सांस्कृतिक दृष्टिकोण से प्राचीन भारत में वास्तुकला

प्राचीन भारतीय स्थापत्य, जो सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर गुप्त युग तक फैला हुआ है, केवल पत्थर या ईंट की संरचनाएँ नहीं थीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना, धार्मिक विचारधारा और सामाजिक व्यवस्था का मूर्त रूप थीं। यह वास्तु-कला भारतीय चिंतन की सजीव अभिव्यक्ति थी, जहाँ पवित्र ज्यामिति, दार्शनिक अवधारणाएँ और सामाजिक जीवन एक-दूसरे में घुल-मिल कर साकार हुए।

स्थापत्य के माध्यम से सांस्कृतिक विकास

काल/युग

मुख्य स्थापत्य रूप

सांस्कृतिक अर्थ व प्रतिबिंब

सिंधु घाटी सभ्यता (2600–1900 ई.पू.)

जालाकार नगर योजना, सुनियोजित सड़कें, जलनिकासी तंत्र, अनाजगृह, ‘महान स्नानागार’ जैसी सार्वजनिक संरचनाएँ और समान आकार की ईंटें।

नागरिक अनुशासन और समानतावाद: भव्य महलों या सेनानी ....

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