​स्वतंत्रता -उपरांत भूमि सुधार

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भूमि सुधार भारत के ग्रामीण सामाजिक-आर्थिक ढाँचे को रूपांतरित करने का एक बहुआयामी और ऐतिहासिक प्रयास था। इन सुधारों का उद्देश्य औपनिवेशिक काल से विरासत में मिले भूमि-असमानता, शोषणकारी बटाई प्रथा (tenancy) और कम कृषि-उत्पादकता जैसी समस्याओं का समाधान करना था। इनका लक्ष्य सामाजिक न्याय की स्थापना, ग्रामीण निर्धनता का उन्मूलन और समानतामूलक कृषि समाज का निर्माण था।

प्रमुख विशेषताऐं

  • बिचौलियों का उन्मूलन: पहला और सबसे प्रभावी कदम बिचौलियों, जैसे ज़मींदार, जागीरदार का उन्मूलन था, जो सक्रिय रूप से खेती किए बिना विशाल भूमि पर नियंत्रण रखते थे।
  • प्रक्रिया: राज्यों ने 1950 के दशक से इन बिचौलियों से भूमि ....
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