वैदिक एवं उत्तरवैदिक साहित्य

वैदिक और उत्तरवैदिक साहित्य भारतीय सभ्यता की मूलभूत ग्रंथ-संपदा का प्रतिनिधित्व करता है।

  • इसका विकास प्रारम्भिक काल के पवित्र स्तोत्रों और यज्ञ-कर्मकाण्ड (वेद, ब्राह्मण) से लेकर गहन दार्शनिक चिंतन (उपनिषद, दर्शनों) और सामाजिक–राजनीतिक आचरण के संहिताकरण (सूत्र, महाकाव्य) तक हुआ।
  • यह निरंतरता आस्था-आधारित अनुष्ठानों से लेकर व्यवस्थित आध्यात्मिक और नैतिक चिंतन तक की बौद्धिक यात्रा को दर्शाती है।

साहित्य का विकास

काल

प्रमुख साहित्य एवं केन्द्रबिन्दु

सामाजिक–राजनीतिक एवं दार्शनिक विकास

प्रारम्भिक वैदिक (1500–1000 ई.पू.)

चार वेद (संहिताएँ): विशेषकर ऋग्वेद, जिसमें प्रकृति-देवताओं की स्तुतियों और यज्ञों के मंत्र संग्रहीत हैं।

सरल जनजातीय समाज: अर्ध-घुमंतू, पशुपालक और तुलनात्मक रूप से समतावादी समाज का परिचायक। संहिताएँ आर्य संस्कृति ....

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