जैन और बौद्ध ग्रंथ एवं विद्वान

जैन और बौद्ध साहित्य भारत की सर्वप्रथम संगठित दार्शनिक परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका मूल उद्देश्य था, नैतिकता, तर्कपूर्ण चिंतन और आत्ममुक्ति की स्थापना। इनकी विशाल ग्रंथ-परंपरा और विद्वानों का योगदान न केवल धार्मिक सिद्धांतों का संहिताकरण था, बल्कि उन्होंने भारतीय सभ्यता में प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक सामाजिक प्रसार, नैतिक सुधार और बौद्धिक परिष्कार की निरंतर प्रक्रिया को भी गति प्रदान की।

जैन ग्रंथ एवं विद्वान

आगमिक साहित्य (Canonicals/Agamas)

  • जैन आगम महावीर के उपदेशों का सबसे पहला संकलन हैं, जिन्हें प्रारंभ में मौखिक रूप में संरक्षित किया गया और बाद में वल्लभी की परिषद (5वीं–6ठी ....


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