राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता की बढ़ती मांगें

भारत में राज्य लगातार अधिक वित्तीय स्वायत्तता (Financial Autonomy) की आवश्यकता रेखांकित कर रहे हैं। इसका तात्पर्य अत्यधिक केंद्रीय हस्तक्षेप के बिना संसाधनों को स्वतंत्र रूप से जुटाने, आवंटित करने और खर्च करने की स्वतंत्रता से है। संवर्धित वित्तीय अधिकारों को विविध क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

हालिया विकास

  • केरल, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों ने हाल ही में उधारी पर लगाए गए कठोर प्रतिबंधों, GST मुआवजे में देरी और केंद्र के कर राजस्व में घटती हिस्सेदारी पर चिंता जताई है।
  • कई राज्यों ने केंद्रीय विभाज्य पूल (Central Divisible Pool) से ....

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें

वार्षिक सदस्यता लें मात्र 600 में और पाएं...
पत्रिका की मासिक सामग्री, साथ ही पत्रिका में 2018 से अब तक प्रकाशित सामग्री।
प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा पर अध्ययन सामग्री, मॉक टेस्ट पेपर, हल प्रश्न-पत्र आदि।
क्रॉनिकल द्वारा प्रकाशित चुनिंदा पुस्तकों का ई-संस्करण।
पप्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के चुनिंदा विषयों पर वीडियो क्लासेज़।
क्रॉनिकल द्वारा प्रकाशित पुस्तकों पर अतिरिक्त छूट।
प्रारंभिक विशेष