प्राचीन भारत में गण-संघ एवं प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाएँ

गण और संघ उन सामूहिक राज्य संरचनाओं को दर्शाते थे, जिनमें संप्रभुता किसी एक राजा के बजाय जनता या एक संगठनात्मक निकाय के हाथ में होती थी। इन्हें अक्सर "सामंततन्त्रात्मक गणराज्य" या "कुल-गणराज्य" के रूप में देखा जाता है। ये शब्द सामूहिक या सभा-आधारित शासन को दर्शाते हैं, जो आम तौर पर क्षत्रिय वंशों के प्रभुत्व में होता था, जिसमें निर्णय, परिषदों और जनसभाओं के माध्यम से लिए जाते थे।

  • ये व्यवस्थाएँ उत्तर वैदिक काल से लेकर महाजनपद युग (6वीं–4वीं शताब्दी ईसा पूर्व) तक राजतंत्रों के साथ सह-अस्तित्व में रहीं तथा प्रारंभिक ऐतिहासिक काल तक, कुछ स्थानों पर, बनीं रहीं।

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