विजयनगर मंदिर स्थापत्य कला

विजयनगर काल (लगभग 14वीं–16वीं सदी ईस्वी) का मंदिर स्थापत्य द्रविड़ शैली का अंतिम और सर्वाधिक विकसित रूप था, जिसमें भव्यता, उपयोगिता, सैन्य दृष्टि से सुरक्षा और अद्वितीय शिल्प-सौंदर्य का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। होयसल और यादव वंशों के पतन के बाद उभरते हुए इस स्थापत्य ने चालुक्य, होयसल और चोल परंपराओं के तत्वों को आत्मसात करके एक विस्तृत, दुर्गनुमा मंदिर-नगर की रचना की, जो उस युग की शक्ति, संपन्नता और धार्मिक ऊँचाई का प्रतीक बना।

विकास और प्रमुख स्थापत्य घटक

स्थापत्य तत्व

विवरण और कार्य

सांस्कृतिक व राजनीतिक महत्त्व

एकाश्मक राय गोपुरम्

विशाल, बहुमंज़िली, अत्यधिक अलंकृत ....

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