शहरी नियोजन और अधिवास के प्रतिरूप

शहरी नियोजन और अधिवास के प्रतिरूप यह दर्शाते हैं कि मानव समाजों ने अपनी आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्थान का किस प्रकार संगठन किया।

  • भारतीय परिप्रेक्ष्य में ये प्रतिरूप नवपाषाण कालीन ग्रामीण अधिवासों से लेकर सिंधु घाटी के योजनाबद्ध नगरों, मध्यकालीन दुर्ग-नगरीय केन्द्रों और अंततः औपनिवेशिक तथा आधुनिक शहरी केन्द्रों तक विकसित हुए।
  • प्रत्येक चरण उस समय की तकनीकी क्षमता, सामाजिक पदानुक्रम और सांस्कृतिक प्राथमिकताओं का प्रतिबिंब है।
  • पुरातात्त्विक, साहित्यिक और स्थापत्य साक्ष्य यह दिखाते हैं कि भारत का शहरीकरण रैखिक (linear) नहीं था, बल्कि चक्रीय (cyclical) था—विस्तार और पतन के वैकल्पिक चरणों से गुजरता रहा।

क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें

वार्षिक सदस्यता लें मात्र 600 में और पाएं...
पत्रिका की मासिक सामग्री, साथ ही पत्रिका में 2018 से अब तक प्रकाशित सामग्री।
प्रारंभिक व मुख्य परीक्षा पर अध्ययन सामग्री, मॉक टेस्ट पेपर, हल प्रश्न-पत्र आदि।
क्रॉनिकल द्वारा प्रकाशित चुनिंदा पुस्तकों का ई-संस्करण।
पप्रारंभिक व मुख्य परीक्षा के चुनिंदा विषयों पर वीडियो क्लासेज़।
क्रॉनिकल द्वारा प्रकाशित पुस्तकों पर अतिरिक्त छूट।
प्रारंभिक विशेष