, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता से संबंधित कानूनों की प्रयोज्यता का पता लगाना मुश्किल होता है।
  • सांस्कृतिक या भाषा संबंधी बाधाएं: दो क्षेत्रों की भाषा एवं संस्कृति में विसंगति के कारण, इस अंतर को पाटना और एक एकीकृत समाधान पर आना मुश्किल हो जाता है।
  • जागरूकता की कमी: अधिकांश लोग अपने विवादों के समाधान के लिए अभी भी अदालतों में जाना पसंद करते हैं और इन विकल्पों और कार्यप्रणाली से अनभिज्ञ हैं।
  • संस्थागत अवसंरचना की कमी: भारत में ADR को बढ़ावा देने के लिए संस्थागत अवसंरचना की कमी है, इसी कारण से इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण है।

17वीं एशिया और प्रशांत क्षेत्रीय बैठक

06-09 दिसंबर, 2022 के मध्य अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 17वीं एशिया एवं प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (APRM) आयोजित की गई। यह बैठक 9 दिसंबर को सिंगापुर घोषणा के साथ संपन्न हुई।

  • बैठक में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक समूहों द्वारा चार नई श्रम संहिताओं (Four new labor codes) सहित भारत की श्रम नीतियों की आलोचना की गई।

एशिया एवं प्रशांत क्षेत्रीय बैठक (APRM)

  • विस्तार: इस बैठक के माध्यम से एशिया, प्रशांत और अरब देशों की सरकारों, नियोक्ताओं तथा श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाने का प्रयास किया जाता है।
  • इसके चार प्रमुख विषयगत क्षेत्र
    • मानव-केंद्रित समावेशी, टिकाऊ और लचीली (Human-centered Inclusive, Sustainable and Resilient) संवृद्धि हेतु एकीकृत नीति एजेंडा।
    • एक ऐसे संस्थागत ढांचे की स्थापना करना जो औपचारिक तथा सभ्य कार्य दशाओं में संक्रमण (Transition to formal and civilized work conditions) हेतु प्रोत्साहित करे।
    • सामाजिक सुरक्षा, रोजगार संरक्षण तथा कार्य दशाओं में लचीलेपन (Social security, employment protection and flexibility in working conditions) हेतु मजबूत नींव का निर्माण करना।
    • गुणवत्तापरक तथा अधिक संख्या में नौकरियां सृजित करने के लिए उत्पादकता वृद्धि एवं कौशल को संरेखित (Aligning Productivity Growth & Skills) करना।

भारत की आलोचना के बिंदु

  • नवीन श्रम संहिता: भारत की नवीन श्रम संहिता के अंतर्गत निरीक्षण की शक्तियां नियोक्ताओं को प्रदान की गई है। इस प्रकार यह संहिता नियोक्ताओं को खुली छूट प्रदान करती है तथा श्रमिकों, नियोक्ताओं और सरकार के मध्य त्रिपक्षीय समझौतों का उल्लंघन करती हैं।
  • ध्यान रहे कि, वर्ष 2020 से ही केंद्र सरकार श्रम कानूनों को सुव्यवस्थित करने की दिशा में कार्यरत है। सरकार ने ने श्रम कानूनों के 29 सेटों (29 Sets) को बदलने के लिए चार व्यापक श्रम संहिताओं को अधिसूचित किया है:
    • वेतन संहिता, 2019;
    • औद्योगिक संबंध संहिता, 2020;
    • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020; और
    • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020।
  • अन्य चुनौतियां
    • व्यापक बेरोजगारी: भारत विश्व में सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। साथ ही, देश भर में स्टार्ट-अप एवं छोटे व्यवसायों के अंतर्गत तकनीकी और उद्यमशीलता का उछाल देखने को मिल रहा है। अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में मशीनीकरण तथा तकनीकी के बढ़ते प्रभाव से उच्च स्तर की बेरोजगारी होने की संभावना है।
    • असंगठित कार्यबल: भारत में लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र से संबंधित है जो कम वेतन वाली नौकरियों तथा खराब कार्यशील परिस्थितियों का लगातार सामना कर रहा है।
    • उत्पादकता में कमी: अर्थव्यवस्था में उत्पादकता में होने वाली गिरावट का सर्वाधिक नकारात्मक प्रभाव श्रमिकों, उद्यमों (विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यमों) की स्थिरता तथा समुदायों पर पड़ता है।

सिंगापुर घोषणा के प्रमुख बिंदु

  • आने वाले वर्षों में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के समर्थन द्वारा राष्ट्रीय कार्रवाई के लिये संबद्ध क्षेत्रों की पहचान करना तथा ऐसे क्षेत्रों एवं ILO के घटकों के मध्य एक साझा दृष्टिकोण निर्मित करना।
  • घोषणा में, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा आयोजित किए जाने वाले सम्मेलनों द्वारा प्रभावी सामाजिक संवाद स्थापित करने के लिए सरकार, नियोक्ता एवं श्रमिक प्रतिनिधियों की क्षमताओं को मज़बूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
  • इस घोषणा में अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सदस्य देशों से अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों की पुष्टि करने तथा उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने का आग्रह किया गया है।
  • इसके अंतर्गत, यह कहा गया है कि सभी देश अनौपचारिक क्षेत्र से औपचारिक क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए तेजी से प्रयास करें तथा प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए मजबूत कानूनी ढांचा स्थापित करें।
  • इस घोषणा में, वैश्विक सामाजिक न्याय गठबंधन को विकसित करने की दिशा में सरकारों तथा सामाजिक भागीदारों को एक साथ आने का आह्वान किया गया है।
  • यह घोषणा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हुए स्थायी अर्थव्यवस्थाओं तथा सभ्य समाजों के निर्माण हेतु न्यायोचित संक्रमण (Justified Transition) को भी बढ़ावा देने की वकालत करती है।

नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल

1-10 दिसंबर, 2022 के मध्य देश के पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में हॉर्नबिल महोत्सव (Hornbill Festival) के 23वें संस्करण का आयोजन किया गया।

  • इस महोत्सव में कुल 1,40,299 लोगों ने हिस्सा लिया, जिसमें 1,026 विदेशी पर्यटक भी शामिल हुए।
  • हॉर्नबिल महोत्सव का उद्घाटन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा 1 दिसंबर, 2022 को नागालैंड की राजधानी कोहिमा के निकट नागा विरासत गांव 'किसामा' (Kisama) में किया गया था।

हॉर्नबिल फेस्टिवल

  • महोत्सव का उद्देश्य: नागालैंड की समृद्ध संस्कृति को पुनर्जीवित करना व उसकी रक्षा करना तथा इसकी परंपराओं को प्रदर्शित करना।
  • आयोजन का समय: नागालैंड सरकार प्रत्येक वर्ष दिसंबर के पहले सप्ताह में हॉर्नबिल महोत्सव आयोजित करती है।
    • यह महोत्सव नागालैंड के राज्य दिवस के अवसर पर 1 दिसंबर को शुरू होता है, तथा 10 दिनों तक चलने के बाद 10 दिसंबर को समाप्त हो जाता है।
  • आयोजन स्थल: हॉर्नबिल फेस्टिवल, कोहिमा से लगभग 12 किमी. दूर स्थित किसामा (Kisama) के नागा हेरिटेज विलेज (Naga Heritage Village) में आयोजित किया जाता है।
    • हालांकि इसका संगीत समारोह तथा रॉक कॉन्टेस्ट दीमापुर (Dimapur) में आयोजित किया जाता है।
  • आयोजित गतिविधियां: हॉर्नबिल महोत्सव, नृत्य, प्रदर्शन, शिल्प, परेड, खेल, भोजन मेले तथा धार्मिक समारोहों का एक अनूठा मिश्रण है।
  • महत्व: नागालैंड की लगभग सभी जनजातियां इस त्योहार में भाग लेती हैं तथा इसे "त्योहारों का त्योहार" भी कहा जाता है।
    • यह महोत्सव जनजातीय लोगों की संस्कृति और परंपरा को उजागर करता है तथा संघीय भारत में एक अद्वितीय राज्य के रूप में नगालैंड की पहचान को पुष्ट करता है।
  • महोत्सव में हिस्सा लेने वाली 17 जनजातियां: अंगामी (Angami), आओ (Ao), चाकेसांग (Chakhesang), चांग (Chang), दिमासा कचारी (Dimasa Kachari), गारो (Garo), खिआमनियुंगन (Khiamniungan), कोन्याक (Konyak), कूकी (Kuki), लोथा (Lotha), फ़ोम (Phom), पोचरी (Pochury), रेंगमा (Rengma), सांग्तम (Sangtam), सुमी (Sumi), युमचुनग्रू (Yumchungru) तथा ज़ेलियांग (Zeliang)।

पीटी फैक्ट : हॉर्नबिल पक्षी

  • इस महोत्सव का नामकरण हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर किया गया है, जो नगालैंड का सबसे श्रद्धेय पक्षी है।
  • ग्रेट हॉर्नबिल, केरल एवं अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पक्षी भी है।
  • संरक्षण स्थिति: आईयूसीएन (IUCN) की रेड लिस्ट में सुभेद्य श्रेणी के रूप में वर्गीकृत है,
    • साइट्स (CITES) के परिशिष्ट I के अंतर्गत सूचीबद्ध है; तथा
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972 की अनुसूची 1 में शामिल है।

बहु-राज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक, 2022

7 दिसंबर, 2022 को बहु-राज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक, 2022 (Multi-State Co-operative Societies Act, 2022) लोक सभा में पेश किया गया। विधेयक में 2011 के 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के आलोक में 'बहु-राज्य सहकारी समितियां अधिनियम, 2002' (Multi-State Co-operative Societies Act, 2002) को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।

  • वर्ष 2021 में केंद्र सरकार द्वारा पृथक रूप से एक केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय का गठन किया गया, पूर्व में इसके शासनादेशों की देख-रेख कृषि मंत्रालय द्वारा की जाती थी।

सहकारी समितियों के संदर्भ में

  • परिभाषा: अंतर्राष्ट्रीय सहकारी गठबंधन (The International Cooperative Alliance-ICA) द्वारा एक सहकारी समिति को 'सामूहिक स्वामित्त्व वाले तथा लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु स्वैच्छिक रूप से एकजुट व्यक्तियों के स्वायत्त संघ' के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • उद्देश्य: पारस्परिक एवं स्व-सहायता सिद्धांत (Mutualism and Self-help theory) के माध्यम से समाज के गरीब वर्गों की सेवा करना तथा उनके हितों की रक्षा करना।
  • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ: संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सहकारी समितियाँ एक राज्य का विषय मानी जाती हैं। किंतु, अनेक ऐसी सहकारी समितियां हैं जिनके सदस्य एवं संचालन का क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में विस्तृत है (उदाहरण: चीनी संघ, दूध संघ तथा दूध बैंक आदि)।
  • कानूनी प्रावधान: इस प्रकार की बहु-राज्य सहकारी समितियों का संचालन करने के लिए MSCS अधिनियम, 2002 पारित किया गया था। वर्तमान विधेयक इसी अधिनियम में संशोधन हेतु लाया गया है।

संवैधानिक प्रावधान

  • संवैधानिक संशोधन: 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से संविधान में भाग IXB को शामिल किया गया था, जिसमें सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
  • मूल अधिकार का दर्जा: इसी संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद 19(1)(c) में 'संघ और संगठन' के पश्चात 'सहकारिता' शब्द को शामिल किया गया था। यह प्रावधान भारतीय नागरिकों को सहकारी समितियाँ बनाने के अधिकार को मौलिक अधिकार (Fundamental Right) का दर्जा प्रदान करता है।
  • राज्य पर उत्तरदायित्व: इसी प्रकार, 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा ही राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों (भाग IV) में 'सहकारी समितियों के प्रचार' के संबंध में एक नए अनुच्छेद 43B को भी शामिल किया गया था।

बहुराज्य सहकारी समितियां (संशोधन) विधेयक-2022 के महत्वपूर्ण प्रावधान

  • सहकारी चुनाव प्राधिकरण: विधेयक के अंतर्गत सहकारी क्षेत्र में 'चुनावी सुधार' (Election reform) लाने के लिए एक 'सहकारी चुनाव प्राधिकरण' (Co-operative election authority) स्थापित करने का प्रस्ताव किया गया है। प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और केंद्र द्वारा नियुक्त किए जाने वाले अधिकतम तीन सदस्य होंगे।
  • एक कोष की स्थापना और समवर्ती लेखापरीक्षा: विधेयक 'बीमार बहु-राज्य सहकारी समितियों' (Sick multi-state co-operative societies) के पुनरुद्धार हेतु 'सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण और विकास निधि' (Cooperative Rehabilitation, Reconstruction and Development Fund) की स्थापना से संबंधित एक नई धारा (New Section) को शामिल करने का प्रस्ताव करता है। ऐसी बहुराज्य सहकारी समितियों, जिनका वार्षिक कारोबार केंद्र द्वारा निर्धारित राशि से अधिक होता है, के लिए 'समवर्ती लेखापरीक्षा' (Concurrent audit) के प्रावधान शामिल किए गए हैं।
  • शिकायत निवारण: विधायक में एक अध्याय 'शिकायत निवारण' से संबंधित है। इसमें सदस्यों की शिकायतों की जांच करने के लिए एक निश्चित क्षेत्राधिकार के साथ एक या अधिक 'सहकारी लोकपाल' (Co-operative ombudsman) नियुक्त करने का प्रस्ताव है।
  • लोकपाल की भूमिका: यह प्रस्ताव है कि, लोकपाल शिकायत प्राप्त होने की तारीख से तीन महीने की अवधि के भीतर जांच और अधिनिर्णय की प्रक्रिया को पूरा करेगा, साथ ही लोकपाल द्वारा जांच के दौरान समिति को आवश्यक निर्देश जारी किए जा सकते हैं।
  • मौद्रिक दंड और कारावास: विधेयक में कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिए बहु-राज्य सहकारी समितियों पर मौद्रिक दंड को अधिकतम 1 लाख रुपये तक बढ़ाने का भी प्रस्ताव किया गया है। इसी प्रकार, प्रस्तावित संशोधनों में कारावास की अवधि को वर्तमान में अधिकतम छह माह से बढ़ाकर एक वर्ष तक करने का प्रस्ताव है।
  • सहकारी सूचना अधिकारी: विधेयक के अंतर्गतत बहु-राज्य सहकारी समितियों के सदस्यों एवं मामलों के प्रबंधन की जानकारी प्रदान करने के लिए 'सहकारी सूचना अधिकारी' (Co-operative information officer) की नियुक्ति करने का भी प्रस्ताव है।

कैक्टस रोपण और इसके आर्थिक उपयोग

8 दिसंबर, 2022 को केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह ने नई दिल्ली में 'कैक्टस रोपण और इसके आर्थिक उपयोग' (Cactus Plantation and it’s Economic Usage) विषय पर एक परामर्श बैठक आयोजित की।

  • बैठक में चिली के राजदूत जुआन अंगुलो एम; मोरक्को दूतावास के मिशन उप प्रमुख एराचिद अलौई मरानी; ब्राजील दूतावास के ऊर्जा प्रभाग की प्रमुख श्रीमती कैरोलिना सैटो तथा ब्राजील दूतावास के कृषि सहायक एंजेलो मौरिसियो भी शामिल हुए।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • बैठक में भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources-DoLR) को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के वाटरशेड विकास घटक (WDC-PMKSY) के माध्यम से कम उर्वर भूमि में सुधार करने के लिए अधिकृत किया गया है।
  • ध्यान रहे कि, भारत के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा निम्न स्तर के भूमि की श्रेणी में है। विभिन्न प्रकार के वृक्षारोपण उन गतिविधियों में से एक है जो कम उर्वर भूमि को सुधार करने में सहायता करते हैं। कैक्टस की कृषि को बढ़ावा देने का उद्देश्य भी उपर्युक्त लक्ष्यों के साथ अधिदेशित है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research-ICAR) और शुष्क भूमि क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Center for Agricultural Research in Dryland Areas-ICARDA) को मध्य प्रदेश में ICARDA के अमलाहा फार्म में भूमि संरक्षण हेतु एक पायलट परियोजना स्थापित करने के कार्य में शामिल किया जा रहा है। इसके अंतर्गत कैक्टस की कृषि को भी बढ़ावा देने का प्रयास किया जाएगा।

कैक्टस क्या है?

  • कैक्टस एक जेरोफाइटिक पौधा (Xerophytic plant) है जो अपेक्षाकृत धीमी गति से बढ़ता है।
  • वैश्विक स्तर पर इसका वितरण असमान हैं। इसकी अधिकांश सघनता भूमध्य रेखा के 30 डिग्री उत्तरी एवं 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के मध्य पाई जाती है।
  • इस पौधे की प्रजातियों की सर्वाधिक संख्या तथा सघनता (Highest species density) दक्षिण अफ्रीका तथा उपोष्णकटिबंधीय उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका में है।

कैक्टस के प्रमुख उपयोग क्या हैं?

  • जल संरक्षी: कैक्टस पारंपरिक फसलों की तुलना में जल का 80% कम उपयोग करता है, फिर भी इसके द्वारा व्यापक संख्या में फलों की पैदावार की जाती है।
  • खाद्य उपयोग: उच्च चीनी सामग्री के कारण इसके फलों का उपयोग जैम और जेली बनाने के लिए किया जाता है और शेष फसल का उपयोग मानव उपभोग और पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है।
  • ताप सहनशील: इसके अतिरिक्त, यह फसल उच्च ताप सहनशीलता की विशेषताओं से युक्त है, अपनी इस विशिष्ट विशेषता के कारण यह पौधा उच्च तापमान वाली विषम परिस्थितियों के लिए भी अनुकूल माना जाता है।
  • oवर्तमान समय में जब संपूर्ण विश्व जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में होने वाली वृद्धि से निपटने के उपायों की खोज कर रहा है, तो ऐसी स्थिति में यह पौधा व्यापक संभावनाएं प्रकट करता है।
  • कृषक हितैषी: कैक्टस का व्यापक उपयोग जैव ईंधन, भोजन, चारा और जैव उर्वरक उत्पादन में भी किया जा रहा है। उत्पादन की सीमित लागत के कारण इस पौधे को गरीब किसानों के लिए अतिरिक्त रोजगार के साधन तथा उनकी आय में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण विकल्प माना जा रहा है।

भारत-बांग्लादेश संयुक्त कार्य समूह की बैठक

5-6 दिसंबर, 2022 के मध्य भारत तथा बांग्लादेश के बीच सुरक्षा और सीमा प्रबंधन पर संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group-JWG) की 18वीं बैठक आयोजित की गई।

  • भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल तथा गृह मंत्रालय के अपर सचिव द्वारा किया गया। वहीं बांग्लादेश सरकार के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व बांग्लादेश सरकार के अतिरिक्त सचिव ए. के. मुखलेसुर रहमान ने किया।
  • इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने सीमा प्रबंधन और सामान्य सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर बातचीत की।

चर्चा के महत्वपूर्ण मुद्दे

  • दोनों देश सुरक्षा और सीमा संबंधी मुद्दों पर आपसी सहयोग को गहरा एवं मजबूत करने पर सहमत हुए।
  • बैठक में भारत-बांग्लादेश सीमा की प्रभावी रखवाली के लिए समन्वित सीमा प्रबंधन योजना (Coordinated Border Management Plan-CBMP) को उसकी भावना में लागू करने पर प्रमुख मुद्दे के रूप में चर्चा की गई।
  • इस दौरान, अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 150 गज के भीतर सीमा पर बाड़ लगाने, अवैध क्रॉसिंग, उग्रवाद की जाँच में सहयोग तथा विकास कार्यों जैसे द्विपक्षीय मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई।
  • आतंकवाद, संगठित अपराध तथा तस्करी की समस्या का सामना करने के उपायों पर भी विचार साझा किए गए।

संबंधों में सुधार हेतु प्रयास

  • पिछले चार दशकों से अधिक समय में दोनों देशों ने अपने राजनीतिक, आर्थिक, व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना जारी रखा है और द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक संस्थागत ढांचे का निर्माण किया है।
  • दोनों देश 54 नदियों को साझा करते हैं, जिनमें से गंगा जल के बंटवारे के लिए एक संधि पहले से ही मौजूद है और दोनों पक्ष अन्य नदियों के पानी के बंटवारे के लिए समझौतों को जल्द अंतिम रूप देने की दिशा में कार्यरत हैं।
  • दोनों देश सुंदरबन पारिस्थितिकी तंत्र (Sundarbans Ecosystem) के संरक्षण में सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। यह एक सामान्य जैव विविधता विरासत स्थल है।

भारत बांग्लादेश संबंध

  • राजनीतिक: दिसंबर 1971 में भारत-बांग्लादेश की स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात बांग्लादेश को मान्यता देने तथा राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले प्रथम देशों में शामिल था।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: दोनों देश निम्नलिखित मंचों पर सहयोग करते हैं: सार्क, बिम्सटेक, हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संघ और राष्ट्रमंडल।
  • व्यापार और निवेश: बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
  • रक्षा सहयोग: दोनों देशों के सीमा सुरक्षा बलों, नौसेनाओं तथा वायुसेनाओं के मध्य नियमित रूप से उच्च स्तरीय वार्ताएं आयोजित की जाती हैं।
    • दोनों देश साझा रूप में संप्रीति (सेना) तथा मिलान (नौसेना) युद्धाभ्यास करते हैं।

बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम

30 नवंबर, 2022 को ‘बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम’ (Horticulture Cluster Development Programme) के समुचित क्रियान्वयन के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में बैठक का आयोजन किया गया।

  • देश में बागवानी के समग्र विकास को सुनिश्चित करने के लिए ‘बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम’ का शुभारंभ केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 31 मई, 2021 को किया गया था।

योजना के उद्देश्य

  • लक्षित फसलों के निर्यातों में लगभग 20% का सुधार करना;
  • क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड (Cluster-Specific Brand) का निर्माण करना; एवं
  • देश में कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देकर उनकी आय में वृद्धि करना।

मुख्य विशेषताएं

  • नोडल एजेंसी: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (National Horticulture Board) को इस केंद्रीय क्षेत्र योजना के कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
  • पायलट प्रोजेक्ट: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इस योजना के तहत 55 बागवानी समूहों की पहचान की है, जिनमें से 12 बागवानी समूहों को पायलट प्रोजेक्ट के लिए चुना गया है। पायलट प्रोजेक्ट से मिली सीख के आधार पर कार्यक्रम को सभी 55 क्लस्टरों में बढ़ाया जाएगा।
  • कार्यान्वयन ढांचा: इस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड वित्तीय सहायता प्रदान करेगा।
    • क्लस्टर विकास कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिए प्रत्येक पहचाने गए क्लस्टर में राज्य/केंद्र सरकार द्वारा अनुशंसित एक सरकारी/सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई को क्लस्टर डेवलपमेंट एजेंसी (Cluster Development Agency) के रूप में नियुक्त किया जाएगा।
    • क्लस्टर डेवलपमेंट एजेंसी, कार्यक्रम के सुचारु कार्यान्वयन के लिए अपने अधीक्षण में अधिकारियों की एक समर्पित टीम के साथ एक क्लस्टर डेवलपमेंट सेल (Cluster Development Cell) की स्थापना करेगी।
    • जियो टैगिंग: कार्यक्रम के तहत छोटे व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने, खेतों में लागू की जाने वाली गतिविधियों का पता लगाने, निगरानी उद्देश्य के लिए बुनियादी ढांचे की जियो टैगिंग (Geo Tagging) आदि की आवश्यकता है।
  • योजना की आवश्यकता: क्लस्टर विकास कार्यक्रम को बागवानी समूहों की भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाने एवं प्रीप्रोडक्शन (Preproduction), प्रोडक्शन, लॉजिस्टिक्स, कटाई के बाद प्रबंधन ब्रांडिंग और मार्केटिंग गतिविधियों के एकीकृत एवं बाजार-आधारित विकास (Integrated and Market-Led Development) को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

योजना का महत्व

  • क्लस्टर विकास कार्यक्रम से किसानों को अधिक पारिश्रमिक मिल सकता है।
  • इस कार्यक्रम से लगभग 10 लाख किसानों और मूल्य श्रृंखला (Value Chain )के संबंधित हितधारकों को लाभ हो सकता है।
  • क्लस्टर विकास कार्यक्रम में बागवानी उत्पादों की कुशल एवं समय पर निकासी तथा परिवहन के लिए मल्टीमॉडल परिवहन के उपयोग के साथ अंतिम-मील संपर्कता (Last-Mile Connectivity) का निर्माण करके समग्र बागवानी पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने की क्षमता है।
  • इसके माध्यम से बागवानी क्षेत्र में सरकारी एवं निजी निवेश को भी बढाया जा सकता है।

भारत में बागवानी क्षेत्र का विकास

  • उत्पादन: वर्ष 2019-20 के दौरान देश में 25.66 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का अब तक का सर्वाधिक 320.77 मिलियन टन उत्पादन हुआ।
    • वर्ष 2020-21 के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार देश में 27.17 लाख हेक्टेयर भूमि पर बागवानी क्षेत्र का कुल उत्पादन 326.58 लाख मीट्रिक टन रहने का अनुमान है।
  • कृषि जीडीपी में योगदान: बागवानी का देश के कई राज्यों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान है और कृषि जीडीपी में इसका योगदान 30 प्रतिशत से अधिक है।

एकीकृत बागवानी विकास मिशन

  • शुरुआत: देश में बागवानी क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं को साकार करने के लिए कृषि मंत्रालय ‘एकीकृत बागवानी विकास मिशन’ (Mission for Integrated Development of Horticulture- MIDH) नामक केंद्र प्रायोजित योजना को वर्ष 2014-15 से लगातार कार्यान्वित कर रहा है।
  • उत्पादन में वृद्धि: इस मिशन ने खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली सर्वोत्तम प्रणालियों को बढ़ावा दिया है, जिसने खेत की उत्पादकता और उत्पादन की गुणवत्ता में काफी सुधार किया है।
  • योगदान: एमआईडीएच के लागू होने से न केवल बागवानी क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ी है, बल्कि इसने भूख, अच्छा स्वास्थ्य व देखभाल, ग़रीबी से मुक्ति, लैंगिक समानता जैसे सतत् विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड

  • स्थापना: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड की स्थापना भारत सरकार द्वारा अप्रैल 1984 में डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले ‘विनाशवान कृषि उत्पादों पर समूह’ (Group on Perishable Agricultural Commodities) की सिफ़ारिशों के आधार पर की गई थी।
  • उद्देश्य: एनएचबी का मुख्य उद्देश्य बागवानी उद्योग के एकीकृत विकास में सुधार करना तथा फलों एवं सब्जियों के उत्पादन व प्रसंस्करण के समन्वयन व रखरखाव में मदद करना है।
  • मुख्यालय: राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत एक सोसाइटी के रूप में पंजीकृत है तथा इसका मुख्यालय गुरूग्राम में है।
  • पंजीकृत: इसे कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक स्वायत्त संगठन के रूप में स्थापित किया गया था तथा सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत किया गया था। बाद में इसे हरियाणा पंजीकरण और सोसायटी विनियमन अधिनियम, 2012 के तहत पुनर्पंजीकृत किया गया।

बागवानी क्षेत्र के विकास के लिए क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • बुनियादी ढांचे को बढ़ावा: भारत में बागवानी क्षेत्र, फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान और फसल कटाई के बाद के प्रबन्धन एवं सप्लाई चेन के बुनियादी ढांचे के बीच मौजूद अंतर की वजह से अभी भी काफी चुनौतियों का सामना कर रहा है।
  • सघन बागवानी को बढ़ावा: बागवानी कृषि को अधिक लाभप्रद बनाने के लिये किसानों को परंपरागत खेती की बजाय सघन बागवानी को अपनाना चाहिये। इसके लिये वे वैज्ञानिकों द्वारा विकसित विभिन्न फलों की बौनी किस्मों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे- आम की आम्रपाली, अर्का व अरुणा, नींबू की कागज़ी कला, सेब की रेड चीफ, रेड स्पर आदि।

वैश्विक प्रौद्योगिकी सम्मेलन

29 नवंबर से 1 दिसंबर, 2022 के मध्य नई दिल्ली में वैश्विक प्रौद्योगिकी सम्मेलन (Global Technology Summit-GTS) का 7 वां संस्करण हाइब्रिड प्रारूप (Hybrid Format) में आयोजित किया गया।

सम्मेलन का उद्घाटन भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर द्वारा किया गया। उद्घाटन सत्र में उन्होंने भू-डिजिटल तथा इसके प्रभावों (Geo-digital and its impact) पर चर्चा की।


सम्मेलन के संदर्भ में

  • आरंभ: 2016
  • आयोजन: यह भू-प्रौद्योगिकी पर भारत का वार्षिक रूप से आयोजित किया जाने वाला प्रमुख कार्यक्रम है।
  • आयोजक: इसका आयोजन प्रति वर्ष विदेश मंत्रालय द्वारा कार्नेगी इंडिया के सहयोग से (Ministry of External Affairs in association with Carnegie India) किया जाता है।
  • थीम: इस वर्ष (2022) के सम्मेलन का विषय 'प्रौद्योगिकी की भू-राजनीति' (Geopolitics Of Technology) था।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • तीन दिवसीय सम्मेलन के समय प्रौद्योगिकी, सरकार, सुरक्षा, अंतरिक्ष, स्टार्टअप, डेटा, कानून, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, शिक्षाविदों, अर्थव्यवस्था के संदर्भ में प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग तथा भविष्य में इससे संबंधित महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई।
  • GTS 2022 में 50 से अधिक पैनल चर्चाओं का आयोजन किया गया तथा मुख्य भाषणों, पुस्तक विमोचन और अन्य कार्यक्रमों को मिलाकर लगभग 100 से अधिक वक्ताओं ने भाग लिया।
  • सम्मेलन में अमेरिका, सिंगापुर, जापान, नाइजीरिया, ब्राजील, भूटान, यूरोपीय संघ तथा अन्य देशों के मंत्री एवं वरिष्ठ सरकारी अधिकारी भी शामिल हुए।
  • सम्मेलन के आरंभ होने से पूर्व ही दुनिया भर से लगभग 5000 से अधिक प्रतिभागियों ने पंजीकरण कराया। विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए कई हजार लोगों ने GTS वेबसाइट का उपयोग किया।
Showing 31-40 of 1,664 items.