औपनिवेशिक भारत में किसान आंदोलन

औपनिवेशिक भारत में किसान आंदोलन स्थानीय और स्वतःस्फूर्त विद्रोह थे, जो औपनिवेशिक–जमींदारी गठजोड़ की शोषणकारी संरचना के विरुद्ध हुए।

  • इनका कारण अत्यधिक भूमि-राजस्व की माँग, अवैध बेदखली और साहूकारों की शोषणकारी प्रथाएँ थीं।
  • ये आंदोलन प्रारम्भ में स्थानीय उत्पीड़कों के विरुद्ध प्रतिरोध के रूप में शुरू हुए, परन्तु धीरे-धीरे व्यापक, संगठित राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़कर आर्थिक न्याय की माँग का हिस्सा बन गए।

विकास और स्वरूप

आंदोलन/काल

क्षेत्र एवं मुख्य कारण

प्रतिरोध का स्वरूप और लक्ष्य

परिणाम एवं राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव

प्रारम्भिक प्रतिरोध (1857 से पूर्व)

संथाल हूल (1855–56, बिहार/बंगाल): परंपरागत वनभूमि से बेदखली, भूमि-राजस्व का थोपना और साहूकारों–जमींदारों का शोषण।

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